IIT मुंबई में अभिव्यक्ति के नाम पर भगवान राम और माता सीता का अपमान, ये वामपंथियों की साजिश तो नहीं?

मुंबई के आईआईटी में कला के नाम पर प्रभु श्रीराम का अपमान किया गया है। परफॉर्मिन्ग आर्ट्स फेस्टिवल के दौरान आईआईटी मुंबई में एक नाटक का आयोजन किया गया।

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सोनाली मिश्रा

भारत में जहां एक ओर आम जनमानस इन दिनों श्रीरामनवमी की तैयारियों में इस कारण प्रफुल्लित मन से लगा हुआ है, क्योंकि सदियों की प्रतीक्षा के बाद अंतत: वह दिन आया है जब प्रभु श्रीराम अपने महल मे विराजे हैं। इस अवसर पर भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के अनेकानेक भक्त अपने प्रभु के घर विराजने का उत्सव मना रहे हैं। परंतु फिर भी यह देखना अत्यंत पीड़ादायक है कि कथित कला के नाम पर प्रभु श्रीराम का अपमान निरंतर हो रहा है।

इनमें युवाओं के सम्मिलित होने पर पीड़ा की परतें और भी गहरी हो जाती हैं, क्योंकि युवाओं से यह आशाएं होती हैं कि वे ही हैं जो अपने देश, अपनी भूमि की सांस्कृतिक पहचान को आगे लेकर जाते हैं। यह युवा शक्ति ही है, जो देश की सांस्कृतिक अस्मिता का मान रखती है, परंतु तब क्या होता है जब युवा शक्ति ही देश ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता के सबसे बड़े प्रतीक प्रभु श्रीराम का अपमान करे? वह भी कला के नाम पर? ऐसा ही आईआईटी मुंबई में किया गया है।

मुंबई के आईआईटी में कला के नाम पर प्रभु श्रीराम का अपमान किया गया है। परफॉर्मिन्ग आर्ट्स फेस्टिवल के दौरान आईआईटी मुंबई में एक नाटक का आयोजन किया गया। चूंकि, भारत में अभिव्यक्ति की आजादी का नारा युवाओं को इस प्रकार घोंटकर पढ़ाया जाता है कि वे हिन्दू धर्म का अपमान करने को ही अभिव्यक्ति की आजादी मानते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के परदे तले जो नाटक किया गया, उसका नाम था “राहोवन”। सोशल मीडिया पर इसके वीडियो की यूजर्स ने साझा किए।

यह नाटक अत्यंत अशोभनीय था। रिपोर्ट्स के अनुसार इसका मंचन आईआईटी मुंबई के ओपन एयर थिएटर मे कुछ विद्यार्थियों ने किया था। यह नाटक कथित रूप से रामायण से प्रेरित था और इसमें माता सीता, प्रभु श्रीराम एवं लक्ष्मण के प्रति अपमानजनक बातें की गई थीं। संवाद अश्लील थे एवं हावभाव भी अश्लील थे। इस नाटक मे प्रभु श्रीराम को एक शैतान के रूप मे दिखाया था, और यह भी दिखाया था कि वे माता सीता के प्रति हिंसक व्यवहार करते थे।

संवादों को पूरी तरह से वोक मानसिकता और कम्युनिस्ट विचारधारा के अनुसार बनाकर माता सीता एवं प्रभु श्रीराम का अपमान किया गया है। यह दिखाया गया है कि माता सीता रावण के साथ खुश थीं और माता सीता का प्रतीक बनी महिला यह कह रही है कि अच्छा हुआ कि अघोरी उसे उस दुनिया मे ले गया। अघोरी उस चरित्र का नाम है, जिसे रावण का प्रतीक बताया है। यह भी कहा जा रहा है कि माता सीता की अनुमति के बिना रावण (अघोरी) ने उसे नहीं छुआ।

रामकथा में इसे लेकर कम्युनिस्ट लेखक एवं लेखिकाओं का यह प्रिय प्रसंग रहता है, जिसमें यह कहा जाता है कि रावण ने माता सीता की अनुमति के बिना उन्हें स्पर्श नहीं किया था। तो फिर यह मूलभूत प्रश्न कोई नहीं पूछता कि रावण ने आखिर माता सीता का अपहरण क्यों किया था? यदि उसने कुदृष्टि के कारण माता सीता का अपहरण नहीं किया था तो आखिर क्यों किया था?

