हिंदुओं को संगठित कर एक माला मे पिरोने के लिए 36 वर्षीय नौजवान डॉक्टर ने 99 वर्ष पूर्व 1925 में एक ऐसे संगठन की स्थापना की जो आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। इसी स्वयंसेवी संगठन की छत्रछाया में विकसित और शिक्षित होकर निकले कार्यकर्ता आज देश का सर्वांगीण विकास कर रहे हैं। इस विशाल संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. केशव राव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, वि. सम्वत् 1946) को नागपुर के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में माता रेवती बाई की कोख से हुआ। पिता बलिराम वेद-शास्त्र एवं भारतीय दर्शन के विद्वान थे एवं वैदिक कर्मकाण्ड से परिवार का भरण-पोषण करते थे।
जन्म से बालक केशव के मन में देश भक्ति और समाज के प्रति संवेदनशीलता भरी थी। बचपन से ही क्रांतिकारी प्रवृति के थे। 8 वर्ष की आयु में देशभक्ति की झलक समाज को मिली जब बालक ने इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के शासन के 60 वर्ष होने पर बांटी मिठाई न खाकर कूड़े में फेंक दी। स्कूली जीवन में ही छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पढ़कर बालक हेडगेवार के मन में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विचारों के बीज पड़ गये थे। नागपुर के सीताबर्डी किले पर ब्रिटिश शासन का प्रतीक “यूनियन जैक” फहरता देख हेडगेवार और उनके दोस्तों की आत्मसम्मान आहत होता था। उन्होंने सोचा कि अगर यूनियन जैक को हटाकर वहां भगवा ध्वज फहरा दिया जाए तो किला फतह हो जाएगा। सभी बच्चों ने अपनी मंशा को अंजाम देने के लिए योजना बनानी शुरू कर दी। किले पर हरदम पहरा रहता था इसलिए सबने तय किया कि किले तक एक सुरंग बनायी जाएगी और उसके रास्ते अंदर घुसकर ब्रिटिश झंडा हटा दिया जाएगा। योजना बनते ही उस पर अमल भी शुरू हो गया। वे जिस वेदशाला में पढ़ते थे वह प्रसिद्ध विद्वान श्री नानाजी वझे के नेतृत्व में चल रही थी। योजना के अनुरूप पढ़ाई के कमरे में बच्चों ने कुदाल-फावड़े से सुरंग खोदने का काम शुरू कर दिया। बच्चों की इस गुप्त योजना के परिणामस्वरूप नानाजी वझे के घर का पढ़ाई का कमरा कुछ ज्यादा ही बंद रहने लगा। कुछ दिनों बाद पढ़ाई के कमरे को अक्सर बंद देखकर नानाजी वझे को शंका हुई। अपनी शंका के निराकरण के लिए जब वो कमरे के अंदर गए तो वहां एक तरफ गड्ढा खुदा हुआ था और दूसरी तरफ मिट्टी का ढेर लगा था।
बालक केशव ने स्कूल में ही पढ़ते हुए निरीक्षण के लिए आए अंग्रेज इंस्पेक्टर अपने कुछ सहपाठियों के साथ “वन्दे मातरम” के जयघोष से स्वागत किया जिस पर अंग्रेज इंस्पेक्टर बिफर गया और उसके आदेश पर केशव राव को स्कूल से निकाल दिया गया। जिसके बाद इन्होंने मैट्रिक तक अपनी पढाई पूना के नेशनल स्कूल में पूरी की |
1910 में जब डॉक्टरी की पढाई के लिए कोलकाता गये तो उस समय वहां क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समिति से जुड़ गए। घर से कलकत्ता गये तो थे डाक्टरी पढने परन्तु वापस आये क्रान्तिकारी बनकर। 1915 में नागपुर लौटने पर वह कांग्रेस में सक्रिय हो गये और कुछ समय में विदर्भ प्रांतीय कांग्रेस के सचिव बन गये। 1920 में जब नागपुर में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ तो डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार ने कांग्रेस में पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता को लक्ष्य बनाने के बारे में प्रस्ताव प्रस्तुत किया जो तब पारित नहीं हुआ। 1921 में कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन में सत्याग्रह कर गिरफ्तारी दी और उन्हें एक वर्ष की जेल हुई।
