देहरादून: उत्तराखंड के नैनीताल हाईकोर्ट को शिफ्ट करने और एक और नई बेंच बनाए जाने की विषय पर उठे विवाद पर अब क्षेत्रवाद की राजनीति शुरू हो गई है। हाई कोर्ट के दो न्यायमूर्ति द्वारा मौखिक रूप से एक बेंच ऋषिकेश में बनाए जाने के निर्देशों के बाद ये मामला गरमाया है। उल्लेखनीय है कि नैनीताल हाई कोर्ट, नैनीताल से हटा कर,जिले में ही हल्द्वानी में शिफ्ट किए जाने की कवायद चल रही थी, इसमें सुप्रीम कोर्ट और नैनीताल हाई कोर्ट के विद्वान न्यायधीशों ने पूर्व में अनुमति सहमति दे दी थी।
इसके लिए हल्द्वानी गौलापार में जमीन भी चिन्हित कर ली गई और इस पर कागजी कारवाई भी आगे बढ़ रही थी कि हाई कोर्ट की एक और बेंच ऋषिकेश में बनाए जाने पर बहस शुरू हो गई और इसमें ये तर्क दिया जाने लगा कि ज्यादातर मामले गढ़वाल के होते हैं,लिहाजा एक बेंच गढ़वाल में बनाई जाए। इस पर कुमायूं और गढ़वाल के वकील भी दो खेमों में बंट गए और राजनीतिक क्षेत्र के लोग भी कुमाऊं गढ़वाल की राजनीति करने लग गए।
जनमत संग्रह की भी बातें
हाईकोर्ट शिफ्टिंग और बेंच मामले में जनमत संग्रह से बचने को, सरकार से सुप्रीम कोर्ट जाने की राय तक दी जाने लगी। सीएम धामी को पूर्व राज्यपाल और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने भी चिट्ठी भेजी है। उन्होंने सीएम पुष्कर धामी को एक पत्र भेजकर हाईकोर्ट शिफ्टिंग मामले में जनमत संग्रह से बचने की नसीहत दी है।
श्री कोश्यारी चाहते हैं सरकार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में जाना चाहिए। उनका मानना है कि छोटे से उत्तराखंड राज्य में दो बेंच का कोई औचित्य नहीं है और नैनीताल से हाई कोर्ट शिफ्ट करके हल्द्वानी अथवा जिले में कहीं और ले जाना ही इसका बेहतर समाधान है। कोश्यारी ने सीएम को भेजे अपने पत्र में बिंदुवार विषय रखे हैं।
1. उत्तराखण्ड (उत्तरांचल) राज्य बनाते समय विस्तृत विचार विमर्श के बाद देहरादून को तात्कालिक राजधानी एवं नैनीताल में उच्च न्यायालय बनाने का निर्णय लिया गया।
2. नैनीताल में अंग्रेजों के समय से ही राजभवन, सचिवालय आदि बनाये गये हैं, यह उत्तर-प्रदेश की गर्मियों की राजधानी के रूप में प्रयुक्त होता रहा है, किन्तु नये राज्य में नैनीताल को राजधानी बनाने से मंत्रियो, विशिष्ट जनों की अधिकता से स्थानीय पर्यटन व जनजीवन को बाधा पहुंचने की सम्भावना को देखते हुए यहां क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखकर हाईकोर्ट की स्थापना की गई।
3. मैं कानून का विद्यार्थी नही हूँ किन्तु लम्बे समय तक संसद व विधान मण्डल के सदस्य रहने के कारण मेरा कहना है कि न्यायालय का सम्मान रखते हुए भी राज्य की कौन संस्था, विभाग कहां रहे इसका निर्णय संसद या विधान मण्डल ही करते आये है। न्यायालय इस सम्बन्ध में निर्णय लेने लगेगें तो पी.आई.एल. कर्ता कल को किसी भी विभाग जिला, तहसील आदि की मांग को लेकर न्यायालय पहुँच जायेगे व इससें संविधान द्वारा केन्द्र या प्रदेश सरकारों को दिये गये अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप की सम्भावना बढ़ जायेगी।
4. जहां तक नैनीताल हाईकोट के अन्यत्र स्थानांतरित करने का प्रश्न है मेरी जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार इससे पहले से ही सहमत है।
5. जैसा कि उच्च न्यायालय ने अपने निर्देश में स्वयं कहा है कि (निर्देश संख्या 13 एवं 14 D) मा० उच्च न्यायालय की फुल बैंच ने गौलापार हल्द्वानी में कोर्ट को स्थापित करने की प्रक्रिया पर सहमति दी थी।
