उत्तराखंड : धधकते पहाड़ और जंगलों से चिंतित सीएम धामी, दिल्ली से ली अधिकारियों की क्लास
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उत्तराखंड : धधकते पहाड़ और जंगलों से चिंतित सीएम धामी, दिल्ली से ली अधिकारियों की क्लास

आग से गई तीन लोगों की जान, सैकड़ो हैक्टेयर जंगल हुआ प्रभावित, वन्य जीव जंतुओं पर भी दिख रहा असर

by दिनेश मानसेरा
May 4, 2024, 01:36 pm IST
in उत्तराखंड
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उत्तराखंड ब्यूरो / देहरादून । तेज गर्मी के मौसम में लगी पहाड़ो में जंगल की आग से जनजीवन प्रभावित है। अब तक तीन लोगो की मौत हो चुकी है जिसमे एक महिला शामिल है। सैकड़ो हैक्टेयर वन भूमि इस आग से प्रभावित है। जंगल की आग से चिंतित मुख्य मंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने राष्ट्रीय चुनाव प्रचार अभियान के बीच दिल्ली से उत्तराखंड शासन के अधिकारियो के साथ इस आपदा की समीक्षा की है।

सीएम धामी वन विभाग की कार्यप्रणाली से भी व्यथित नजर आए उन्होंने कहा कि बेशक आग को हम आपदा के रूप में देखते है लेकिन हम हाथ पर हाथ रख कर भी नही बैठ सकते।

सीएम धामी ने मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को निर्देशित किया कि वो इस आपदा की निगरानी के लिए स्वयं नेतृत्व करें। सीएम धामी ने आग से हताहत हुए लोगो के प्रति अपनी संवेदनाएं भी प्रकट की।

उन्होंने वन विभाग के मुखिया डा धन्जय मोहन से वन अग्नि को फैलने से रोकने संबंधी जानकारी ली और उन्हे अपने विभाग को घटना स्थल पर मौजूद रहने और उनकी लगातार मॉनिटरिंग करने के लिए कहा। सीएम धामी ने आग बुझाने में लगे श्रमिको की कार्य कुशलता परखने पर भी जोर दिया।

डीजीपी अभिनव कुमार ने पुलिस और फायर सर्विस के द्वारा वनाग्नि आपदा में किए बचाव कार्यों और  जंगल में आग लगाने वालो के खिलाफ अब तक की गई एफआईआर के विषयो की जानकारी दी गई।

पत्रकारों को जानकारी देते हुए मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने बताया कि सीएम ने आग बुझाने के लिए जन सहभागिता की जरूरत बताई और सभी विभागों को तालमेल के साथ काम करने के लिए कहा है।

उल्लेखनीय है जंगल की आग से पहाड़ में धुंए और गर्मी का प्रकोप है साथ ही वन्य जीव , पंछी परिंदे भी अपने आप को सुरक्षित स्थानों की तरफ ले जा रहे है। जंगलों में जल स्रोत और तालाब भी सूख रहे है।

आज की बैठक में आपदा प्रबंध के उपाध्यक्ष विनय रुहेला , विशेष सचिव डा पराग धकाते, वन विभाग के अधिकारी, सभी जिलों के डीएम,एसएसपी और डीएफओ भी वर्चुअल बैठक से जुड़े।

आग के धुएं से जनजीवन प्रभावित

पहाड़ो में लगी आग के धुंए से शहरो और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले को परेशानी हो रही है, मीडिया में आग की खबरों को देखते हुए पर्यटक भी पहाड़ो की तरफ रुख नहीं कर रहे है।

बारिश ही आखिरी उम्मीद

पर्यावरण विशेषज्ञ मानते है कि सरकार के पर बरसो से आग पर काबू पाने के लिए कोई दीर्घकालीन योजना नही है। चीड़ के पत्तो से फैलनी वाली आग हर साल करोड़ों की वन संपदा को नष्ट करती है। चीड़ के पेड़ो से ज्वलनशील बिरोजा लीसा पदार्थ निकलता है, कहा जाता है कि लीसा ठेकेदार भी अपनी चोरी छिपाने के लिए भी ये आग लगाते है।

फॉरेस्ट विभाग हर साल आग को बुझाने के लिए सैकड़ो की संख्या में अस्थाई मजदूर रखता है जिनकी वास्तविक संख्या और कागजी संख्या पर भी सवाल उठते रहे है।

चीड़ के पत्तो को उठाने के लिए कई योजनाएं शुरू हुई लेकिन धरातल पर नहीं उतर पाई। आग पर काबू पाने का एक मात्र उपाय इंद्र भरोसे ही रहा है। लोकल रेनी सीजन शुरू होते ही आग अपने आप बुझने लगती है।

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