चैत्र नवरात्र पर विशेष: मां पूर्णागिरि धाम, शैल शिखर पर सुशोभित मां शक्ति का जागृत तीर्थ

Published by
पूनम नेगी

चैत्र नवरात्र 2024: मां वैष्णो देवी की ही भांति शैल शिखर पर सुशोभित मां पूर्णागिरि का दिव्य धाम भी अपने अंचल में अनेक पौराणिक गाथाओं और चमत्कारों को समेटे हुए है। श्रीमद देवीभागवत महापुराण के अनुसार आर्यावर्त की पुण्यभूमि की चारों दिशाओं की चार पहाड़ियों कालिका गिरि, हेमला गिरि व मल्लिका गिरि और पूर्णा गिरि पर अपने दिव्य स्वरूपों में सुशोभित मां शक्ति युगों युगों से भारतवासियों को भक्ति और शक्ति के अनुदान और वरदान देती आ रही हैं।

मां शक्ति के 52 प्रमुख शक्तिपीठों में शुमार मां पूर्णागिरि का जागृत शक्तिपीठ उत्तराखण्ड के चम्पावत जिले के टनकपुर संभाग के पर्वतीय अंचल में समुद्र तल से 3000 फीट की उंचाई पर अन्नपूर्णा चोटी के शिखर पर अवस्थित है। शिव महापुराण की ‘रुद्र संहिता’ में उल्लेख आता है कि पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में महादेव के अपमान से आहत होकर मां सती ने आत्मदाह कर लिया था। यह सूचना मिलते ही देवाधिदेव शिव अपार क्रोध से भर गये और दक्ष यज्ञ को विनष्ट कर वे सती की मृत देह को कंधे पर लादे-लादे दुःख व आक्रोश में इधर उधर भटकने लगे; इस दौरान मां सती की मृत काया के विभिन्न अंग छिटक धरती के जिन जिन 52 स्थानों पर जा गिरे, कालांतर में वे स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गये। एक अन्य मान्यता है कि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मां सती की निर्जीव देह के 52 टुकड़े कर दिये थे; वे अंग जहां गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ के रूप में विख्यात हो गये।

पूर्णागिरि शिखर पर हुआ था मां सती की नाभि का निपात

पौराणिक मान्यता के अनुसार वह स्थान जहां मां सती की नाभि गिरी थी, वह शक्तिपीठ लोक में पूर्णागिरि के नाम से विख्यात है। आद्य शक्ति मां पराम्बा के शीर्षस्थ शक्तिपीठों में शुमार पूर्णा गिरि शक्तिपीठ की महिमा गान करते हुए कालिका पुराण में कहा गया  है- ‘ओड्राख्यं प्रथमं पीठं, द्वितीयं जालशैलकम्। तृतीयं पूर्णपीठं तु, कामरूपं चतुर्थकम् ।।’ शास्त्रज्ञ कहते हैं कि श्रीमददेवी भागवत और  कालिका पुराण के अलावा स्कंद पुराण तथा चूणामणि ज्ञानाणव जैसे ग्रंथों में भी इस पौराणिक शक्तिपीठ का वर्णन किया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवभूमि उत्तराखंड के इस जागृत शक्तिपीठ की देवी ‘पूर्णेश्वरी’ और भैरव ‘पूर्णनाथ’ हैं। किवदंती है कि महाभारत काल में इसी पर्वत शिखर पर पांडवों द्वारा मां भगवती की आराधना की थी तथा उनके आह्वान पर सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पौरोहित्य में यहां एक विशाल यज्ञ का आयोजन हुआ था जिसमें इतना स्वर्ण एकत्रित हुआ था कि यहां सोने का पर्वत बन गया था। इस शक्तिपीठ तक पहुंचने से पूर्व बाबा भैरवनाथ के मंदिर में शीश नवाने की परम्परा है। वे मां के द्वारपाल माने जाते हैं और उनके दर्शनों के बाद ही मां के दर्शन सफल माने जाते हैं। बाबा भैरवनाथ के धाम में वर्ष भर धूनी जली रहती है। यह स्थल नगा संन्यासियों के लिए भी विख्यात है। एक जानकारी के मुताबिक गुजरात निवासी श्रीचंद्र तिवारी ने मुगलों के अत्याचार से दुखी होकर चम्पावत में चंद वंशीय राजा ज्ञान चंद के दरबार में शरण ली थी। उसी दौरान एक दिन मां पूर्णागिरि ने उन्हें सपने में दर्शन देकर शैल शिखर पर मंदिर बनाने का आदेश दिया था। देवी मां की आज्ञा शिरोधार्य कर श्रीचंद्र तिवारी ने 1632 में मां पूर्णागिरि धाम की स्थापना कर पूजा पाठ शुरू कराया था जो आज तक अनवरत जारी है।

