दिल्ली में बाइक से स्टंट करने के आरोप में 20 साल के कृष्णा गौतम को पुलिस ने मायापुरी से गिरफ्तार किया। जबकि गौतम को बाइक पर स्टंट करते हुए अपनी और दूसरों की जान को खतरे में डालना कभी अपराध लगा ही नहीं। इसलिए उसने थाने में लगी अपनी बाइक निकाल कर, अपने दोस्त की मदद से स्टंट करते हुए अपनी एक रील बनाई और रील को ‘स्टंट करना अपराध नहीं है’ संदेश के साथ उसने सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। होना क्या था, उसके बाद रैश ड्राइविंग के लिए उस पर कानूनी धाराएं लगीं और उसकी केटीएम मोटरसाइकिल एक बार फिर दिल्ली पुलिस द्वारा जप्त कर ली गई है।
स्टंट और रैश ड्राइविंग जैसा ही कुछ नजारा इन दिनों दिल्ली सरकार में भी देखने को मिल रहा है। जहां दिल्ली सरकार के प्रवक्ता भी कह रहे हैं कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वह अपराध की श्रेणी में नहीं आता। जबकि दिल्ली की सरकार को इसके मुखिया अरविंद केजरीवाल अपने नेतृत्व में केटीएम मोटरसाइकिल की ही तरह चलाने की कोशिश कर रहे हैं। जहां आम आदमी पार्टी के नेता ना राज्यपाल को सुनने को तैयार हैं और ना ही उच्च न्यायालय की बात उनकी समझ में आ रही है। जो बात उनके हक में नहीं है, वह बात कहने वाला भ्रष्ट है। सरकार के प्रतिनिधियों में अहंकार ऐसा कि वे प्रेस कांफ्रेन्स में कह रहे हैं कि जिन दस्तावेजों और तर्कों को उच्च न्यायालय में महत्व नहीं मिला, उसी के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय से अपने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को निकाल कर ले आएंगे। वे आन रिकॉर्ड बता रहे हैं कि ऐसा उन्होंने पहले अपने नेता संजय सिंह के मामले में भी किया है।
की फरक पैंदा ऐ
दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज जब प्रेस कांफ्रेन्स कर रहे थे, सुनकर ऐसा ही लगा कि वे उच्च न्यायालय की टिप्पणियों को कोई महत्व नहीं दे रहे। वे पूरी तरह आश्वस्त हैं कि यहां से कुछ नहीं हुआ तो क्या हुआ, सर्वोच्च न्यायालय से वे अपना काम करा लाएंगे। आम आदमी पार्टी गली मोहल्ले की पार्टी नहीं है। उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है। इसलिए पार्टी के नेताओं को एक-एक बात अब सोच समझ कर बोलनी चाहिए। क्योंकि ये बयान पीछा छोड़ने वाले नहीं हैं।
आरोप लगाने की आदत जा नहीं रही
देखा जाए तो आम आदमी पार्टी के अंदर बारह वर्षों में आरोप लगाने की आदत में कोई बदलाव नहीं आया। वही आदत है, आरोप लगाना है लेकिन उसके प्रमाण नहीं देने हैं। आम आदमी पार्टी के इतिहास में आज तक एक मामला नहीं है जिसमें उन्होंने आरोप लगाकर, मामले को अंजाम तक पहुंचाया हो। दिल्ली में इस पार्टी की छवि आरोप लगाकर भागने वाली पार्टी की बनी है। पार्टी के प्रवक्ता सिर्फ ऊंचा बोलना जानते हैं और अपने सामने वाले की ना सुनने की आदत इनकी बहुत पुरानी है। वह दिलीप पांडेय हों, आतिशी हों, संजय सिंह हों, संजीव झा हों, इन्हें सिर्फ अपनी बात कहनी है। चैनल हो या मंच, यह किसी की सुनते नहीं।
कुछ नहीं बदला
12 साल पुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का भाषण है। जिसमें वे कह रहे हैं — भ्रष्टाचार के खिलाफ नाटक चल रहा है। थोड़े बहुत कठपुतलियों को जेल भेजा जाएगा। नाटक चल रहा है जेल में। कलमाडी जिस दिन छुटा जेल से, उसने सीबीआई कोर्ट में अर्जी दी थी। कोर्ट के अंदर मुझे बेल मिलनी चाहिए। जब सीबीआई से जज ने पूछा कि इसे बेल मिलनी चाहिए। सीबीआई का वकील चुप हो गया। विरोध नहीं किया। क्यों नहीं किया? क्योंकि सीबीआई को ऊपर से आर्डर मिल गया था। कलमाडी को बाहर निकलना है। 12 साल पुराने इस बयान में सुरेश कलमाडी की जगह संजय सिंह कर लीजिए और सीबीआई की जगह ईडी डाल दीजिए। फिर आपको लगेगा कि यह बयान अरविंद केजरीवाल का नहीं संजय सिंह, सौरभ भारद्वाज या आतिशी का है। कुछ नहीं बदला। बदली तो सिर्फ इनकी जीवनशैली। अपनी सरकारी नौकरी के वेतन से अरविंद केजरीवाल जितना पैसा कमा नहीं पाते, उससे अधिक पैसे उन्होंने अपने सरकारी घर के रिनोवेशन पर खर्च कर दिए। सरकारी नौकरी करते तो इतने महंगे फोन बार-बार नहीं बदलते, जितने फोन उन्होंने कथित शराब घोटाले की समयावधि में बदल लिए। कहते थे कि नेता को सरकारी सुविधा नहीं लेनी चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के घर में लगे एसी पर सवाल उठाते थे। अब तक करोड़ों रुपए अपनी सुख-सुविधा के लिए खर्च कर चुके हैं। एसी की बात कौन करे? शौचालय में कमोड तक 4 लाख रुपए का लगवाया।
