आम तौर पर किसान एक वर्ष में एक खेत से तीन या चार फसल लेते हैं। वे खेत को उपजाऊ बनाने के लिए खूब सारी रासायनिक खाद भी डालते हैं। कुछ किसान इसे जमीन के साथ अत्याचार मानते हैं। ऐसे ही किसानों में से एक हैं मगनभाई हमीरभाई अहीर। वे कच्छ (गुजरात) जिले की अंजार तहसील के नींगाल गांव में रहते हैं। मगनभाई कहते हैं, ‘‘हम लोग इस धरती से दासी की तरह 24 घंटे काम नहीं ले सकते। जैसे काम के बाद मनुष्य आराम करता है, वैसे ही एक फसल के बाद जमीन को भी आराम देना चाहिए। इससे उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इसलिए मैं एक ऋतु फसल लगाने के बाद दूसरी ऋतु में फसल नहीं लगाता।’’
जमीन को आराम देने के पीछे मगनभाई एक ठोस कारण बताते हैं। वे कहते हैं, ‘‘सूर्य प्रति सेकेंड 2 लाख टन कैलोरी जमीन को देता है। यदि जमीन खाली रहती है, तो यह ऊर्जा उसके अंदर समाहित हो जाती है। इस ऊर्जा से जमीन इतनी उर्वरा हो जाती है कि उसमें कोई भी फसल लगा दें, बिना रासायनिक खाद अच्छी पैदावार हो जाती है।’’ मगनभाई कहते हैं, ‘‘यह निराधार बात है कि एक ऋतु जमीन खाली रहने से किसान को घाटा होता है। हम यह क्यों भूल जाते हैं कि एक बार जमीन खाली रहने से बीज, मजदूरी, जुताई, पानी की बचत होती है। इसके बाद जो फसल लगती है, वह पिछली ऋतु की भरपाई कर देती है।’’
अपने इसी विचार के साथ मगनभाई 20 एकड़ जमीन पर गेहूं, मूंगफली, मूंग, बाजरा, गन्ना, आम, खरबूजा, अरंडी आदि की खेती करते हैं। वे रासायनिक खाद की जगह गोबर और फसलों के अवशेष से बनी खाद, नीम और अरंडी की खली, तालाब और जंगल की मिट्टी खेतों में डालते हैं। गोबर के लिए उनके पास 20 पशु हैं। वे किसी फसल का बीज भी खुद ही तैयार करते हैं।
64 वर्षीय मगनभाई 20 वर्ष की आयु से खेती कर रहे हैं। पहले वे भी अन्य किसानों की तरह सामान्य खेती करते थे, लेकिन 2000 से यानी 24 वर्ष से वे लीक से हटकर खेती कर रहे हैं। समाज सुधारक श्री पांडुरंग शास्त्री के स्वाध्याय परिवार से उन्हें इसकी प्रेरणा मिली है।
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