जन-जन के नायक हैं छत्रपति शिवाजी महाराज, लेकिन स्वयं शिवाजी के नायक कौन?
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जन-जन के नायक हैं छत्रपति शिवाजी महाराज, लेकिन स्वयं शिवाजी के नायक कौन?

स्वामी विवेकानंद ने कहा था- ‘क्या शिवाजी से बड़ा कोई नायक, संत, भक्त और राजा है? हमारे महान ग्रंथों में मनुष्यों के जन्मजात शासक के जो गुण हैं, शिवाजी उन्हीं के अवतार थे

by WEB DESK
Apr 12, 2024, 02:45 pm IST
in भारत, महाराष्ट्र
छत्रपति शिवाजी महाराज

छत्रपति शिवाजी महाराज

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स्वामी विवेकानंद ने कहा था- ‘क्या शिवाजी से बड़ा कोई नायक, संत, भक्त और राजा है? हमारे महान ग्रंथों में मनुष्यों के जन्मजात शासक के जो गुण हैं, शिवाजी उन्हीं के अवतार थे। वह भारत के असली पुत्र की तरह थे जो देश की वास्तविक चेतना का प्रतिनिधित्व करते थे। उन्होंने दिखाया था कि भारत का भविष्य अभी या बाद में क्या होने वाला है। एक छतरी के नीचे स्वतंत्र इकाइयों का एक समूह, जो एक सर्वोच्च अधिराज्य के अधीन हो।’

शिवाजी महाराज जन-जन के नायक हैं। लेकिन स्वयं शिवाजी का नायक कौन है? शिवाजी महाराज ने विदुर, कृष्ण, चाणक्य, शुक्राचार्य, हनुमान और राम-सभी को आत्मसात किया था।

शिवाजी की पहली नायक उनकी मां जीजाबाई हैं। जिन्होंने बचपन से ही उनको रामायण और महाभारत की शिक्षा दी। महात्मा विदुर ने कहा था-

कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम्।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत्॥
(महाभारत विदुरनीति)

अर्थात् जो (आपके प्रति) जैसा व्यवहार करे उसके साथ वैसा ही व्यवहार करो। जो तुम पर हिंसा करता है, उसके प्रतिकार में तुम भी उस पर हिंसा करो! मैं इसमें कोई दोष नहीं मानता, क्योंकि शठ के साथ शठता करना ही उचित है। और जब शिवाजी ने अफजल खां का वध किया, तो जाहिर तौर पर उनकी यही शिक्षा उनकी प्रेरणा थी।

शिवाजी महाराज ने घुड़सवारी, तलवारबाजी और निशानेबाजी दादोजी कोंडदेव से सीखी थी।

भगवा ध्वज और गुरु के प्रति असीम श्रद्धा : एक कथा के अनुसार:-

छत्रपति शिवाजी के गुरुदेव, समर्थ गुरु रामदास एक दिन गुरु भिक्षा लेने जा रहे थे। उन पर शिवाजी की नजर पड़ते ही प्रणाम कर निवेदन किया, ‘हे गुरुदेव! मैं अपना पूरा राज-पाट आपके कटोरे में डाल रहा हूं! अब से मेरा राज्य आपका हुआ!’ तब गुरु रामदास ने कहा, ‘सच्चे मन से दे रहे हो! वापस लेने की इच्छा तो नहीं?’ ‘बिलकुल नहीं! यह सारा राज्य आपका हुआ!’ ‘तो ठीक है! यह लो!’ कहते कहते गुरु ने अपना भगवा चोला फाड़ दिया! उसमें से एक टुकड़ा निकाला और शिवाजी के मुकुट पर बांध दिया और कहा, ‘लो! मैं अपना राज्य तुम्हें सौंपता हूं, इसे चलाने और देखभाल के लिए। मेरे नाम पर राज्य करो! मेरी धरोहर समझ कर! मेरी तुम्हारे पास अमानत रहेगी।’ ‘गुरुदेव! आप तो मेरी भेंट लौटा रहे हैं.’ कहते-कहते शिवाजी की आंखें गीली हो गयीं।
‘ऐसा नहीं! कहा न मेरी अमानत है. मेरे नाम पर राज्य करो. इसे धर्म राज्य बनाये रखना, यही मेरी इच्छा है.’ ‘ठीक है गुरुदेव! इस राज्य का झंडा सदा भगवा रंग का रहेगा! इसे देखकर आपकी तथा आपके आदर्शों की याद आती रहेगी।’
‘सदा सुखी रहो! कहकर गुरु रामदास भिक्षा हेतु चले दिए! तब से मराठा साम्राज्य का ध्वज भगवा रंग का रहा।

शिवाजी महाराज से जुड़ा एक प्रसंग यह भी, बुजुर्ग महिला से ली सीख

शिवाजी हमारे नायक हैं। आज भी शिवाजी की संगठन कुशलता का उदाहरण दिया जाता है। लेकिन शिवराय के समय मराठा अलग-अलग रहते थे, अलग-अलग लड़ाई भी लड़ते थे। शिवाजी ने अनुभव किया कि मराठों में राष्ट्र के लिए लड़ने का जोश भरा। इसके बाद तो मराठों की विजय पताका फहरने लगी। छत्रपति शिवाजी महाराज हर व्यक्ति से कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते थे। उनसे जुड़ा एक प्रसंग यह भी है कि जब शिवाजी मुगलों के विरुद्ध छापामार युद्ध लड़ रहे थे। एक रात वे थके-हारे एक वृद्धा की झोपड़ी में पहुंचे। उनके चेहरे को देखकर वृद्धा बोली, ‘‘सिपाही, तेरी सूरत शिवाजी जैसी लगती है। तू भी उसी की तरह मूर्ख है।’’ शिवाजी ने कहा, ‘‘शिवाजी की मूर्खता के साथ-साथ मेरी भी कोई मूर्खता बताएं।’’ वृद्धा ने उत्तर दिया, ‘‘वह दूर किनारों पर बसे छोटे-मोटे किलों को आसानी से जीतते हुए शक्ति बढ़ाने की बजाए बड़े किलों पर धावा बोल देता है और फिर हार जाता है।’’ वृद्धा की इस बात से शिवाजी को अपनी रणनीति की विफलता का कारण समझ में आ गया। उन्होंने वृद्धा से सीख प्राप्त कर पहले छोटे किलों को जीतने पर ध्यान लगाया और परिणाम जीत के रूप में आने लगा। इससे उनके साथ-साथ उनके सैनिकों का भी मनोबल बढ़ा। इस मनोबल की बदौलत ही वे बड़े किलों को जीत पाए। ज्यों-ज्यों जीत मिलती गई, उनकी शक्ति बढ़ती गई।

शिवाजी ने हमेशा उन लोगों की मदद की जो हिंदू धर्म में लौटना चाहते थे। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। शिवाजी के राज्याभिषेक समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था।

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