डॉ. हेडगेवार जी : जन्मजात देशभक्त और संगठन के विज्ञान के विशेषज्ञ
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डॉ. हेडगेवार जी : जन्मजात देशभक्त और संगठन के विज्ञान के विशेषज्ञ

एक पत्र में डॉ. हेडगेवार जी कहते हैं, "हमने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य किसी एक शहर या प्रांत के लिए शुरू नहीं किया है। इसका शुभारंभ हमारे पूरे राष्ट्र को यथाशीघ्र एकजुट करने और हिंदू समाज को आत्म संरक्षित और मजबूत बनाने के लक्ष्य के साथ किया गया था।"

by पंकज जगन्नाथ जयस्वाल
Jun 21, 2024, 11:04 am IST
in भारत, संघ
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (फाइल फोटो)

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (फाइल फोटो)

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डॉ. हेडगेवार जी के महाप्रयाण के तेरहवें दिन, 3 जुलाई, 1940 को, नागपुर में डॉक्टर साहब के लिए एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई थी। श्री गुरुजी ने उन्हें सरसंघचालक के रूप में याद करते हुए कहा कि डॉक्टर साहब के कार्यों के परिणामस्वरूप पंद्रह वर्षों की अवधि में एक लाख स्वयंसेवकों का संगठन हुआ। दत्तोपंत ठेंगड़ीजी का मानना था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना भावना या उत्तेजना से नहीं हुई थी। डॉ. जी एक महान व्यक्ति थे, एक जन्मजात देशभक्त थे, जिन्होंने बचपन से ही देशभक्ति दिखाई, देश के सामने आने वाले सभी प्रकार के मुद्दों का अध्ययन किया और अपने समय के सभी आंदोलनों और गतिविधियों में भाग लिया, कांग्रेस और हिंदू सभा के आंदोलनों में भाग लिया, क्रांतिकारी कार्यों का अनुभव प्राप्त करने के लिए बंगाल में रहे और गहन विचार के बाद उन्होंने आरएसएस की योजना बनाई।

एक पत्र में डॉ. हेडगेवार जी कहते हैं, “हमने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य किसी एक शहर या प्रांत के लिए शुरू नहीं किया है। इसका शुभारंभ हमारे पूरे राष्ट्र को यथाशीघ्र एकजुट करने और हिंदू समाज को आत्म संरक्षित और मजबूत बनाने के लक्ष्य के साथ किया गया था।”

 अंग्रेजों ने आरएसएस को कैसे कमजोर करने का प्रयास किया

आरएसएस के अंग्रेजों के करीब होने की झूठी कहानी, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओ और वामपंथियों द्वारा फैलाई जा रही हैं, उन्हें अध्ययन करना चाहिए और सीखना चाहिए कि अंग्रेजों ने आरएसएस के काम को कैसे दबाने की कोशिश की। अंग्रेजों को एहसास हुआ कि आरएसएस का विस्तार कई शताब्दियों तक देश पर शासन करने के उनके उद्देश्य को सफल नही होने देगा। ब्रिटिश सरकार इन विचारों या संघ के विस्तार से सावधान थी। दिल्ली में एक ब्रिटिश अधिकारी एमजी हैलोट ने संघ के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मध्य प्रांत सरकार पर दबाव डाला। अंततः दिसंबर 1933 में, मध्य भारतीय निकायों के कर्मचारियों और शिक्षकों को संघ के कार्यक्रमों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया। मार्च 1934 में, प्रतिबंध का विरोध करने के लिए विधानसभा के समक्ष एक प्रस्ताव पेश किया गया। टीएच केदार, आरडब्ल्यू फुले, रमाबाई तांबे, बीजी खापर्डे, आरए कानिटकर, सीबी पारेख, यूएन ठाकुर, मनमोहन सिंह, एमडी मंगलमूर्ति, एसजी सपकाल और डब्लूवाई देशमुख उन लोगों में से थे जिन्होंने संघ समर्थन में बात की।  संघ के प्रति उनके विश्वास और समर्थन का यह स्तर अद्वितीय था। बहस के बाद, ब्रिटिश सरकार का प्रतिबंध हटा दिया गया। डॉ. हेडगेवारजी के अनुसार, सरकार की स्थिति इतनी खराब हो गई कि वह अब किसी भी तरह से संघ को दोष नहीं दे सकती थी।

 डॉ. हेडगेवारजी की असाधारण नेतृत्व क्षमता और स्वयंसेवकों के प्रति स्नेह

1935 में एक भाषण के दौरान डॉ. हेडगेवारजी ने कहा था, “एक स्वयंसेवक आज अच्छा काम करता है और कल घर पर बैठता है। यदि कोई स्वयंसेवक किसी दिन शाखा से अनुपस्थित रहता है, तो उसके निवास पर जाकर कारण पता करें। अन्यथा, वह दूसरे दिन भी शाखा में नहीं आएगा। तीसरे दिन वह संघ में आने में संकोच करेगा। चौथे दिन वह बेचैनी महसूस करेगा और पांचवें दिन वह टालना शुरू कर देगा। परिणामस्वरूप, किसी भी स्वयंसेवक को शाखा बैठक में अनुपस्थित नहीं रहने देना चाहिए। सातारा के नाना काजरेकर ने 1936 में पुणे में संघ शिक्षा वर्ग में भाग लेना शुरू किया। पेट की समस्या के कारण, वे कुछ कार्यक्रमों से बचने लगे। डॉ. साहब ने उनकी समस्या का निदान किया और उनका इलाज किया।

