इस वर्ष अयोध्या में रामनवमी के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम देश-विदेश में कौतूहल का विषय बना। लेकिन इसी तिथि को बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी (वाराणसी) में विशाल भारत संस्थान और रामपंथ के संयुक्त प्रयास से ‘श्रीराम परिवार भक्ति आंदोलन’ का शुभारंभ हुआ। इसके अंतर्गत श्रीराम के जीवन चरित्र और उनकी भक्ति को हर परिवार तक पहुंचाने का संकल्प लिया गया।
उल्लेखनीय है कि इस आंदोलन के माध्यम से देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की अलख जगाने का दायित्व समाज के वंचित, जनजाति, किन्नर और महिला समुदाय को सौंपा गया।
काशी ही वह नगरी है, जहां से श्रीराम के आदर्श और भक्ति को समाज के निचले स्तर तक पहुंचाने का कार्य शुरू हुआ था।
मध्यकाल में जब भक्ति आंदोलन का सूत्रपात हुआ तब उत्तर भारत में जन्मे और काशी के विख्यात संतों में शामिल स्वामी रामानंद पहले आचार्य थे, जिन्होंने प्रभु श्रीराम की भक्तिधारा को समाज के निचले तबके तक पहुंचाया था। स्वामी जी ने उस समय वंचितों, अछूतों और महिलाओं को भक्ति के विस्तार में समान स्थान देने के लिए संस्कृत भाषा छोड़ हिंदी या जनभाषा को माध्यम बनाया था। अब उसी काशी में इस अभियान के द्वारा प्रभु श्रीराम के जीवन आदर्श और भक्ति से जुड़ी कथाओं के प्रचार-प्रसार के माध्यम से भारतीय संस्कृति, सामाजिक समरसता और धार्मिकता को पुनस्स्थापित करने का संकल्प लिया गया है।
काशी के लमही कस्बे में 16 और 17 अप्रैल को ‘श्रीराम संबंध कथा’ और ‘महादीक्षा संस्कार कार्यक्रम’ का आयोजन किया गया। इसमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के साथ ही पूर्वी उ.प्र. के वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, बलिया, आजमगढ़, जौनपुर, मऊ, गाजीपुर, बलरामपुर आदि जनपदों से बड़ी संख्या में वंचित समाज के लोगों ने भागीदारी करके श्रीराम कथा का श्रवण किया।
रामनवमी के दिन आयोजित ऐतिहासिक महादीक्षा संस्कार कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और रामपंथ के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार, रामपंथ के धर्माध्यक्ष महंत बालक दास और रामपंथ के पंथाचार्य डॉ. राजीव श्रीगुरु द्वारा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्रांति का सूत्रपात करते हुए 501 वंचित, जनजाति, मुसहर, किन्नर और महिलाओं को राममंत्र की दीक्षा देकर पुजारी बनाया गया। यह शायद पहला ऐसा अवसर है जब इतनी बड़ी संख्या में वंचित, किन्नर और महिलाओं को विधिवत प्रशिक्षण और दीक्षित कर पुजारी बनाया गया है।
पुजारी बने लोगों को श्रीराम का चित्र, खजाने में रखने के लिए अक्षत और पवित्र माला प्रदान की गई। रामपंथ की ओर से प्रत्येक पुजारी को 20 परिवारों में पूजा कराने का दायित्व सौपा गया है, ताकि घर- घर में प्रतिदिन राम की पूजा हो सके। दीक्षित महिलाओं को जानकीचार्या और पुरुषों को रामाचार्य की उपाधि प्रदान की गई। पुजारी की उपाधि मिलने के बाद रामपंथ से जुड़े रामभक्तों ने सभी पुजारियों के पैर छूकर उनका सार्वजनिक रूप से आशीर्वाद लिया। वहीं जीवन में पहली बार स्वयं को रामकाज का दायित्व मिलने से अधिकांश लोग आश्चर्यचकित और भाव विभोर हो गए।
श्रीराम संबंध मंदिर
