भारत

तकनीक बदलेगी भारत का भविष्य

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दीपक उपाध्याय

दिल्ली से बाहर जा रहे सुधीर कुमार को ट्रैफिक पुलिस ने रोका और लाइसेंस मांगा। बटुआ खंगालने के बाद उन्हें याद आया कि किसी काम के लिए लाइसेंस तो घर पर ही छूट गया। उन्होंने डीजी लॉकर एप में ड्राइविंग लाइसेंस डाउनलोड कर रखा था, इसलिए मुश्किल नहीं हुई। तुरंत डीजी लॉकर खोला और ट्रैफिक अधिकारी को दिखा दिया। उसने अपनी हैंड हेल मशीन पर गाड़ी का नंबर डाला, तो सारे दस्तावेज दुरुस्त मिले। इसके बाद उसने सुधीर कुमार को जाने दिया।

यह मामला सिर्फ सुधीर का नहीं है, बल्कि पूरे देश में गाड़ियों का डेटा अब ‘एम-परिवहन’ एप पर है, जो डीजी लॉकर से जुड़ा हुआ है। ‘एम-परिवहन’ पर देशभर के 1300 आरटीओ दफ्तर सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। लाइसेंस से लेकर वाहन पंजीकरण के दस्तावेज और अन्य डेटा तत्काल एप पर आ जाता है। इसलिए पुलिस से लेकर परिवहन नीति निर्माताओं तक को नीतियां बनाने व उन्हें लागू करने में ज्य़ादा समय नहीं लगता। इस एप ने लाइसेंस बनवाने से लेकर आरटीओ संबंधी अन्य कार्यों को बहुत आसान बना दिया है और देश के अधिकांश दफ्तरों में बिचौलियों का झंझट भी खत्म हो गया है।

यूपीआई दुनिया का सिरमौर

तकनीक के मामले में भारत अब दुनिया में अपनी जगह बना चुका है। जो बात विकसित देश अभी तक सोच नहीं पाए हैं, भारत ने उसे करके दिखा दिया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यूपीआई पेमेंट सिस्टम है। भारत के छोटे से छोटे गांव में भी अब लोगों के मोबाइल पर पैसे के डिजिटल लेन-देन की सुविधा मौजूद है। दुनिया के बड़े-बड़े देशों के प्रतिनिधि भी भारत में आकर सीधे स्कैन कोड के जरिए पेमेंट करके भारत के इस सिस्टम की तारीफ करते हैं।

दरअसल, भारत की लगभग 99 प्रतिशत आबादी बैकिंग प्रणाली से जुड़ गई है। जनधन खातों की वजह से गरीब से गरीब व्यक्ति का भी बैंक खाता खुला हुआ है, जो कि सीधे यूपीआई से जुड़ा हुआ है। इसलिए पैसे का लेन-देन अब कैश की बजाए मोबाइल-टू-मोबाइल होता है। दिसंबर 2023 में यूपीआई से 18.23 लाख करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ था, जो एक रिकॉर्ड था। बीते वर्ष कुल यूपीआई लेन-देन की संख्या 100 अरब से भी ज्यादा रही, इनके जरिए 182 लाख करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ जो दुनिया में सबसे अधिक था। कहा तो यह भी जाता है कि डिजिटल भुगतान के मामले में भारत दुनिया के विकसित देशों से भी कई साल आगे है। भारत की डिजिटल भुगतान की सफलता को देखते हुए अब यूपीआई दुनिया के कई देशों में चलता है। फ्रांस के एफिल टावर का टिकट भी यूपीआई स्कैन कोड से खरीदा जा सकता है।

इस समय देश में 30 करोड़ लोग यूपीआई का इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में रुपे क्रेडिट कार्ड को भी यूपीआई से जोड़ने करने की सुविधा दे दी गई है, इसके बाद इसकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है।

ओआरएफ के निदेशक डॉ. नीलांजन घोष के मुताबिक, यूपीआई के मामले में भारत विकसित देशों के मुकाबले पांच से छह वर्ष आगे है। डिजिटल विकास और आर्थिक विकास परस्पर जुड़े हुए है। मौजूदा समय में भारत में खपत बढ़ी है। भारत में मध्यम वर्ग की आबादी भी खासी बढ़ी है। इसलिए वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने की ताकत भी बढ़ी है।

