‘चीन ताइवान को फौजी कार्रवाई की धमकियां देना बंद कर दे’। ताइवान के नए बने राष्ट्रपति लाई चिंग ते ने अपना पद संभालने के बाद दिए भाषण में इन शब्दों का प्रयोग करके चीन को साफ जता दिया है कि चीन की दाल यहां गलने वाली नहीं है। पिछली राष्ट्रपति त्साई इंग वेन की तरह, लाई भी धुर राष्ट्रीय सोच के माने जाते हैं और चीन की विस्तारवादी सोच के विरोधी रहे हैं। ताइवान के अधिकांश लोगों का मानना है कि चीन की वक्त—बेवक्त की सैन्य धमकियों के बीच, लाई का राष्ट्रपति पद पर आना देश की संप्रभुता को अक्षुण्ण रखेगा।
इसमें संदेह नहीं है कि ताइवान के नए राष्ट्रपति लाई ने कुर्सी पर बैठते ही संकेत दे दिए हैं कि वह चीन की थानेदारी को मानने वाले नहीं हैं। इसीलिए उन्होंने बेलाग अंदाज में जब कहा कि चीन ताइवान को धमकियां देने से बाज आए, तो देशवासियों ने उनकी खुलकर तारीफ की।
आज ताइपे में उत्साह का माहौल दिखा जब ताइवान के राष्ट्रपति की कुर्सी पर लाई चिंग ते बैठे। वे ऐसे वक्त पर राष्ट्रपति बने हैं जब चीन ताइवान को लेकर उग्रता की सारी सीमाएं तोड़ रहा है। आएदिन चीन की वायु सेना ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ कर रही है, वायुसेना के विमान गाहे—बगाहे ताइवान को धमकाने के अंदाज में नीची उड़ान भरते हुए गुजरते हैं।
दरअसल लाई के नया राष्ट्रपति बनने से चीन कोई खुश नहीं है। जिनपिंग की सरकार के लिए वह एक अलगाववादी नेता हैं। इसलिए शक नहीं कि लाई के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने देशवासियों को चीन के खौफ से निजात दिलाना है। वैसे लाई चिंग-ते को विपक्षी दलों के तीखे तेवरों को भी झेलना पड़ सकता है, जो उनके लिए एक और चुनौती होगी।
लाई चिंग-ते ने आज अपनी पूर्ववर्ती राष्ट्रपति त्साई इंग वेन से पदभार ग्रहण किया। ताइपे में राष्ट्रपति कार्यालय में एक समारोह में उन्होंने पद की शपथ ली। त्साई 8 साल तक इस पद पर रही हैं और चीन के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर खड़ी रही हैं। उनके नेतृत्व में ताइवान ने न सिर्फ विश्व के अनेक बड़े देशों से राजनयिक संबंध बनाए हैं बल्कि चीन को इस वजह से सिरदर्द भी दिया है। जब भी ताइवान में कोई विदेशी मेहमान आया, चीन ने उसे धमकाया है और उस मेहमान के देश को ‘खबरदार’ किया है कि ‘उसकी मुख्य भूमि के हिस्से से एकतरफा राजनयिक संबंध न बनाए’।
कम्युनिस्ट विस्तारवादी चीन का पुराना राग है कि ताइवान ऐतिहासिक रूप से उसकी मुख्य भूमि का हिस्सा है और एक दिन उसे बाकायदा अपने साथ जोड़ना है। उधर ताइवान ने चीन के इस कथन का हमेशा प्रतिवाद किया है। चीन ने अनेक बार ताइवान को यह कहकर धमकाया है कि जरूरत पड़ी तो उसे मुख्यभूमि में मिलाने के लिए सैन्य कार्रवाई की जाएगी। लेकिन दूसरी तरफ ताइवान पर चीन की इस ‘वन चाइना’ नीति का हर मंच पर विरोध करता रहा है।
राष्ट्रपति लाई चार साल तक पूर्ववर्ती राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के साथ उपराष्ट्रपति पद पर काम कर चुके हैं और जानते हैं कि विभिन्न मोर्चों पर चीन से कैसे निपटना है। लाई की प्राथमिकताओं में सबसे पहले है ताइवान स्ट्रेट के दोनों तटों पर अमन—चैन कायम करना।
कम्युनिस्ट विस्तारवादी चीन का पुराना राग है कि ताइवान ऐतिहासिक रूप से उसकी मुख्य भूमि का हिस्सा है और एक दिन उसे बाकायदा अपने साथ जोड़ना है। उधर ताइवान ने चीन के इस कथन का हमेशा प्रतिवाद किया है। चीन ने अनेक बार ताइवान को यह कहकर धमकाया है कि जरूरत पड़ी तो उसे मुख्यभूमि में मिलाने के लिए सैन्य कार्रवाई की जाएगी। लेकिन दूसरी तरफ ताइवान पर चीन की इस ‘वन चाइना’ नीति का हर मंच पर विरोध करता रहा है।
ताइवान में गत जनवरी में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे जिनमें लाई राष्ट्रपति चुने गए थे। तबसे चीन रणनीतिक रूप से ताइवान पर एक प्रकार का दबाव बनाता दिख रहा है। जैसा पहले बताया, ताइवान के आसपास न सिर्फ चीन ‘युद्धाभ्यास’ कर रहा है बल्कि उसके लड़ाकू विमान भी ताइवान के आसमान में घुसपैठ करते दिखे हैं।
अमेरिका, जापान, कनाडा, जर्मनी, पराग्वे आदि देश चीन की ताइवान को लेकर जो सोच है उसे नहीं मानते और ताइवान को एक संप्रभु देश मानकर वहां अपने नेताओं को भेजते रहे हैं। चीन इससे चिढ़ा हुआ है और उन देशों को भी धमकाता आ रहा है। लेकिन चीन की घुड़कियों को धता बताते हुए 64 साल के नए राष्ट्रपति लाई के शपथ समारोह में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपना प्रतिनिधि भेजा। इतना ही नहीं, इस मौके पर जर्मनी, जापान तथा कनाडा के अनेक सांसद तथा पराग्वे के राष्ट्रपति भी वहां मौजूद रहे। इन सब देशों के ताइवान से बाकायदा राजनयिक संबंध हैं।
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