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#कृषि विशेष : खेत के रास्ते आई खुशहाली

गत 10 वर्ष में केंद्र सरकार ने एमएसपी को 50 प्रतिशत बढ़ा दिया है। कृषि बजट भी लगभग पांच गुना बढ़ गया है। दलहन उत्पादन में देश आत्मनिर्भर हो गया है। किसानों को सीधे उनके खाते में पैसा दिया जा रहा है। कृषि उत्पादन में वृद्धि की खातिर ड्रोन दीदियों की भूमिका बढ़ रही है। खेती-किसानी में परिवर्तन साफ दिखता है

by प्रो. नागेंद्र कुमार सिंह
Apr 7, 2024, 08:32 pm IST
in भारत, विश्लेषण
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अब देश में परंपरागत कृषि से हटकर नई तकनीक और सोच के साथ खेती हो रही है। किसान प्राकृतिक और जैविक खेती करके समृद्ध और खुशहाल हो रहे हैं। कच्छ से कछार और कश्मीर से कन्याकुमारी तक मुनाफे की खेती होने लगी है। किसान घर के बीज और घर में ही बनी खाद उपयोग कर रहे हैं। इससे जहां लागत कम हो रही है, वहीं आमदनी पहले से कईगुना ज्यादा बढ़ रही है। आंध्र प्रदेश के रामकृष्णम, उत्तर प्रदेश के सुरेंद्र सिंह, लोकेश कुमार, संजीव कुमार, पंजाब के विनोद ज्याणी, हरियाणा के राजकुमार, राजस्थान के हुकुमचंद पाटीदार, मध्य प्रदेश के जयराम पाटीदार, गुजरात के मगनभाई हमीरभाई अहीर, महाराष्ट्र के सुभाष शर्मा जैसे किसान कृषि के क्षेत्र में नई राह दिखा रहे हैं। पाञ्चजन्य के इस कृषि विशेष अंक में प्रस्तुत हैं खेती-किसानी के कुछ विशिष्ट उदाहरण

 

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड है। यह न केवल 140 करोड़ भारतीयों को नित्य भोजन प्रदान करती है, बल्कि 60 प्रतिशत से अधिक लोगों के लिए रोजगार तथा जीवन निर्वाह का साधन भी है। इसीलिए भारतरत्न एम. एस. स्वामीनाथन ने कहा था, ‘‘भारत में यदि कृषि असफल होती है, तो कुछ भी सफल नहीं होगा।’’ इसलिए सरकारें कृषि और किसान कल्याण के लिए अनेक नीतियां और योजनाएं बनाती रहती हैं। विगत दस वर्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अनेक किसान हितैषी योजनाएं शुरू की हैं। इसके बावजूद कृषि और किसान से जुड़ेमामले इतने जटिल होते हैं कि इस क्षेत्र में हुई प्रगति का आकलन करना सरल नहीं होता। हां, कुछ मापदंडों के आधार पर इस क्षेत्र में हुई गति और प्रगति को जांचा-परखा जा सकता है। जैसे- उत्पादन/ उत्पादकता में वृद्धि, किसानों को कृषि से लाभ में वृद्धि, कृषि निर्यात में वृद्धि, प्राकृतिक आपदाओं के समय कृषि बीमा और राहत निधि का शीघ्र भुगतान, कृषकों की खुशहाली (किसान आत्महत्या दर में कमी) आदि प्रमुख मापदंड हैं।

प्रगति के निर्धारण के लिए आधार वर्ष यहां पर 2014 है। किसी भी विकास कार्य के तीन चरण होते हैं-

प्रो. नागेंद्र कुमार सिंह
जगदीशचंद्र बोस नेशनल फेलो, राष्ट्रीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, पूसा, नई दिल्ली

प्रथम, एक दृष्टि या संकल्प का होना। दूसरा, उचित योजनाएं तथा उनके लिए समुचित बजट की व्यवस्था। तीसरा, इन योजनाओं का सफल निष्पादन। देखा जाए तो पिछले दशक में तीनों स्तर पर कृषि में अभूतपूर्व प्रगति हुई है, लेकिन कुछ कमियां भी रही हैं। पहले संकल्प की बात करते हैं। 2014 में भाजपा के इस संकल्प पत्र का मुख्य मंत्र था- ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ और इसका मार्ग था ‘सबका साथ, सबका विकास।’ इसमें कृषि से संबंधित कुल 25 संकल्पों की घोषणा की गई थी। इनमें से प्रमुख हैं-