नौजवान केशव अक्सर सोचा करते थे कि प्राचीन भारत में सैन्य शक्ति, अतुल्य समृद्धि और गौरवशाली संस्कृति होने के बावजूद हम गुलाम हुए। कांग्रेस में पूरी तन्मन्यता के साथ भागीदारी और जेल जीवन के दौरान भी जो अनुभव पाए, उससे वह यह निष्कर्ष निकालने को मजबूर हुए कि समाज में जिस एकता और धुंधली पड़ी देशभक्ति की भावना के कारण हम परतंत्र हुए हैं, वह केवल कांग्रेस के जन आन्दोलन से जागृत और मजबूत नहीं हो सकती। डॉ हेडगेवार के इसी चिन्तन एवं मंथन का प्रतिफल थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से संस्कारशाला के रूप में शाखा पद्धति की स्थापना, जो दिखने में साधारण किन्तु परिणाम में चमत्कारी सिद्ध हुई। उन्होंने 28 सितम्बर 1925 को विजयदशमी के शुभ अवसर पर कुछ नौजवानों को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की थी। इस संगठन को आरएसएस का नाम साल भर के गहन विचार-विमर्श और अनेक सुझावों के बाद दिया गया। इसी संस्था के माध्यम से वे अंग्रेजों को धूल चटाते रहे और भारत की आजादी की लड़ाई में सहयोग देते रहे। आज भारत में इसी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) संगठन द्वारा समाज भलाई सेवाओं और परियोजनाओं का विशालतम नेटवर्क संचालित किया जा रहा है।
1925 में विजयदशमी के दिन संघ कार्य की शुरुआत के बाद 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास किया गया और जब 26 जनवरी 1930 को देश भर में तिरंगा फहराने का आह्वान किया तो डॉ. हेडगेवार के निर्देश पर सभी संघ शाखाओं में तिरंगा फहराकर पूर्ण स्वराज प्राप्ति का संकल्प किया गया। दिसम्बर 1930 में जब महात्मा गांधी द्वारा नमक कानून विरोधी आन्दोलन छेड़ा गया तो उसमे भी उन्होंने संघ प्रमुख (सरसंघचालक) की जिम्मेदारी डॉ॰ परापंजे को सौप कर व्यक्तिगत रूप से अपने एक दर्जन सहयोगियों के साथ भाग लिया जिसमें इन्हें 9 माह की कैद हुई।
राष्ट्र को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ हिन्दू समाज को संगठित, अनुशासित एवं शक्तिशाली बनाकर समाज में स्वार्थी जीवन, छुआछूत, ऊंच-नीच की भावना, परस्पर सहयोग की भावना की कमी, इन सब बुराइयों से दूरकर देश के प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र निर्माण और देश सेवा के लिए संगठित करना ही संघ-शाखा का उद्देश्य है। इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया और अपने शरीर की कोई परवाह नहीं की, जिसका परिणाम हुआ कि 15 वर्ष के अल्प काल में ही उन्हें गंभीर बीमारियों ने घेर लिया। 1940 के संघ शिक्षा में उन्हें तेज बुखार ने घेरा हुआ था, बिस्तर से उठा नहीं जा रहा था लेकिन इनकी स्वयंसेवको के दर्शनों की जिद्द के कारण 9 जून के सार्वजानिक समापन समारोह के कार्यक्रम में मार्गदर्शन देने का तय हुआ। उन्होंने संघ कार्य को ही जीवन का प्रमुख कार्य मानने का सबको आह्वान करते हुए कहा कि “मैं बीमारी के कारण आप सभी की कोई सेवा नहीं कर पाया”। संघ शिक्षा वर्ग के समापन के केवल 9 दिन बाद 21 जून 1940 को सुबह 9 बजकर 27 मिनट पर डॉक्टर साहब की आत्मा अनंत आकाश में विलीन हो गई। नागपुर के रेशिम बाग़ में इनका अंतिम संस्कार किया गया। उसी तपो भूमि पर उनका प्रेरणादायक स्मृति मंदिर बना है।
डॉ. हेडगेवार के ही संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से निकले कार्यकर्ता आज देश और राज्यों में मजबूत सरकार चलाते हुए पूरी दुनिया में हिंदुस्तान की ताकत और महान संस्कृति दर्शन करवा रहे हैं। पूरा विश्व भारत के सुपर पॉवर बनने की बातें कर रहा है। आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी की जयंती पर शत शत नमन्।
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