‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए कई प्रकार के उपकरण और हथियार बना रहा है, जिनमें कई प्रकार के अत्याधुनिक सैन्य साजो-सामान के अलावा विलक्षण क्षमताओं वाली मिसाइलें भी शामिल हैं। रक्षा अनुसंधान पर कार्य करते हुए पिछले कुछ वर्षों से भारत ने अपनी सैन्य क्षमताओं को लगातार मजबूत किया है। इसी की बदौलत भारत दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं में चौथे पायदान पर है। भारतीय सैन्य-बलों के पास अब कई प्रकार की आधुनिक मिसाइलें और अनेक प्रकार के अत्याधुनिक हथियार हैं और धूर्त पड़ोसियों से निपटने के लिए इस सामरिक ताकत को लगातार बढ़ाते रहना समय की बड़ी मांग भी है।
इसी कड़ी में भारत ने मार्च महीने में ही ‘मिशन दिव्यास्त्र’ के तहत 5 हजार किलोमीटर तक की मारक क्षमता वाली स्वदेशी अग्नि-5 मिसाइल का सफल परीक्षण किया था। अग्नि-5 में ‘मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल’ (एमआईआरवी) तकनीक का इस्तेमाल हुआ था, जिसके साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया था, जो अपनी मिसाइलों में इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। एमआईआरवी तकनीक के कारण मिसाइल के सबसे आगे वाले हिस्से में कई हथियार लगाए जा सकते हैं, जो एक साथ कई टारगेट को निशाना बना सकते हैं।
मौजूदा समय में अमेरिका, चीन जैसे देश ही मिसाइलों में इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। अब नई पीढ़ी की न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल ‘अग्नि प्राइम’ का भी सफलतापूर्वक परीक्षण कर भारत ने रक्षा क्षेत्र में एक और बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए अपनी सैन्य ताकत को कई गुना बढ़ा दिया है। अग्नि प्राइम के परीक्षण के दौरान इससे जुड़ा डेटा इकट्ठा करने के उद्देश्य से कुछ सेंसर लगाए गए थे। टर्मिनल प्वाइंट पर रखे गए दो डाउनरेंज जहाजों सहित विभिन्न स्थानों पर तैनात कई रेंज सेंसर द्वारा कैप्चर किए गए डेटा के मुताबिक अग्नि प्राइम मिसाइल ने अपने विश्वसनीय प्रदर्शन का सत्यापन करते हुए परीक्षण के सभी उद्देश्य हासिल कर लिए और रक्षा मंत्रालय के अनुसार परीक्षण के दौरान अग्नि प्राइम अपने सभी मानकों पर खरी उतरी।
‘अग्नि प्राइम’ न केवल बेहद सटीक निशाना लगाने के लिए जानी जाती है बल्कि परमाणु हथियार ले जाने में भी सक्षम है, जिसका सफल परीक्षण 3 अप्रैल की शाम को ओडिशा के डा. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया। स्ट्रेटेजिक फोर्स कमांड (एसएफसी) और डीआरडीओ के इस संयुक्त परीक्षण में ‘अग्नि प्राइम’ सभी मानकों पर खरी उतरी। ‘अग्नि प्राइम’ मिसाइल को अग्नि-पी के नाम से भी जाना जाता है, जो अग्नि सीरीज की सबसे नई और छठी मिसाइल है। ‘अग्नि’ श्रृंखला की मिसाइलों में यह बेहद घातक होने के साथ ही अत्याधुनिक और मध्यम रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसकी मारक क्षमता 1-2 हजार किलोमीटर तक है। 11 हजार किलो वजन वाली अग्नि प्राइम को ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ के तहत विकसित किया गया है। इस प्रोग्राम का नेतृत्त्व डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने 1980 के दशक की शुरुआत में किया था। पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, नाग और आकाश जैसी मिसाइलें भी इसी प्रोग्राम के तहत ही विकसित की गई हैं।
एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम का उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था, जिसे भारत सरकार द्वारा 1983 में अनुमोदित किया गया था और मार्च 2012 में पूरा किया गया। इस कार्यक्रम के तहत विकसित 5 मिसाइलें हैं, सतह से सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल ‘पृथ्वी’, सतह से सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल ‘अग्नि’, सतह से आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल ‘त्रिशूल’, तीसरी पीढ़ी की टैंक भेदी मिसाइल ‘नाग’ तथा सतह से आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल ‘आकाश’।
जहां तक ‘अग्नि प्राइम’ की बात है कि अग्नि प्राइम का जून 2023 में रात्रि परीक्षण किया गया था और वह भी पूर्णतया सफल रहा था। उससे पहले अप्रैल में उड़ीसा की खाड़ी में एक जहाज से इंटरसेप्टर मिसाइल का पहला उड़ान परीक्षण भी सफलतापूर्वक किया था, जो बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस प्रोग्राम का हिस्सा था, जिसका लक्ष्य यह देखना था कि समुद्र से लांच होने वाली मिसाइल अपने लक्ष्य को कैसे निशाना बना सकती है। जून 2023 में अग्नि प्राइम के प्री-इंडक्शन नाइट लांच के बाद इसी क्रम में अब इसका फाइनल परीक्षण हुआ, जिसमें अग्नि प्राइम ने बेहतरीन स्तर की सटीकता के साथ लक्ष्य को भेदकर अपना मिशन पूरा किया और सफल परीक्षण के साथ ही अग्नि प्राइम को सेना में शामिल कर दिया गया। निश्चित रूप से अग्नि प्राइम जैसी मिसाइलों के सफल विकास और सेना में इनकी तैनाती से सशस्त्र बलों की ताकत कई गुना बढ़ेगी। अग्नि श्रेणी की पहली मिसाइल ‘अग्नि-1’ का परीक्षण पहली बार 1989 में किया गया था और 2004 में जिस अग्नि मिसाइल को सेना में शामिल किया गया था, उसकी मारक रेंज 700-900 किलोमीटर तक ही थी।
