नई दिल्ली । नागरिक संशोधन अधिनियम के विरोध में वर्ष 2020 में देश की राजधानी दिल्ली में हुए दंगों (दिल्ली दंगा 2020) पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा- आरोपियों द्वारा विरोध स्थलों को धर्मनिरपेक्ष रंग देने के लिए हिंदू नाम दिया गया था। साजिशकर्ताओं का उद्देश्य विरोध प्रदर्शन को “चक्का जाम” तक बढ़ाना और एकत्रित भीड़ को हिंसा में शामिल करना था।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति मनोज जैन की बेंच ने यह टिपण्णी गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (UAPA) के तहत आरोपी बनाए गए एक शख्स की जमानत याचिका को खारिज करते हुए की।
हत्या के लिए वित्त, हथियारों की व्यवस्था
हाईकोर्ट की इसी बेंच ने आगे कहा, “20/21.02.2020 को चांद बाग में और फिर 22/23.02.2020 को बैठकों में आरोपियों ने दंगे जैसी हिंसा और दिल्ली को जलाने से संबंधित पहलुओं पर खुलकर चर्चा की थी। यह किसी भी लोकतांत्रिक देश में स्वीकार्य नहीं है। लोगों की हत्या के लिए वित्त, हथियारों की व्यवस्था करने, और संपत्ति में आग लगाने के लिए पेट्रोल बम खरीदने और इलाके में लगे सीसीटीवी को नष्ट करने पर भी बातचीत हुई।”
पुलिस के खिलाफ भीड़ को भड़काया गया
बेंच ने अपने आदेश में कहा, “साजिशकर्ताओं का उद्देश्य विरोध प्रदर्शन को चक्का जाम तक बढ़ाना था। एक बार बड़ी संख्या में भीड़ जुटने के बाद लोगों को पुलिस और अन्य लोगों के खिलाफ भड़काना था। आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया सही मामला बनता है, जिसके कारण यूएपीए की धारा 43-डी (5) के तहत जमानत पर रोक लगा दी जाती है।
53 लोगों ने गंवाई दंगों में जान…
शारजील इमाम, यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के संस्थापक खालिद सैफी और उमर खालिद और वर्तमान आरोपी सहित कई अन्य लोगों पर कथित तौर पर आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी 2020 के दंगों में 53 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हो गए थे। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान यह हिंसा भड़क गई थी।
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