डॉ. हेडगेवारजी दयालु थे। चूंकि संघ का काम राष्ट्रीय प्रकृति का है, इसलिए वे सभी के साथ ऐसा व्यवहार करते थे जैसे वे सभी उनके लिए समर्पित हों, सभी परिवार के सदस्य थे। उन्होंने आपसी जुड़ाव और स्नेह के आधार पर नियमित स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया। उनका मानना था कि संघ के काम में किसी भी अप्रत्याशित परिस्थिति से बाधा नहीं आनी चाहिए। उनका लक्ष्य सिर्फ हिंदुओं की संख्या बढ़ाने के बजाय उन्हें एकजुट करना था। उन्होंने जोर देकर कहा कि संघ का काम जीवन भर करना होगा। इसका अंतिम लक्ष्य समाज की अंतर्निहित शक्ति को जगाना है।

डॉ. हेडगेवार जी ने स्वयंसेवकों का मनोबल ऊंचा रखने के लिए हरसंभव प्रयास किया। संगठन के बारे में चर्चा के दौरान उन्होंने एक बार कहा था, “जब संघ की स्थापना हुई, तब परिस्थितियाँ इतनी प्रतिकूल थीं कि काम करना असंभव लग रहा था। जबकि हमने ऐसी कठिन परिस्थिति का निर्भीकता से सामना किया और लगातार काम करते रहे, फिर आज हम परिस्थिति की कठिनाई का सवाल क्यों उठाएँ? आज तक हमारे काम की जो भी गति थी, वह ठीक थी। लेकिन अब कैसी होगी? क्या आप आज तक किए गए काम को पर्याप्त मानते हैं? मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि हर स्वयंसेवक के मन में कम से कम यही जवाब होगा कि जो काम होना चाहिए था, वह उतना नहीं हो पाया, और हम उसे जल्द से जल्द पूरा करने के लिए और अधिक प्रयास कर सकते हैं।

डॉ. हेडगेवार जी ने संघ के प्रथम सरसंघचालक के रूप में 15 वर्ष तक कार्य किया। इस अवधि में डॉ. साहब ने संघ शाखाओं के माध्यम से संगठन खड़ा करने की तकनीक को बहुत ध्यान से तैयार किया। इस संगठनात्मक संरचना के साथ-साथ बड़ी राष्ट्रीय सोच, दूरदर्शिता और कार्ययोजना भी हमेशा मौजूद रहती थी। वे विश्वास दिलाते थे कि अगर हम अच्छी संघ शाखाएँ विकसित करें, उस नेटवर्क को यथासंभव सघन बनाए रखें और पूरे समाज को संघ शाखाओं के प्रभाव में लाएँ, तो राष्ट्रीय स्वतंत्रता से लेकर समग्र प्रगति तक हमारी सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी।

इन वर्षों में, जिनसे भी वे मिले, उन्होंने उनकी और उनके काम की प्रशंसा की। इनमें महर्षि अरविंदजी, लोकमान्य तिलकजी, मदन मोहन मालवीयजी, विनायक दामोदर सावरकरजी, बी.एस. मुंजेजी, बिट्ठलभाई पटेलजी, महात्मा गांधीजी, सुभाष चंद्र बोसजी, डॉ. श्यामाजी प्रसाद मुखर्जी और के.एम. मुंशीजी जैसी उल्लेखनीय हस्तियां शामिल थीं। डॉ. हेडगेवारजी दावा करते थे कि मैं कोई नया काम नहीं कर रहा हूं। उन्होंने कभी यह घोषणा नहीं की कि उन्होंने संघ की स्थापना की है। उन्होंने अपने निवास की ऊपरी मंजिल में 16 व्यक्तियों के समक्ष घोषणा की कि हम संघ का कार्य शुरू करेंगे। उस दिन संघ को  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नहीं कहा गया था। डॉ. हेडगेवार जी ने यह नहीं कहा कि यह मेरा ‘संगठन’ है और मैं इसे चलाऊंगा। उन्होंने कभी ऐसा नहीं सोचा या ऐसा व्यवहार नहीं किया। उन्होंने हर पहलू में सहयोग (एकता, समानता) को बढ़ावा दिया। डॉ. जी का दृष्टिकोण विनम्र था और वे संगठन के विज्ञान के विशेषज्ञ थे।

आज जब हम विभिन्न क्षेत्रों में डॉ. हेडगेवार जी द्वारा बोए गए बीज से विकसित हुए उस विशाल वृक्ष को देखते हैं, जिसका उद्देश्य सभी क्षेत्रों में भारत का निर्माण करना तथा जाति-पाति के बंधनों को दूर कर हिंदुओं में एकता और समभाव को बढ़ाना तथा एक-दूसरे को सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने में सहायता करना है, तो यह प्रशंसनीय है। भारत माता के ऐसे त्यागी भक्त को नमन।

  • संदर्भ : राकेश सिन्हा, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, प्रकाशन विभाग: नई दिल्ली, 2003, पृ. 73
  • आर. वी. ओतुरकर, पूना – लुक एंड आउटलुक, पूना नगर निगम: पूना, 1951, पृ. 120
  • राकेश सिन्हा, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, प्रकाशन विभाग: नई दिल्ली, 2003, पृ. 131-132
  • एस. पी. सेन, डिक्शनरी ऑफ नेशनल बायोग्राफी, खंड 2, इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज: कोलकाता, 1973, पृ.  162

Topics: article on RSS founderडॉ. हेडगेवार जीसंघ के सरसंघचालकNational Newsराष्ट्रीय समाचारडॉ. केशव बलिराम हेडगेवारआरएसएस की स्थापनाDr. Hedgewar jiपाञ्चजन्य विशेषआरएसएस को दबाने की कोशिशआरएसएस संस्थापक पर लेखattempts to suppress RSS
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