एक तरफ दुनिया में भीषण संघर्ष छिड़े हुए हैं तो दूसरी तरफ दुनिया तेजी से धड़ों में बंटती दिख रही है। ऐसे माहौल में पांच साल बाद, यूरोपीय देशों की अपनी यात्रा में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का क्या एजेंडा है, यह सवाल कूटनीतिक विशेषज्ञों में बार बार उठ रहा है। लेकिन अपने दौरे में यूरोप के पहले देश फ्रांस पहुंचे चीन का विरोध करने वाले भी कम नहीं थे। कई मानवाधिकार संगठनों ने उस चीन के नेता का विरोध किया जिसके यहां तिब्ब्तियों और उइगर मुस्लिमों का हद से अधिक दमन किया जा रहा है। ऐसी अनेक रिपोर्ट हैं जो प्रामाणिकता से साबित करती हैं कि जिनपिंग ने अपने देश में मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई हुई हैं।
फ्रांस की राजधानी पेरिस से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यूरोप के तीन देशों के अपने दौरे की शुरुआत की। यूरोप में चीन की शक्ति में हो रही बढ़त को लेकर उथलपुथल मची है। अमेरिका और चीन के बीच छत्तीस का आंकड़ा बना ही हुआ है। राष्ट्रपति शी की इच्छा है कि यूरोप के देशों को आर्थिक तथा रणनीतिक दृष्टि से दुनिया की बड़ी ताकतों से आजादी मिले। पेरिस से शी जिनपिंग सर्बिया तथा हंगरी भी जाएंगे। ये दोनों ही देश रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निकट माने जाते हैं तथा इनमें चीन ने निवेश भी काफी किया है।
लेकिन दुनिया के अनेक देशों में सैन्य जासूसी कराने के आरोपी चीन के राष्ट्रपति की पेरिस में आवभगत कुछ चुभन भरी रही। ओरली हवाई अड्डे के बाहर अनेक मानवाधिकार समूह विरोध के झंडे लिए खड़े थे। उनकी मांग थी कि फ्रांस चीन के नेता पर यह दबाव बनाए कि वहां तिब्बती तथा उइगर मुसलमानों के मानवाधिकार सुरक्षित रखें जाएं, उनका दमन न किया जाए।
यूरोपीय देशों की कार निर्माता कंपनियां अपने यहां सब्सिडी पर मिल रहीं चीनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों से परेशान हैं। उनकी बिक्री कम हो गई है। अनेक यूरोपीय देशों ने यह आरोप लगाया है कि चीनी जासूस उनके यहां सक्रिय हैं। उधर रूस तथा चीन में ऐसी समझ बनी हुई है कि रक्षा व्यापार बराबर जारी है। इससे यूक्रेन—रूस युद्ध में यूक्रेन के पाले में खड़े यूरोप वाले परेशान हैं।
दूसरी तरफ इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यूरोप तथा चीन के बीच कारोबारी नाता है। यूरोपीय संघ के देशों तथा चीन में रोजाना अंदाजन 2.3 अरब यूरो का कारोबार होता है।
एक समूह तिब्बत की आजादी की मांग कर रहा था। इस समूह के झंड़े तले बड़ी संख्या में एकत्रित तिब्बती मूल के लोगों में शी जिनपिंग के आने को लेकर आक्रोश था। हालांकि पेरिस में चीन के राष्ट्रपति ने कहा कि उनकी इस यात्रा से चीन तथा फ्रांस के मध्य ‘रणनीतिक विकास होगा और नजदीकी बढ़ेगी। इसके पीछे उन्होंने दुनिया में फैली अस्थिरता और नकारात्मकता की ओट ली और यह भी कहा कि ऐसी यात्रा एक सद्भाव का संचार करेगी।
यहां ध्यान रखना होगा कि यूरोपीय देशों की कार निर्माता कंपनियां अपने यहां सब्सिडी पर मिल रहीं चीनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों से परेशान हैं। उनकी बिक्री कम हो गई है। अनेक यूरोपीय देशों ने यह आरोप लगाया है कि चीनी जासूस उनके यहां सक्रिय हैं। उधर रूस तथा चीन में ऐसी समझ बनी हुई है कि रक्षा व्यापार बराबर जारी है। इससे यूक्रेन—रूस युद्ध में यूक्रेन के पाले में खड़े यूरोप वाले परेशान हैं।दूसरी तरफ इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यूरोप तथा चीन के बीच कारोबारी नाता है। यूरोपीय संघ के देशों तथा चीन में रोजाना अंदाजन 2.3 अरब यूरो का कारोबार होता है।
चीन के विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना महामारी की वजह से शी यूरोप आने से बचते रहे थे, लेकिन अब एक बार फिर यूरोप के नेताओं के साथ अपने रिश्तों में गर्मजोशी लाने की कोशिश कर रहे हैं। बड़े पश्चिमी देशों के साथ कूटनीतिक संबंधों में आ रही शिथिलता को दूर करना उनका एक बड़ा मकसद है। शी की इस यात्रा पर व्हाइट हाउस के अधिकारी बारीक नजर रखे हुए हैं।
आज फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां और राष्ट्रपति शी के बीच औपचारिक वार्ता होगी। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लीयन से भी शी भेंट करने वाले हैं। शी की कोशिश होगी कि मैक्रां के साथ निष्पक्ष व्यापार नीतियों को आगे बढ़ाया जाए। वे चाहेंगे कि चीन रूस के साथ अपनी निकटता का प्रयोग करे और यूक्रेन का युद्ध खत्म होने के आसार बनें। यहां ध्यान रहे कि यूरोपीय संघ द्वारा चीन को दी जा रही सब्सिडी पर कड़ा कदम उठाते हुए चीन से आ रही इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर कोई टैक्स लगा दे।
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