भारत का बढ़ता दखल

पिछले दस वर्ष में भारत ने तकनीक के मामले में काफी तरक्की की है। भारत दुनिया का ‘टेक्नॉलॉजी हब’ बन गया है। अब दुनिया के किसी भी देश में जाएं, वहां तकनीकी विभाग में कोई न कोई भारतीय मिल ही जाएगा। भारत में हर साल 25 लाख से ज्य़ादा आईटी इंजीनियर्स ग्रेजुएट हो रहे हैं, जो कि एक बहुत बड़ा टेलेंट पूल है। यहां से यह पूल पूरी दुनिया में फैल भी रहा है और भारत को तकनीक के क्षेत्र में बढ़त भी दे रहा है। इसके साथ ही बड़ी संख्या में भारत में स्टार्टअप भी खोल रहा है। भारत में करीब 50 हजार से ज्य़ादा स्टार्टअप भी चल रहे हैं, जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। इनमें यह आईटी इंजीनियर्स कई बार बड़ी भूमिका निभाते हैं तो कई बार अपना स्टार्टअप शुरू करते हैं। देश में जितने भी यूनिकार्न स्टार्टअप हैं, उनमें से ज्य़ादातर फ्रेश टेक ग्रेजुएट्स के बनाए हुए हैं।

भारत के विशाल और मजबूत तकनीकी ढांचे की वजह से गांव-गांव तक इंटरनेट पहुंच गया है। इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन आफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 44.2 करोड़ ग्रामीण इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो शहरी इंटरनेट यूजर्स से ज्य़ादा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 82.1 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जिनमें 37.8 करोड़ शहरी और 44.2 करोड़ यूजर ग्रामीण इलाकों से हैं। यही वजह है कि भारत में अब किसान वैसी ही फसलें उगा रहे हैं, जिनसे उन्हें ज्य़ादा लाभ हो। किसान इंटरनेट के जरिए सीधे मंडियों से जुड़ गए हैं। अब उन्हें अपने उत्पाद की सही कीमत भी पता है और यह भी पता है कि आने वाले समय में किस उत्पाद की कीमत अच्छी रहेगी। किसानों की आय में हुई बढ़ोतरी में भी तकनीक का बड़ा योगदान है। अब अपने उत्पाद की कीमत वे आनलाइन शॉपिंग साइट्स पर भी देख लेते हैं।

आनलाइन खरीदारी

भारत में आनलाइन खरीदारी ने भी दुनियाभर के निवेशकों को चौंकाया है। इसी वजह से दुनिया के सभी बड़े रिटेल चेन कंपनियां भारत में निवेश या तो कर चुकी हैं या करने जा रही हैं। खासकर भारत का ई-कॉमर्स बाजार जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसको देखकर विश्व की बड़ी-बड़ी रिटेल कंपनियां अपना पैसा यहां लगाना चाह रही हैं।

इस तेज वृद्धि को देखते हुए 2028 तक आनलाइन खरीदारी बाजार 160 अरब डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है। देश में आनलाइन खरीदारी बाजार 2023 में अनुमानित 57-60 अरब डॉलर का था। अमेजन, फ्लिपकार्ट से लेकर ओएनडीसी पर बड़ी कंपनियां तो अपना सामान बेच ही रही हैं, छोटी कंपनियों से लेकर आम लोग भी अपने उत्पाद इन आनलाइन प्लेटफार्म पर बेच रहे हैं।

भारत में अब हर क्षेत्र में तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। कोरोना के दौर में विकसित कहे जाने वाले यूरोपीय देश जहां वैक्सीन डेटा और मरीजों को लेकर परेशान थे, उस समय भारत के को-विन एप ने दुनिया को दिखा दिया कि इतनी बड़ी आबादी का रियल टाइम डेटा वह आसानी से आपरेट कर सकता है। अब देश के सभी बड़े अस्पतालों में भी लाइन लगाकर पंजीकरण करने की जरूरत नहीं है। सभी बड़े सरकारी अस्पतालों में आप घर बैठे बड़े डॉक्टरों से अप्वांटमेंट ले सकते हैं।

