महाराष्ट्र में सक्रिय जमीन जिहादियों को सर्वोच्च न्यायालय ने करारा झटका दिया है। न्यायालय ने गत दिनों जलगांव जिले में स्थित पांडववाड़ा को सूर्योदय से सूर्यास्त तक सभी लोगों के लिए खोलने का आदेश दिया इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि वहां नगर पालिका परिषद् ही ताला लगा सकती है और न्यायालय के निर्देशानुसार वही खोल सकती है। ताले की चाबी नगरपालिका परिषद् के पास ही रहेगी। बता दें कि कागजों में पांडववाड़ा भारतीय पुरातत्च सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) के अधीन है, लेकिन कुछ जिहादी तत्चों ने उस पर कब्जा कर वहां मस्जिद और मदरसा बना लिया है। नमाज के समय यही लोग ताला खोलते थे और फिर उसे बंद कर देते थे। ये लोग पांडववाड़ा के अंदर और किसी को जाने नहीं देते थे।
जलगांव शहर से लगभग 27 किलोमीटर दूर अंजनी नदी के तट पर एरंडोल नामक स्थान है। मान्यता है कि यही महाभारत में वर्णित ‘एकचक्रा नगरी’ है। एरंडोल को एरानवेल या अरुणावती के नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय एकचक्रा नगरी में बिताया था। वे जिस क्षेत्र में रहे थे आज वहां एक ऐतिहासिक भवन है, जिसे ‘पांडववाड़ा’ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि भीम ने एरंडोल से लगभग 15 किलोमीटर दूर पद्मालय में राक्षस बकासुर का वध किया था। पांडववाड़ा के निकट ही द्रौपदी कूप यानी द्रौपदी का कुआं है। आधिकारिक सरकारी कागजातों में भी इस क्षेत्र को ‘पांडववाड़ा’ के नाम से ही जाना जाता है।
पांडववाड़ा 4515.9 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इसके मुख्य प्रवेश द्वार के पास लगाए गए पत्थरों पर प्राचीन नक्काशी है, जिनमें कमल को प्रमुखता से देखा जाता है। पांडववाड़ा के पास एक धर्मशाला है, जो हिंदू मंदिरों में आम बात है। वाड़े में प्रवेश करते ही दोनों ओर खुली जगह मिलती है। आसपास की दीवारों में कई खिड़कियां हैं, जिनमें से सभी पर कमल और दीपक जैसी नक्काशी है। वाड़े के अंत में गर्भगृह जैसी एक संरचना है। ए.एस.आई. का मानना है कि पांडववाड़ा के आसपास 52 जैन मंदिर भी थे।
खुदाई में भगवान महावीर की अनेक मूर्तियां मिली हैं, जिन्हें नाशिक के संग्रहालय में रखा गया है। यही पांडववाड़ा जमीन जिहाद का शिकार हुआ है। जलगांव के हिंदू 1980 के दशक से ही इस जिहाद के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं, किंतु मई, 2022 से यह मामला चर्चा में है। 26 जनवरी, 2023 को जलगांव के हिंदुओं ने पांडववाड़ा को मजहबी तत्वों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। फिर एक सामाजिक कार्यकर्ता प्रसाद मधुसूदन दंडवते की अध्यक्षता में ‘पांडववाड़ा संघर्ष समिति’ का गठन हुआ। इस समिति ने 18 मई, 2023 को जलगांव के जिलाधिकारी अमन मित्तल को एक पत्र सौंपा।
इसमें कहा गया कि पांडवावाड़ा पर मुसलमानों ने कब्जा कर रखा है। इसके बाद जिलाधिकारी ने नगर भूमापन अधिकारी के उपाधीक्षक को इसकी जांच करने को कहा। फिर जिलाधिकारी ने जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट से कागजात मांगे, लेकिन ट्रस्ट के लोग पांडववाड़ा से संबंधित कागजात नहीं दिखा पाए। प्रसाद मधुसूदन दंडवते ने बताया, ‘‘ट्रस्ट के पास केवल भूखंड संख्या 315, 318 और 320 के कागजात हैं। उनके पास भूखंड संख्या 1100, जहां पांडववाड़ा स्थित है, के कागजात नहीं हैं। इसलिए वे जिलाधिकारी को कागज नहीं दिखा पाए। यही कारण है कि 11 जुलाई, 2023 को जलगांव के जिलाधिकारी ने पांडववाड़ा में धारा 144 लागू कर कथित मस्जिद में नमाज पढ़ने पर रोक लगा दी।’’
इस रोक को हटाने के लिए मस्जिद ट्रस्ट ने मुंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ में एक याचिका दायर की। न्यायमूर्ति आर.एम. जोशी की एकल पीठ ने 18 जुलाई, 2023 को जिलाधिकारी के आदेश पर दो हफ्ते के लिए रोक लगाते हुए दोनों पक्षों को नोटिस जारी किया। बाद में उच्च न्यायालय ने जिलाधिकारी के निर्णय को सही ठहराया। यानी उच्च न्यायालय ने भी मुसलमानों को वहां नमाज पढ़ने से रोक दिया।
जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट ने उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में एक विशेष याचिका दायर की। उसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश दिया कि पांडववाड़ा के मुख्य द्वार की चाबी नगरपालिका परिषद् के पास रहेगी। हालांकि न्यायालय ने नमाज पढ़ने पर रोक नहीं लगाई है। न्यायालय के इस निर्णय को हिंदू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे हिंदू पक्ष के लिए बड़ी जीत मानते हैं। वे कहते हैं, ‘‘जिस स्थान पर पहले मुसलमान किसी को जाने नहीं देते थे, अब वहां कोई भी जा सकता है।’’
ऐसे किया कब्जा
हिंदुओं का कहना है कि पांडववाड़ा पर कब्जा करने के लिए ‘जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट’ ने बड़ी चालाकी से काम किया। पांडववाड़ा के पीछे जीर्णशीर्ण अवस्था में एक ढांचा खड़ा था, जिसे कुछ मुसलमान ‘जुम्मा मस्जिद’ बताकर वहां नमाज पढ़ने लगे। सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि 1880 में भारी वर्षा के कारण वह ढांचा ढह गया। इसके बाद 2 फरवरी, 1880 को सरकारी वकील चिंतामन विष्णु खरे (उस समय सरकारी वकील को जमीन पट्टे पर देने का अधिकार था) और कुछ मुसलमानों के बीच एक करार हुआ। एक रुपए के स्टांप पेपर पर हुए इस करार के अनुसार मुसलमानों को वह स्थल 25 साल की अवधि यानी 1905 तक के लिए पट्टे पर दे दिया गया।
इसके लिए प्रतिवर्ष दो रुपए किराया तय हुआ था। मुसलमानों ने वायदा किया कि उस जगह पर केवल चारा, लकड़ी आदि सामग्री रखी जाएगी, लेकिन उन्होंने वहां की कई ऐतिहासिक संरचनाओं को नष्ट कर दिया। पत्थर के नक्काशीदार खंभों को नुकसान पहुंचाया गया। उस समय ए.एस.आई. ने घोर आपत्ति दर्ज की। मुसलमानों ने दंड से बचने के लिए लिखित माफी भी मांगी। इसके बाद 1905 में जैसे ही पट्टे की अवधि समाप्त हुई, ए.एस.आई. ने वहां अपना बोर्ड लगा दिया, जिस पर लिखा गया, ‘‘यहां किसी भी तरह का निर्माण करना या फिर तोड़-फोड़ करना दंडनीय अपराध है। जो ऐसा करेगा, उस पर 200 रु. का जुर्माना लगाया जाएगा।’’ इसके बाद वहां से सभी को निकालकर मुख्य दरवाजे पर ताला जड़ दिया गया।
12 फरवरी, 1922 को भी जलगांव नगरपालिका ने इस स्थान की जांच की और सब कुछ ठीक पाया। माना जाता है कि इसके बाद कुछ जमीन जिहादियों ने इस जगह पर कब्जा करने के लिए एक षड्यंत्र रचा। उन्होंने पांडववाड़ा से लगभग चार किलोमीटर दूर खेती की जमीन (भूखंड संख्या 315, 318 और 320) पर अवैध रूप से एक मकान बनाया। इन लोगों ने 1927 में जलगांव के तत्कालीन जिलाधिकारी मोहम्मद शाह को एक तकरीर के लिए बुलाया। उन्होंने उनसे कहा कि ऐसे अवैध निर्माण से तो कभी भी हटा दिए जाओगे। इसके लिए एक ट्रस्ट बनाओ। फिर मुसलमानों ने ‘जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट’ बनाया। बाद में भूखंड संख्या 315,318 और 320 को उस ट्रस्ट के नाम कर दिया गया। यानी कानूनी रूप से ‘जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट’ इन्हीं तीन भूखंडों का मालिक है। पर इस ट्रस्ट की आड़ में मुसलमानों ने पांडववाड़ा पर कब्जा करना शुरू किया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कब्जे की गति तेज हुई। सेकुलर सरकारों ने उन्हें रोकने की हिम्मत कभी नहीं जुटाई। परिणाम यह हुआ कि पांडवपाड़ा जैसे ऐतिहासिक स्थल पर मस्जिद और मदरसे का निर्माण हो गया। वजूखाना और शौचालय भी बन गए। इतना होने के बाद भी सरकारी स्तर पर इस कब्जे को हटाने के लिए कुछ नहीं किया गया। इस कारण जलगांव के कुछ हिंदुओं ने पांडववाड़ा को अतिक्रमण-मुक्त करने की मांग की। इसका असर यह हुआ कि 1985 में सरकार ने पांडववाड़ा को सभी लोगों के लिए खोल दिया। मुसलमानों ने इसका विरोध किया। इसके बाद जलगांव के कुछ हिंदुओं ने पांडववाड़ा को पूरी तरह कब्जा-मुक्त कराने के लिए आंदोलन चलाया।
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