6. शासन / प्रशासन द्वारा इस प्रक्रिया को आगे गढाते हुए गौलापर में लगभग 26 बीघा जमीन का चयन कर बन विभाग से अनापत्ति हेतु प्रक्रिया पूर्ण कर ली गई है, तथा केन्द्रीय वन एव पर्यावरण विभाग से इस पर विचार कर 26 बीघे जमीन को अधिक बताते हुए इसे कुछ कम करने के लिए प्रदेश सरकार को निर्देशित किया गया है। इसमें क्षतिपूर्ति के लिए वन विभाग को अन्यत्र वन लगाने हेतु जमीन का भी चयन कर लिया गया है ऐसे में अब अन्यत्र वैकल्पिक स्थान ढूंढने हेतु दिये गये निर्देश से क्षेत्र में असन्तोष फैलने की सम्भावना से नकारा नहीं जा सकता है।
7. वैसे भी उक्त प्रस्तावित स्थान रौखड़ के रूप में अभिलेखों में दर्शाया गया है।
8. उक्त स्थान में स्थित अधिकांश पेड़ केवल 4 से 6 इंच मोटाई के ही हैं।
9. न्यायालय से अपने आदेश में स्वयं ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा है कि अधिवक्ताओं को virtuality (आभासी) या आन लाईन बहस करने का अभ्यास डालना चाहिए (आदेश क्रमांक-12)।
10. न्यायालय ने नैनीताल में आसपास चिकित्सा आदि की उचित व्यवस्था नहीं होने का जिक्र किया गया है। गौलापार हाईकोर्ट बन जाने से हल्द्वानी में सभी प्रकार की सरकारी व निजी अस्पतालों के माध्यम से चिकित्सा की उचित सुविधा उपलब्ध हो जायेगी। यहां से हवाई अड्डा भी NH बन जाने से 20 या 25 मिनट पंतनगर पहुंचा जा सकता है।
11. मैं अत्यन्त विनम्रता व न्यायालय का पूर्ण सम्मान करते हुए आपसे अनुरोध करता हूँ कि कृपया उच्च न्यायालय के लिए जनमत संग्रह जैसी प्रथा से बचा लाय। इससें भविष्य में इसका दुरूपयोग हो सकता है। अन्त में आपसे अनुरोध है कि इस सम्बन्ध में शासन की ओर से केन्द्र सरकार या सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से शीघ्रतिशीघ्र समस्या का समाधान निकाला जाय।
सुप्रीम कोर्ट का उड़ीसा मामले में लिया निर्णय महत्वपूर्ण
नैनीताल हाई कोर्ट की नई बेंच, ऋषिकेश में स्थापित किए जाने की मांग पर, विद्वान विशेषज्ञों की ये राय है कि ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की खंडपीठ ने दिसंबर 2022 को एक निर्णय सुनाया था, जिसमें उड़ीसा जैसे बड़े राज्य में हाई कोर्ट की एक और बेंच संभलपुर में स्थापित किए जाने की मांग को नामंजूर करते हुए कहा गया था कि आधुनिक तकनीक की मदद से कोर्ट चल रहे हैं लिहाजा नई बेंच बनाने का कोई औचित्य नहीं है।
उल्लेखनीय है कि बिहार जैसे बड़े राज्य में भी पटना हाईकोर्ट की किसी शहर में बेंच नही है। बहरहाल उत्तराखंड में हाईकोर्ट को लेकर राजनीतिक बहस चल रही है और माना ये भी जा रहा है कि इस मामले में शासन स्तर से भी हुई देरी के कारण ये विवाद ज्यादा गहराया, ऐसा भी जानकारी में आया है कि जो स्थान वन विभाग ने बिना पेड़ों का सुझाया उसके स्थान पर पीडब्ल्यूडी ने एक नया स्थान चयनित किया जहां पेड़ लगे थे, जिस पर हाईकोर्ट ने कहा कि पेड़ काटने से हमे बचना चाहिए।
एक प्रस्ताव ये भी आया कि हाईकोर्ट को रानीबाग स्थित बंद पड़ी एचएमटी फैक्ट्री में शिफ्ट कर दिया जाए।
फिलहाल उत्तराखंड की धामी सरकार इस विषय पर अभी और राय मशविरा कर रही है। ये तो तय है कि हाई कोर्ट नैनीताल से ,जिले में ही कहीं शिफ्ट होगा रहा सवाल नई बेंच बनाने का उस निर्णय लेना कठिन हो सकता है।
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