अस्पताल भी खरीदारी के लिए गवर्मेंट ई मार्केटप्लेस (GeM) का इस्तेमाल कर रहे हैं। अस्पताल ही नहीं, सभी पीएसयू से लेकर निजी कंपनियां भी वेंडर ढूंढने के लिए इसी साइट का इस्तेमाल कर रही हैं। इसलिए इस साइट का सालाना कारोबार 1.50 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। साथ ही, इसके जरिए 63 हजार से ज्य़ादा सरकारी, गैर-सरकारी संगठन मिलकर कारोबार कर रहे हैं। इस पोर्टल की शुरुआत 2016 में हुई थी, जिसकी पहचान अब दुनिया के सबसे बड़े पोर्टल के रूप में होती है। भारत में छोटे से छोटा दुकानदार भी अपने स्टॉक को अपडेट रखने के लिए किसी न किसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहा है। इस कारण कारोबारियों का मुनाफा भी बढ़ रहा है। (GeM) पोर्टल जहां दूर-दराज के छोटे दुकानदारों, रेहड़ी-पटरी वालों को सीधे सरकार को अपना उत्पाद बेचने का अवसर देता है, वहीं, e-NAM किसानों को अलग-अलग जगहों के खरीदारों से जुड़ने का अवसर उपलब्ध करा रहा है।

इस तकनीक ने ही भारत को दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है। जल्द ही यह चौथे और फिर तीसरे स्थान पर भी पहुंच जाएगी। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि जीएसटी ने लोगों के काम करने और टैक्स जमा कराने के ढंग को बदल दिया है। अब टैक्स जमा कराना इतना आसान है कि छोटे से छोटा कारोबारी भी टैक्स जमा करा रहा है। इस वित्त वर्ष के पहले महीने यानी अप्रैल में सीएसटी संग्रह दो लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो अभी तक का एक रिकॉर्ड है। यह इसलिए भी आश्चर्यजनक है, क्योंकि वित्त वर्ष खत्म होने के अगले महीने ही इतना ज्य़ादा जीएसटी जमा होने का मतलब है कि अर्थव्यवस्था बहुत ही तेजी से आगे बढ़ रही है। कारोबार बहुत ज्य़ादा हो रहा है।

भारत में चल रही डिजिटल क्रांति के जरिए भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की कोशिशों में लगा हुआ है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसको लेकर लगातार योजनाओं से लेकर उसके क्रियान्वयन की कोशिशों में लगे हुए हैं। वह कहते हैं कि 2047 में विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका बहुत बड़ी होगी। इसके इस्तेमाल से इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। प्रधानमंत्री के मुताबिक, भारत बड़े स्तर पर आधुनिक डिजिटल बुनियादी ढांचा तैयार कर रहा है। तकनीक को बढ़ावा देने के लिए सरकार बड़े पैमाने पर निवेश कर रही है। इसके साथ ही सरकार यह भी सुनिश्चित कर रही है कि डिजिटल क्रांति का लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंचे। प्रधानमंत्री का कहना है कि 21वीं सदी का बदलता हुआ भारत, अपने नागरिकों को तकनीक की ताकत से मजबूत और सक्षम बना रहा है। इसी वजह से सरकार ने 2023-24 के बजट में भी तकनीक के साथ ‘ह्यूमन टच’ का खास ख्याल रखा है।

इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी 5जी और कृत्रिम बुद्धिमता के विकास पर भी जोर दे रहे हैं। इसलिए देश में एआई के लिए कारगर इकोसिस्टम बनाना चाहते हैं। उनका कहना है कि दोनों तकनीक से उद्योग, दवा, शिक्षा, खेती जैसे क्षेत्रों में बड़े बदलाव आएंगे। 5जी सेवा आधारित एप्लीकेशन तैयार करने के लिए इंजीनियरिंग संस्थानों में 100 प्रयोगशालाएं बन रही हैं। इससे नए अवसरों, बिजनेस मॉडलों और रोजगार की संभावनाओं से जुड़ी जरूरतें पूरी की जा सकेंगी।

यही नहीं, राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय बच्चों और किशोरों को अलग-अलग क्षेत्रों, भाषाओं और विषयों में अच्छी गुणवत्तापूर्ण किताबें उपलब्ध कराएगा। वहीं, एकीकृत स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफार्म देश के युवाओं के कौशल विकास में तेजी लाएगा।

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