झूठे सेठ का मंदिर

इस शक्तिपीठ से जुड़ी एक झूठे सेठ की कथा भी काफी प्रसिद्ध है। कहते हैं कि एक बार एक संतानहीन सेठ से देवी मां ने स्वप्न में कहा कि मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। सेठ ने मां पूर्णागिरि के दर्शन किये और कहा कि यदि उसे पुत्र प्राप्त हुआ तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनवाएगा। किन्तु इच्छा पूरी होने पर सेठ के मन में लालच आ गया और उसने सोने की जगह कर तांबे के मंदिर बनवा कर उस पर सोने का पालिश करा दी। उस मंदिर को देवी को अर्पित करने के लिए जब वह सेठ पूर्णागिरि की ओर जाने लगा तो मंदिर से पूर्व के पड़ाव टुन्नास से आगे उस मंदिर को ले नहीं जा सका। थकहार कर उसने उस मंदिर को वहीं स्थापित कर दिया। आज भी तांबे का यह मंदिर झूठे सेठ के मंदिर के नाम से जाना जाता है।

सिद्धबाबा का धाम

एक बार एक साधु ने अनावश्यक रूप से  पूर्णागिरि के उच्च शिखर पर पहुंचने की कोशिश की तो मां ने रुष्ट होकर उसे शारदा नदी के उस पार फेंक दिया था किंतु दयालु मां ने उस संत को सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात कर यह आशीर्वाद दिया कि जो व्यक्ति मेरे दर्शन के बाद तुम्हारे दर्शन करेगा उसकी हर इच्छा पूर्ण होगी। मान्यता है कि मां के प्रति सच्ची श्रद्धा तथा आस्था लेकर जो भी भक्त यहां आता है उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाती  है। श्रद्धालु मंदिर परिसर में ही घास में गांठ बांधकर मनौतियां पूरी होने पर दूसरी बार देवी दर्शन लाभ का संकल्प लेकर गांठ खोलते हैं। यह परंपरा यहां वर्षों से चली आ रही है। यहां बच्चों का मुंडन कराना बहुत शुभ माना जाता है। पर्वतीय अंचल के लोग मनौती पूरी होने पर सिद्ध बाबा को मीठी रोटी अर्पित करते हैं।

सुप्रसिद्ध आखेटक जिम कार्बेट ने देखा था मां पूर्णागिरि का प्रकाशपुंज 

यूं तो देवभूमि उत्तराखंड में स्थित विभिन्न देव स्थल शक्ति व आस्था के अद्भुत केंद्र हैं पर पूर्णागिरि धाम की विशेषता ही कुछ और है। प्रसिद्ध वन्याविद तथा आखेट प्रेमी जिम कार्बेट को सन् 1927 में नरभक्षी बाघ का शिकार करते समय पूर्णागिरि के मंदिर के प्रकाश पुंज के दर्शन हुए थे। इस बात का उल्लेख स्वयं जिम कार्बेट ने अपने संस्मरणों में किया था जो देश विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे। इन प्रकाशनों ने माँ पूर्णागिरि के इस दिव्य शक्तिपीठ को देश विदेश में लोकप्रिय बना दिया था।

 

Share
Leave a Comment