सभी मत-पंथ के लोगों में एकता, सामाजिक समरसता और विश्वबंधुत्व का भाव स्थापित करने के लिए लमही में ‘श्रीराम संबंध मंदिर’ बनाया जा रहा है। इस मंदिर में भगवान राम सहित चारों भाइयों और उनकी पत्नियों तथा पवनपुत्र हनुमान जी की मूर्तियों की पूजा होगी। इस मंदिर की विशेषता यह होगी कि इसमें सभी मत-पंथ के लोग बिना किसी रोक-टोक के प्रवेश पा सकेंगे। इसके साथ ही मंदिर में वंचित, वनवासी, किन्नर आदि समाज के लोगों को पुजारी बनने का अवसर मिलेगा।
मिथक टूटा तो बह चली अश्रुधारा
कार्यक्रम में भागीदार महिलाएं, वंचित, वनवासी, मुसहर, धरकार और किन्नर समाज के लोगों को जब गुरुमंत्र लेकर पुजारी बनने का अवसर मिला तो वे भावविभोर हो गए। रामपंथ ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि हर दिन लोगों को भगवान राम के दर्शन और पूजन करने सौभाग्य मिल गया। कार्यक्रम में भागीदारी करने आए अधिकांश लोगों को पहले लगता था कि उनकी जाति की वजह से उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है और उन्हें धर्म से दूर रखा गया है। लेकिन जब गुरुदेव ने राममंत्र देकर महादीक्षा दी तो वह मिथक टूट गया और तमाम चेहरों पर खुशी के आंसू बह चले।
पुजारियों को दीक्षित करने के बाद कार्यक्रम में आए अति उत्साहित 1,100 लोगों ने रामपंथ के गुरुओं से दीक्षा लेकर ‘राम परिवार भक्ति आंदोलन’ का प्रचार-प्रसार करने का संकल्प लिया। श्रीराम परिवार भक्ति आंदोलन का मुख्य लक्ष्य समाज में टूटते परिवारों को बचाना और संबंधों के निर्माण का प्रयास करना है। कहा गया कि रामपंथ के आचार्य हर घर, गली, मुहल्ले में जाएंगे और राम मंत्र की दीक्षा से भेदभाव जैसी कुरीतियों को समाप्त करा कर संस्कृति के विस्तार और रामभक्ति आंदोलन से जन-जन को जोड़ने का काम करेंगे।
महादीक्षा संस्कार कार्यक्रम में इंद्रेश कुमार ने कहा, ‘‘रामपंथ ने राम परिवार भक्ति आंदोलन शुरू करके देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरुआत कर दी है। भगवान राम भारत के सांस्कृतिक नायक हैं और वे सभी के हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब भगवान राम किसी के बीच भेदभाव नहीं करते, तो हम कौन होते हैं भेदभाव करने वाले।’’
उन्होंने कहा कि दीक्षा कार्यक्रम के माध्यम से राम की भक्ति हर घर और टोले तक पहुंचेगी जिसके प्रभाव से परिवार बचेगा, संबंध बनेगा और बच्चे संस्कारवान बनेंगे। रामपंथ के दीक्षा गुरु महंंत बालक दास महाराज ने कहा कि ‘‘गुरु मंत्र कोई भी ले सकता है इसमें पंथ, जाति का भेदभाव नहीं है। जब लोग किसी मुसीबत में फंसें तो अपने गुरु मंत्र को याद करें। गुरु मंत्र किसी भी मुसीबत से निकलने में सहायता करेगा।’’ रामपंथ के पंथाचार्य राजीव श्रीगुरुजी ने कहा, ‘‘20 से 50 घरों की भक्ति टोली बनाई जाएगी और प्रशिक्षित पुजारी प्रतिदिन राम परिवार की पूजा-अर्चना करेंगे और रामपंथी संस्कृति को समाज में विस्तार देंगे, जिससे रामभक्ति आंदोलन को देश में जन-जन तक पहुंचाया जा सके।’’
उन्होंने कहा कि राम संबंध कथा के जरिए हम संबंधों को पुनर्जीवित करेंगे और रिश्तों को सुधारने में लोगों की मदद करेंगे। भगवान राम से संबंधों को मजबूत बनाने की विद्या सीखी जा सकती है। राम परिवार भक्ति आंदोलन के माध्यम से घर और परिवार में भावनात्मक रिश्तों का विकास करने की परंपरा शुरू हो गई है। भगवान कभी किसी से भेद नहीं करते। भगवान राम से किसी तरह का संबंध अवश्य बनना चाहिए। भगवान हर तरह के संबंध को निभाते हैं। निश्चित रूप से यह पहल समाज में समरसता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
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