कर्नाटक सेक्स स्कैंडल इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मामले में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के बेटे एचडी रेवन्ना और उनके पोते प्रज्वल रेवन्ना का नाम सामने आया है। लेकिन क्या आपको याद है आज से 32 साल पहले राजस्थान के अजमेर में भी एक सेक्स स्कैंडल सामने आया था, जिसमें फारुक चिश्ती नाम के एक इस्लामिक कट्टरपंथी ने 100 से अधिक स्कूली लड़कियों को ब्लैकमेल कर उनके साथ रेप किया।
आज बात करते हैं उस अजमेर सेक्स स्कैंडल की, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। ये घटना वर्ष 1990-1992 के बीच की है। इस सेक्स स्कैंडल में बड़े-बड़े घरानों की पीड़ित लड़कियों के नाम सामने आए थे। इसमें आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की बच्चियां तक शामिल थीं।
गौरतलब है कि इस कांड की शुरुआत कुछ यूं हुई थी, जहां फारुक चिश्ती नाम के मुस्लिम आरोपी ने सोफिया स्कूल की एक लड़की को पहले अपने झूठे प्रेम के जाल में फंसाया। इसके बाद उसका रेप किया। आरोपी चिश्ती ने बड़ी ही चालाकी से पीड़िता का अश्लील वीडियो बना लेता है। इसके बाद शुरू होती है दरिंदगी की नई कहानी। आरोपी इस वीडियो के जरिए लड़की को ब्लैकमेल करता है और उससे उसके स्कूल की दूसरी लड़कियों को लाने के लिए मजबूर करता है। जब पीड़िता किसी लड़की को आरोपी के पास लाती है, तो वो उसका भी रेप करता था और फिर उसके भी वीडियो बना लेता था। इसी के जरिए वो उस लड़की को भी ब्लैकमेल कर दूसरी लड़कियों को लाने के लिए मजबूर करता था।
एक के बाद दूसरी, तीसरी और फिर चौथी करते हुए ब्लैकमेल की ये संख्या लगातार बढ़ती ही चली गई। आरोपी ने कुल 100 से अधिक लड़कियों को अपने सेक्स स्कैंडल ट्रैप में फंसा लिया। घर वालों के सामने से ये लड़कियां आरोपी के पास फॉर्म हाउसों पर जाती थीं, लेकिन वे कुछ न कर पाने के लिए मजबूर थीं। इन लड़कियों को डरा-धमकाकर बुलाया जाता था।
अजमेर सेक्स स्कैंडल का मास्टरमाइंड फारुक चिस्ती था। इस अपराध में उसके साथ अनवर और नफीस चिस्ती भी शामिल थे। फारुक कांग्रेस की एक विंग का अध्यक्ष था। इन आरोपियों की पहुंच इस्लामिक दरगाहों के खादिमों तक थी। इस तरह से इन सभी आऱोपियों के पास धार्मिक और राजनीतिक ताकत दोनों थी। इस कारण से ये हर अपराध को आसानी से दबा देते थे। पुलिस को इस मामले की जानकारी थी, लेकिन सांप्रदायिक दंगे के डर से पुलिस ने आऱोपियों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया। पुलिस की निष्क्रियता का असर ये हुआ कि वक्त के साथ पूरे शहर में पीड़िताओं के अश्लील वीडियो जंगल की आग की तरह फैल गए।
इसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि पीड़ित लड़कियां एक के बाद एक करके आत्महत्या जैसे कदम उठाने लगीं। उस दौरान इस मामले को लेकर विश्व हिन्दू परिषद, शिवेसना औऱ बजरंग दल जैसे दलों ने अपनी आवाज को बुलंद किया। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने मामले में पुलिस को एक्शन लेने का आदेश दिया। सीएम के मौखिक आदेश के बाद जब पुलिस ने मामले की जांच की तो उसकी हालत खराब हो गई। इसके बाद पुलिस अधिकारियों ने मामले को दबाने के लिए बकायदा इस स्कैंडल को झूठा करार देते हुए चार लड़कियों के कैरेक्टर पर ही सवाल खड़ा कर दिया। ये कारनामा तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर किया। हालांकि, चौतरफा दबावों के बाद 30 मई 1992 को इस केस को सीबीसीआईडी को सौंप दिया गया।
इस जांच में युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती (शहर अध्यक्ष, युवा कांग्रेस), उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, अलमास महाराज. इशरत अली, इकबाल खान, सलीम,जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मोराडोना, महेश धुलानी, कैलाश सोनी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली और हरीश तेलानी जैसे अपराधियों के नाम सामने आए।
इस मामले में अजमेर कोर्ट ने 8 आरोपियों को दोषी ठहराया। बाद में आठों आरोपियों में से एक पुरुषोत्तम ने 1994 में आत्महत्या कर ली थी। इस मामले में 8 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
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