भारत के पड़ोस में हिमालयी देश नेपाल में देश को फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। वहां रह—रहकर अनेक संगठन सड़कों पर उतर रहे हैं और राजशाही के पक्ष में आंदोलन कर रहे हैं। हालांकि शासन की तरफ से ऐसे प्रदर्शनों पर सख्ती बरती जा रही है, लेकिन नेपाल के राजनीतिक विश्लेषकों में यह चर्चा चलने लगी है क्या नेपाल एक बार फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित हो पाएगा? क्या यहां फिर से यहां हिन्दू राजा का राज आएगा?
राजधानी काठमांडू में आएदिन हिन्दू राष्ट्र की मांग को लेकर हो रहे प्रदर्शनों की कड़ी में कल वहां हुआ प्रदर्शन प्रचंड ही कहा जाएगा। इसमें पुरुषों के साथ महिलाओं की भी अच्छी—खासी भागीदारी देखने में आई। नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग को लेकर जमा हुए सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को तितरबितर करने के लिए पुलिस ने कड़ी कार्रवाई की। उसकी और प्रदर्शनकारियों की खूब झड़प हुई। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले दागे और पानी की तेज बौछारें कीं।
इस प्रदर्शन की अगुआई राष्ट्रवादी ‘राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी’ को बताया गया है। यही पार्टी है जो इस मांग पर सबसे ज्यादा मुखर है। बता दें कि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी देश की पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी मानी जाती है। इस पार्टी के प्रवक्ता मोहन श्रेष्ठ कहते हैं कि नेपाल में राजशाही बहाल होनी ही चाहिए, यह पहले की तरह एक हिंदू राष्ट्र घोषित होना चाहिए। देश में संघीय व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। पार्टी इन मांगों को लेकर लंबे समय से आंदोलनरत है।
दिलचस्प बात यह कि प्रदर्शनकारियों के हाथों में शंख थे जिससे उन्होंने काठमांडू में बड़े सरकारी भवनों के सामने जबरदस्त शंखनाद किया। उन्होंने हिन्दू राष्ट्र के समर्थन में खूब नारे लगाए। पुलिस ने राजधानी में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए हल्का लाठीजार्च किया और फिर आसूंगैस दागी। दोनों पक्षों में खूब टकराव हुआ।
गत सप्ताह भी सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने ऐसा ही एक प्रदर्शन किया था। वे प्रधानमंत्री कार्यालय तथा अन्य सरकारी कार्यालयों तक नारे लगाते हुए जाना चाहते थे। उनके नारों का सार था कि वे अपने देश तथा राजा पर जान छिड़कते हैं। उनकी भी मांग थी कि गणतंत्र व्यवस्था समाप्त करके देश में राजशाही को वापस स्थापित किया जाए। उस दिन भी पुलिस की सख्ती से कई प्रदर्शनकारियों को गंभीर चोटें आई थीं।
उल्लेखनीय है कि हिमालयी देश नेपाल को 2007 में पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था। इसके अगले साल राजशाही व्यवस्था समाप्त कर दी गई थी। वैसे वहां 2006 में ही राजशाही के विरुद्ध उफान आया था। विद्रोह हुआ था। हफ्तों तक लगातार हुए प्रदर्शनों को देखते हुए उस वक्त के राजा ज्ञानेंद्र ने राज खत्म करने की घोषणा करते हुए अपनी सभी शक्तियां संसद को सौंप दी थीं।
वर्तमान में भी यह नहीं कहा जा सकता कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ा है। प्रचंड ने कम्युनिस्ट नेता और पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की अगुआई वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के साथ नई सरकार गठित की। इस सरकार को चीनी झुकाव वाली सरकार माना जाता है।
इसके बाद 2007 में नेपाल पंथनिरपेक्ष देश घोषित हुआ। अगले वर्ष राजशाही को आधिकारिक रूप से समाप्त करके चुनाव सम्पन्न कराए गए थे। नेपाल में 240 साल से चली आ रही राजशाही का इस प्रकार अंत होगा, यह किसी ने भी नहीं सोचा था। 2007 के बाद से अब तक उस हिमालयी देश में 13 सरकारों का शासन रहा है, लेकिन सही मायनों में राजनीतिक स्थिरता नहीं आ पाई। सरकार के हर तरह के समीकरण और गठबंधन असफल ही साबित हुए।
वर्तमान में भी यह नहीं कहा जा सकता कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ा है। प्रचंड ने कम्युनिस्ट नेता और पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की अगुआई वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के साथ नई सरकार गठित की। इस सरकार को चीनी झुकाव वाली सरकार माना जाता है।
लेकिन आज सवाल है कि असफल होते आ रहे शासन के राजनीतिक समीकरण क्या नेपालवासियों को फिर से राजशाही लाने और विश्व के एकमात्र घोषित हिन्दू राष्ट्र बनने की ओर ले जा रहे हैं? फिलहाल इस सवाल का जवाब धुंधलके में ढका है। शायद कुछ और वक्त बीतने के बाद स्थितियां और स्पष्ट हों।
फिलहाल तो वहां चीन अपना शिकंजा कसते जाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। कम्युनिस्ट दलों की मिलीजुली सरकार में वह ताकत नहीं है कि कम्युनिस्ट ड्रैगन को खरा जवाब दे पाए। इसलिए भविष्य में आशा लिए लोगों को राजशाही में उम्मीद की किरण नजर आ रही हो तो इसमें आश्चर्य नहीं है।
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