अन्ना के मंच से कहा करते थे
जबकि अरविन्द केजरीवाल 2012 में अन्ना के मंच से कहा करते थे कि उम्मीदवार को चरित्रवान होना चाहिए। ऐसे लोग होने चाहिए जिनके मन में देश के लिए प्रेम हो। जिन्होंने समाज सेवा की हो। ऐसे उम्मीदवार का चयन कैसे किया जाएगा? ऐसे लोग संसद में जाने चाहिए। आम आदमी पार्टी में ताहिर हुसैन से लेकर संदीप कुमार जैसे नेता किस प्रक्रिया से चुनकर आए थे? यह पार्टी से पूछा जाना चाहिए।
अन्ना हजारे के मंच से अरविंद केजरीवाल कहा करते थे, जैसाकि अन्नाजी ने कहा कि इस कुर्सी के अंदर कुछ ना कुछ समस्या है। जो इसके ऊपर बैठता है, वही गड़बड़ हो जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस आंदोलन से जब विकल्प निकलेगा और वे लोग जब कुर्सी पर जाकर बैठेंगे, कहीं वे ना भ्रष्ट हो जाएं। कहीं वे ना गड़बड़ करने लग जाएं। यह भारी चिंता है, हम लोगों के मन में। हमारे मन में बहुत डर है कि इस आंदोलन से जब राजनीतिक विकल्प खड़ा हो तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि उसमें से भ्रष्टाचार को जन्म देने की कोई प्रवृत्ति निकले। यह आंदोलन व्यवस्था परिवर्तन के लिए है। सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं।
इतनी अच्छी अच्छी बातें मंच से कहने वाले अरविंद केजरीवाल कुर्सी पर बैठने के 11—12 सालों में आकंठ भ्रष्टाचार के आरोप में डूब गए। अरविंद केजरीवाल के जेल में होने की स्थिति में उनकी धर्मपत्नी सुनीता केजरीवाल को ऐसे लोगों के बीच जाकर बैठना पड़ा जिन्हें केजरीवाल भ्रष्टाचारी कहते थे। यह बात आम आदमी पार्टी के समर्थकों को तय करना है कि जिन्हें पति भ्रष्टाचारी मानता है, उनके साथ अपनी धर्मपत्नी को बैठाने के लिए मजबूर व्यक्ति, तरक्की के रास्ते पर है या उसका पतन हो रहा है?
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के लिए
अरविंद केजरीवाल ही थे जो 2011 में कांग्रेस के लिए कहा करते थे कि इन्होंने 2जी घोटाला किया है, इनके पास दो लाख करोड़ रुपए हैं। कोयला घोटाला किया, दो लाख करोड़ रुपए उसमें आ गए। फिर कामनवेल्थ घोटाला किया, सत्तर हजार करोड़ रुपए उसमें आ गए। कांग्रेस ने करीब सौ-डेढ़ सौ लाख करोड़ कमा कर रखे हुए हैं। ये तो एक-एक वोट खरीदने के लिए लोगों को एक-एक लाख रुपए भी दे देंगे।
उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो को लेकर क्या सोच थी अरविंद की, वे कहते थे मुलायम सिंह जी कहते हैं कि हमको दे दो उत्तर प्रदेश। हम सुधार देंगे। जब पांच साल पहले मिला था आपको उत्तर प्रदेश तो आपने दो लाख करोड़ का तो राशन चोरी कर लिया। पुलिस में भर्तियों के लिए आपने पैसे खाए। अब कैसे मान लें कि आपको उत्तर प्रदेश मिल गया तो आप उत्तर प्रदेश सुधार दोगे?
पारदर्शी आंदोलन
यह बात कैसे भुलाई जा सकती है कि अरविंद कहा करते थे — अन्ना आंदोलन की यह खूबसूरती है कि पूरा आंदोलन पारदर्शी है। जो प्रश्न हमारे मन में होते हैं। वह जनता के सामने रख देते हैं लेकिन आंदोलन के आम आदमी पार्टी में बदलते ही, सब बदलने लगा। उसकी पारदर्शीता खत्म हो गई। सब पुराने और प्रतिबद्ध लोग एक-एक करके पार्टी छोड़कर चले गए। जो बचे उन्हें सत्ता चाहिए थी। पार्टी को अब झूठ, फरेब, मक्कारी से कोई परहेज नहीं था। अरविंद कहते थे कि वे जनता को कुछ दे नहीं सकते लेकिन सत्ता में भागीदारी देंगे। सत्ता को जनता चलाएगी। 12 सालों में सब कुछ बदल गया। मुख्यमंत्री की कुर्सी जो अरविंद की जूते की नोक पर हुआ करती थी, आज स्थिति यह है कि शराब घोटाले वाले मोबाइल के साथ अरविन्द का सत्ता को नोक पर रखने वाला जूता भी लापता है। ईडी को मोबाइल और दिल्ली की जनता को उस जूते की तलाश है।
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