अग्नि प्राइम की प्रमुख विशेषताएं देखें तो यह दो चरणों वाली ऐसी कनस्तरीकृत ठोस प्रणोदक मिसाइल है, जिसमें दोहरी नेविगेशन और मार्गदर्शन प्रणाली है। यह ‘अग्नि’ मिसाइलों के पिछले संस्करणों से हल्की है। अग्नि प्राइम मिसाइल में ऐसी नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जिसके कारण इसे किसी एयर डिफेंस सिस्टम से मार गिराना भी आसान नहीं है। यदि जरूरत पड़े तो दागे जाने के बाद यह मिसाइल बहुत तेजी से अपना रास्ता बदलने में सक्षम है और इसी कारण इसे मार गिराना आसान नहीं है। आमतौर पर यह क्षमता बैलिस्टिक मिसाइलों में नहीं होती लेकिन अग्नि प्राइम इस विलक्षण क्षमता से लैस है। हालांकि पहले रक्षा विशेषज्ञों का मानना था कि अग्नि प्राइम को पृथ्वी, अग्नि-1 और अग्नि-2 मिसाइलों से रिप्लेस करने के लिए बनाया गया है लेकिन अब कहा जा रहा है कि यह किसी भी मिसाइल को रिप्लेस नहीं करने जा रही। अग्नि प्राइम मिसाइल में उसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जिसका लंबी दूरी तक मार करने वाली अग्नि-4 और अग्नि-5 मिसाइलों में इस्तेमाल किया गया था। इसमें नवीनतम नेविगेशन सिस्टम लगा है और यह कनस्तर सिस्टम के जरिये दागी जा सकती है, जिससे इसे कहीं भी आसानी से रेल अथवा सड़क मार्ग के जरिये ले जाया जा सकता है।
अग्नि सीरीज की यह आधुनिक, घातक, सटीक और मीडियम रेंज की परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल है, जो एक साथ दुश्मन के कई टारगेट को तबाह कर सकती है और अपनी अधिकतम सीमा तक जाकर अपने लक्ष्य पर सटीक निशाना लगा सकती है। डीआरडीओ द्वारा विकसित यह एक परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल है, जो उच्च तकनीक और अत्याधुनिक विश्वसनीयता के साथ लैस भारतीय सशस्त्र बलों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हथियार है। अग्नि-प्राइम मिसाइल की रेंज करीब 2000 किलोमीटर है और यह मिसाइल अपने लक्ष्य पर दूर से भी निशाना लगा सकती है तथा 2 हजार किलोमीटर दूर के दुश्मन को भी पलक झपकते ही तबाह करने का सामर्थ्य रखती है। इसकी ऊर्जा और क्षमता उच्च होने के कारण यह अत्यंत सटीक हमले के लिए बेहद कारगर है। अग्नि-प्राइम मिसाइल की शक्तिशाली सुरक्षा और नियंत्रण ऐसी विशेषताएं हैं, जिससे इसका उपयोग विश्वसनीयता के साथ किया जा सकता है और दुश्मन से सुरक्षा की जा सकती है। यह एक डबल-स्टेज मिसाइल है, जिसमें एक कनस्तर संस्करण होता है। इसका तीसरा स्टेज मैन्युरेबल री-एंट्री व्हीकल होता है, जिससे इसे दूर से नियंत्रित करके दुश्मन के टारगेट पर सटीक हमला किया जा सकता है। न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि प्राइम पर ‘एमआईआरवी’ वॉरहेड को लगाया जा सकता है और यह मिसाइल हाई इंटेसिटी वाले विस्फोटक, थर्मोबेरिक या न्यूक्लियर वेपन ले जाने की विशेषता से लैस है। करीब 11 हजार किलोग्राम वजनी इस मिसाइल पर 1500 से 3000 किलो तक वॉरहेड ले जाए जा सकते हैं। इस मिसाइल में ठोस ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है।
परमाणु हथियारों के विशेषज्ञों के मुताबिक भारत ने ‘अग्नि प्राइम’ मिसाइल को खासतौर से दुश्मन के परमाणु हथियारों को परमाणु हमले से तबाह करने के लिए ही विकसित किया है, जो ‘काउंटर फोर्स डॉक्ट्रिन’ का हिस्सा है। विशेषज्ञों के अनुसार अग्नि प्राइम की रेंज भले ही 2 हजार किलोमीटर ही है लेकिन यह चीन के कई इलाकों में भयंकर तबाही मचाने की क्षमता रखती है। यदि इसे भारत के किसी रणनीतिक स्थान से दागा जाता है तो यह पश्चिमी, मध्य और दक्षिण चीन में महातबाही मचा सकती है। भारत इस मिसाइल से चीन के आर्थिक पावर हाउस कहे जाने वाले शहरों चेंगदू, सिचुआन और हांगकांग पर भी हमला कर सकता है। चूंकि इस मिसाइल की रेंज 1000 से 2000 किलोमीटर तक है, इसलिए यह समूचे पाकिस्तान में तो कहीं भी परमाणु तबाही मचाने की क्षमता रखती है और इसी कारण अग्नि प्राइम को ‘पाकिस्तान किलर मिसाइल’ भी कहा जाता है। बहरहाल, एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम के तहत पहले ही ‘अग्नि’ श्रृंखला की कई मिसाइलें विकसित कर चुका भारत अब अग्नि-6 तथा अग्नि-7 पर भी तेजी से कार्य कर रहा है, जिनकी रेंज अभी तक बनी सभी अग्नि मिसाइलों के मुकाबले बहुत ज्यादा होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं)
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