क्या किसी भी विवाहित स्त्री को कोई भी व्यक्ति उठाकर ले जा सकता है और फिर वहाँ ले जाकर कहे कि वह उसे अनुमति के बिना नहीं छुएगा और उसका महिमामंडन इसी बात पर किया जाए तो इससे हास्यास्पद कुछ नहीं हो सकता है। यदि अपहरण करने वाला इतना ही महान था, वीर था, तो किसी विवाहित स्त्री को उसकी इच्छा के बिना अपनी नगरी में तब कैसे ला सकता था, वह भी तब जब उस स्त्री का पति वहाँ नहीं है।

कम्युनिस्ट विचारधारा हिंदुओं के नायकों के प्रति विद्वेष से भरी हुई है। उसे हर स्थिति में हिन्दू नायकों एवं महान हिन्दू स्त्रियों को नीचा दिखाना होता है तथा प्रभु श्रीराम तथा माता सीता, मानव रूप मे स्त्री-पुरुष मर्यादा तथा दांपत्य प्रेम के सर्वोच्च शिखर है। इनसे परे पति-पत्नी के प्रेम की परिभाषा ही नहीं है। कम्युनिस्टों को यह पता है कि जब तक भारतीय जन मानस के हृदय में प्रभु श्रीराम एवं माता सीता के प्रति आदर है तब तक वह परिवार पर हमला नहीं कर पाएंगे। इसीलिए युवाओं के हृदय मे हिन्दू प्रतीकों को लेकर अपमानजनक भाव भरने का कार्य करते हैं, जिससे युवाओं का विश्वास उन प्रतीकों से हट जाए, जो भारतीय परंपरा को आगे लेकर जाते हैं। जो भारतीयता को निरन्तरता प्रदान करते हैं।

यही कारण हैं कि प्रभु श्रीराम एवं माता सीता पर निरंतर युवाओं के मध्य ही प्रहार किए जाते हैं, फिर चाहे आईआईटी मुंबई हो या फिर पॉन्डिचेरी विश्वविद्यालय या फिर कुछ वर्ष पहले एम्स में भी ऐसा ही करने का प्रयास किया गया था। हालांकि, उसे लेकर माफी मांग ली गई थी, परंतु यह प्रश्न तो उठता ही है कि मेडिकल एवं तकनीकी विषयों वाले विद्यार्थियों के हृदय में अपनी संस्कृति को लेकर इतने अपमानजनक भाव कहाँ से आते हैं? हालांकि, आईआईटी मुंबई पिछले कुछ वर्षों से विवादों मे निरंतर आ रहा है।

मानवीय विषयों के नाम पर एजेंडा

मानविकी विषयों की आड़ मे कहीं एजेंडा तो नहीं फैलाया जा रहा है इस पर भी बात होनी चाहिए, क्योंकि पिछले दिनों जब इजरायल पर हमास के आतंकियों ने हमला किया था तो अकादमिक विमर्श के नाम पर एक वर्चुअल लेक्चर का आयोजन किया गया था, जिसमें कथित रूप से फिलिस्तीनी आतंकवादियों के पक्ष में बोला गया था।

विद्यार्थियों के एक समूह ने पुलिस मे शिकायत दर्ज कराते हुए कहा था कि ह्यूमेनिटी एंड सोशल साइंस विभाग की शर्मिष्ठा साहा ने सुधन्वा देशपांडे को विचार रखने के लिए आमंत्रित किया था। देशपांडे एक कट्टर कम्युनिस्ट हैं एवं उन्होंने फिलिस्तीनी आतंकी ज़करिया जुबेदी का महिमामंडन किया था। यह घटना नवंबर 2023 की थी।

मगर आईआईटी मुंबई में एक और घटना हुई थी, जिसे लेकर विवाद हुआ था और वह था कि शाकाहारी विद्यार्थियों के लिए अलग मेजों की व्यवस्था करना। यह किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि वह क्या खाता है और खानपान के आधार पर वह मांग कर सकता है कि उसे स्थान दिया जाए, परंतु इसे लेकर भी एक छात्र संगठन ने विवाद किया था और इस निर्णय को मानने से इनकार दिया था।

तकनीकी संस्थानों का नाम तकनीकी श्रेष्ठता के लिए ख्यात होना चाहिए, विवादों मे निरंतर आने से भारत के ऐसे प्रतिष्ठित संस्थानों के नाम पर प्रभाव पड़ता है। अकादमिक जगत में कम्युनिस्ट विचार कहीं किसी नए पैकेज में तो नहीं आ रहे हैं, इस पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। तथा यह भी किसी भी देश का दुर्भाग्य है कि उसकी युवा शक्ति उसकी चेतना के सबसे प्रखर सांस्कृतिक प्रतीक का उपहास उड़ाए वह भी कला के नाम पर!

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