कृषि और ग्रामीण विकास में निवेश बढ़ाना, कृषि क्षेत्र में लागत पर 50 प्रतिशत लाभ के लिए प्रयास, कम पानी से सिंचाई करने वाली तकनीकों को बढ़ावा, बुआई से पूर्व मिट्टी परीक्षण की प्रणाली का विकास, किसानों की आय बढ़ाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना, मसालों की उत्पादकता, गुणवत्ता और व्यापार पर ध्यान; जैविक खेती को बढ़ावा, प्राकृतिक आपदाओं के लिए कृषि बीमा, बागवानी, मछली-पालन, मुर्गी-पालन, मधुमक्खी-पालन आदि। कृषि विविधीकरण द्वारा ग्रामीण रोजगार के अवसर बढ़ाना, फसल क्लस्टर संरक्षण गृह का निर्माण, किसानों को सीधे उपभोक्ता से जोड़ना, राज्यों के साथ मिलकर कृषि जैव विविधता का संरक्षण तथा क्षेत्रीय कृषि बीज प्रयोगशालओं का निर्माण, किसान टीवी चैनल की स्थापना, सघन वैज्ञानिक जांच के बाद ही जीएम फसलों को अनुमति और राष्ट्रीय ‘लैंड यूज पालिसी’ और ‘लैंड यूज प्राधिकरण’ की स्थापना।

पिछले दस वर्ष में इस क्षेत्र में लगभग सभी संकल्पों पर तेजी के साथ योजनाबद्ध तरीके से काम हुआ है। पूर्व दशक की तुलना में कृषि के क्षेत्र में बजट को लगभग पांच गुना बढ़ाया गया है। 2007-14 के दशक में कृषि बजट 1.37 लाख करोड़ रु. था। 2014-24 के दशक में यह राशि 7.2 लाख करोड़ रु. के आंकड़े को पार कर गई है। यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से विभिन्न कृषि विकास योजनाओं और सीधे लाभार्थियों के लिए हुई है। इसके बहुत अच्छे परिणाम आए हैं, परंतु यह कहना आवश्यक है कि इस दौरान कृषि शोध और शिक्षा के बजट में आशातीत बढ़ोतरी नहीं हुई। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम होते हैं।

हितकारी कदम

केंद्र सरकार ने कुछ ऐसी योजनाएं शुरू की हैं, जिन पर हर व्यक्ति को गौर करना चाहिए। इस दिशा में पहला कदम किसानों के लिए समर्पित टीवी चैनल है। बता दें कि कृषि के प्रसार के लिए ‘दूरदर्शन-किसान’ टीवी चैनल की शुरुआत की गई है। यह चैनल 24 घंटे किसानों को कृषि से संबंधित जानकारी उपलब्ध करवाता है। इससे पहले केवल एक घंटे का कृषि दर्शन कार्यक्रम ही आता था। इसके अतिरिक्त सैकड़ों की संख्या में सरकारी कृषि संस्थानों और विश्वविद्यालयों ने कृषि से संबंधित जानकारी देने के लिए मोबाइल एप विकसित किए हैं।

दूसरे, संकल्प के अनुसार 24 फसलों के लिए लागत पर 50 प्रतिशत लाभ का ध्यान रखते हुए एमएसपी में वृद्धि की गई। यह किसान आंदोलन से जुड़ा एक विवादास्पद विषय है, जिसमें आगे और सुधार हो सकता है। इसके बावजूद यह सत्य है कि इससे पहले एमएसपी में इतनी वृद्धि कभी नहीं हुई थी।

तीसरा, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना एक क्रांतिकारी कदम है। यह विश्व की सबसे बड़ी फसल बीमा योजना है। इसमें किसानों के लिए प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुए नुकसान की भरपाई करने का प्रावधान है। अब तक किसानों ने इसके अंतर्गत लगभग 30 हजार करोड़ प्रीमियम भुगतान करके 1.5 लाख करोड़ रु. का दावा हासिल किया है।

चौथा, कृषि आधारभूत संरचना के विकास के लिए बजट उपलब्ध कराया गया है। इसके अंतर्गत हजारों की संख्या में भंडारण केंद्र, प्राथमिक प्रसंस्करण इकाइयां, कस्टम हायरिंग सेंटर, सार्टिंग और ग्रेडिंग यूनिट, कोल्ड स्टोरेज आदि की स्थापित की गई है।

