गोवा देश का सबसे छोटा राज्य होने के बावजूद भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण राज्य जाना जाता है। गोवा में उत्तर गोवा और दक्षिण गोवा, दो लोकसभा चुनाव क्षेत्र हैं। 1999 से उत्तर गोवा को भाजपा ने श्रीपाद नाईक के दम पर अभेद्य बनाये रखा है और इसी कालखंड में दक्षिण गोवा की सीट को 1999 व 2014 में जीतने में कामयाब रही है। इस बार भाजपा ने फिर श्रीपाद नाईक पर भरोसा जताया है और दक्षिण गोवा से महिला उम्मीदवार और नए चेहरे पल्लवी धेंपो को मैदान में उतारा है।
श्रीपाद नाईक के खिलाफ कांग्रेस ने रमाकांत खलप को मैदान में उतारा है। 1999 में श्रीपाद नाईक, रमाकांत खलप को ही पछाड़ कर पहली बार सांसद बने थे। तब से खलप राजनीति से दूर ही थे। उन्हें टिकट देना कांग्रेस का अंतिम पैंतरा दिखता है, क्योंकि 25 वर्ष में इस इलाके से न तो कांग्रेस कोई नया चेहरा तैयार कर पाई और न ही उसके कार्यकर्ता जमीन पर तैयार हुए। तब से लगातार राज्य के मुख्यमंत्री रहे स्व. मनोहर पर्रिकर और पार्टी के अन्य कार्यकर्ताओं के प्रयास से भाजपा अपनी जड़ें मजबूत करने में कामयाब रही है। इस बार मजबूत संगठन, विधानसभा चुनावों में स्थानीय पक्ष के साथ गठबंधन और बिखरे हुए अन्य प्रत्याशियों के कारण भाजपा लगातार छठी बार उत्तर गोवा में जीतती दिख रही है।
कांग्रेस ने दक्षिण गोवा से चार बार के सांसद फ्रांसिस सार्दीन को टिकट न देकर पूर्व नौसेना अधिकारी कैप्टन विरियेतो फर्नांडिस को प्रत्याशी बनाया है। वहीं, भाजपा ने पहली बार महिला उम्मीदवार पल्लवी धेंपो को मैदान में उतारा है। पल्लवी गोवा के प्रख्यात धेंपो परिवार से हैं। इस परिवार की खनन, मीडिया, खाद्य, जहाज निर्माण के साथ—साथ अन्य उद्योग धंधों में मौजूदगी है। लंबे समय से भाजपा से जुड़ाव के साथ-साथ शिक्षा, धार्मिक, आर्थिक व सामाजिक कार्यों में उनका योगदान रहा है। इस संसदीय क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं की संख्या ज्यादा है।
1999 के मुकाबले 2014 में भाजपा दोगुने मतों से जीत दर्ज की थी। लेकिन 2019 में वह मात्र दस हजार वोटों से हार गई थी। कांग्रेस और भाजपा के परंपरागत मतदाता अपने-अपने दलों को मतदान करते आए हैं, पर कुछ नए मतदाता हर बार हार-जीत का अंतर तय करते हैं। 2014 में आआपा, तृणमूल कांग्रेस और स्वतंत्र उम्मीदवारों में वोट बंटने का फायदा भाजपा को मिला और 2019 में आआपा छोड़कर बाकी सभी स्वतंत्र उम्मीदवारों के वोट कांग्रेस की झोली में चले गए थे। इस बार मुकाबले के रोमांचक होने की पूरी संभावना है। इंडी गठबंधन के कारण आआपा और तृणमूल कांग्रेस के वोट कांग्रेस के पक्ष में जाएंगे, पर स्थानीय महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी से गठबंधन के कारण भाजपा को अच्छे परिणामों की आशा है। इस बार भी इस लोकसभा सीट से हार और जीत का फासला 10—20 हजार वोटों का रहने वाला है और भाजपा अपने ईसाई विधायकों के दम पर इस सीट को इससे ज्यादा मतों से जीतने का पूरा प्रयास करेगी।
राज्य में हर चुनाव में चर्च खुलकर बताता आया है कि किस उम्मीदवार को और किस पार्टी को वोट देना है। 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विधायक जब भाजपा में शामिल हुए तो चर्च ने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की थी। दक्षिण गोवा की सीट पर ईसाई मतदाता निर्णायक हैं, लेकिन इस बार उनके नेता यानी स्थानीय विधायक भाजपा में हैं। ऐसे में ईसाई मतदाताओं का समीकरण कैसे बैठेगा, यह देखने वाली बात होगी। लेकिन क्या ईसाई मतदाता अपने इलाके के विधायकों के प्रभाव से भाजपा को वोट करेंगे या हर बार की तरह चर्च के फरमान का पालन करेंगे, यह बात साबित करेगी कि क्या भाजपा दक्षिण गोवा में इस बार बूथ स्तर पर अपना काम करने में कामयाब हुई या नहीं।
राष्ट्रीय दल स्थानीय मुद्दों पर बात या काम नहीं करते, इसी मानसिकता से 2022 के विधानसभा चुनाव में स्थानीय दल रेवोल्यूशनरी गोवन ने जोर आजमाया और 2 सीटें जीतने में सफल रहा। इस बार भी उसने दोनों सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। उनकी जीतने की संभावनाओं से ज्यादा वह किस मुख्य पार्टी के वोट काटने में सफल रहेंगे, यह चर्चा का विषय है। राज्य में विपक्षी दलों ने सभी प्रकार के विकास कामों का विरोध करना, म्हादई नदी, अनुसूचित जाति आरक्षण और अन्य जातीय आधार पर बेवजह सामाजिक असंतोष निर्माण कर राज्य की अस्मिता का मुद्दा उठाया, पहचान के साथ भाषा को मुद्दा बनाकर ध्रुवीकरण करने की पूरी कोशिश की, लेकिन ज्यादा कामयाब नहीं रहे।
उत्तर गोवा में भाजपा की राह आसान है पर दक्षिण गोवा में कांटे की टक्कर है। 2019 के चुनाव में, स्थानीय दलों ने तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन कर जो मत काटे वह भाजपा की हार का कारण बने। लेकिन इस बार स्थानीय दलों ने भाजपा के साथ गठबंधन किया है तो निश्चित ही भाजपा को इसका लाभ मिलेगा।
सालसेत में मात्र 3 विधानसभा चुनाव क्षेत्र से ईसाई वोट के कारण कांग्रेस को 35 हजार से ज्यादा मतों का फायदा होता है। अगर इन तीनों क्षेत्रों के साथ अन्य हिन्दू बहुल क्षेत्रों से ज्यादा हिन्दू मतदाता वोट करेंगे तो निर्णय भाजपा के पक्ष में होगा और भाजपा नए चेहरे के साथ दक्षिण गोवा भी जीत सकेगी। भाजपा और कांग्रेस के सालों से बने निष्ठावान और पारंपरिक मतदाता उन्हीं को मतदान करेंगे, पर नए मतदाता और पाला बदलने वाले लोग इस बार उत्तर गोवा में भाजपा के जीत के अंतर और दक्षिण गोवा में हार या जीत का निर्णय करेंगे।
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