पांचवां, मिट्टी जांच के लिए ‘सॉयल हेल्थ कार्ड’ योजना चल रही है। इससे जिला स्तर पर मिट्टी की जांच को बढ़ावा दिया गया है और जांच के अनुसार ही उर्वरकों के प्रयोग की अनुशंसा की जाती है।

छठा,
नीम की परत वाले यूरिया के उत्पादन से इसका दुरुपयोग रुका है, साथ ही साथ यूरिया के उत्पादन में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिससे उर्वरक आयात पर निर्भरता कम हुई है।

सातवां,
किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) को बढ़ावा दिया गया है। इससे किसान एक समूह से जुड़ कर विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं और कृषि उत्पादन और विपणन की समस्याओं का हल भी प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा कार्य कोई अकेला किसान नहीं कर सकता। इसलिए एफपीओ गठन के निर्णय को अच्छा माना जा रहा है। अब तक 7,950 एफपीओ पंजीकृत हो चुके हैं। इनमें से 3,183 एफपीओ को सरकार ने अनुदान भी दिया है।

आठवां,
इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चरल मार्केटिंग पोर्टल (ई-नाम) की स्थापना की गई है। इसमें अब तक 1.77 करोड़ किसान और 2.55 लाख ट्रेडर पंजीकृत हो चुके हैं। यह व्यवस्था किसानों की विपणन संबंधित समस्याओं के हल के लिए बनाई गई है।

नौवां, कृषि में मशीनीकरण को बढ़ावा देने के लिए भी बजट आवंटित किया गया है। इसके अंतर्गत खेती में ड्रोन के उपयोग जैसी आधुनिक प्रणाली पर ध्यान दिया गया है। अब तो ड्रोन दीदियां भी तैयार हो रही हैं। ये दीदियां ड्रोन के जरिए कृषि क्षेत्र में क्रांति ला सकती हैं।

दसवां, इस अवधि में कृषि वैज्ञानिकों को किसानों से जोड़ने के लिए दो अभूतपूर्व योजनाओं को क्रियान्वित किया गया है। इससे प्रयोगशालाओं और शोध संस्थानों में काम करने वाले वैज्ञानिक सक्रिय रूप से अपने संस्थानों द्वारा विकसित तकनीक को किसानों के पास ले जाते हैं। ‘मेरा गांव, मेरा गौरव’ (एमजीएमजी) और अनुसूचित जाति अप परियोजना (एससीएसपी) से हजारों गांवों के लाखों किसानों ने लाभ उठाया है और वैज्ञानिक भी अपने कार्य के महत्व को अच्छी तरह समझ पाए हैं।

11वां, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के अंतर्गत अब तक 2.84 लाख करोड़ की बड़ी धन राशि 10 करोड़ लघु किसानों के बैंक खाते में सीधे भेजी गई है। कृषि बजट वृद्धि का सबसे बड़ा भाग यहीं गया है।

12वां, पशु-पालकों और मछली-पालकों के लिए पहली बार किसान क्रेडिट कार्ड की व्यवस्था की गई तथा संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त पशुओं को नि:शुल्क टीकाकरण की सुविधा दी गई है।

13वां, कृषि निर्यात नीति के कारण कृषि निर्यात बढ़कर चार लाख करोड़ रु. तक पहुंच चुका है। इस दौरान दलहन उत्पादन में देश आत्मनिर्भर बन गया, किंतु तेलहन में अभी भी 1.5 लाख करोड़ रु. से अधिक का आयात हो रहा है। इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

14वां, फसलों की नई प्रजातियों के विकास में आधुनिकतम तकनीक के प्रयोग के लिए सरकार ने ‘जिनोम एडिटिंग’ के नियामन हेतु स्टैण्डर्ड आपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) शुरू किया है। इस कारण इस क्षेत्र में भारत तेजी से प्रगति कर रहा है।

15वां, विगत दशक में कृषि नीतियों में परिवर्तन तथा कृषि योजनाओं के लागू होने के कारण आज खाद्यान्न उत्पादन 25.71 करोड़ टन (2012-13) से बढ़ कर 31.56 करोड़ टन (2021-2022) हो चुका है तथा बागवानी उत्पादन 27.5 करोड़ टन (2016-17) से 35.5 करोड़ टन (2022-23) हो गया है।

प्राकृतिक खेती की ‘खाद’

प्राकृतिक खेती में देसी बीज का प्रयोग होता है और किसी पौधे को खाद नहीं दी जाती। पौधे की वृद्धि के लिए गो उत्पादों से बनी सामग्री डाली जाती है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार देसी गाय के ताजा गोबर में तीन-पांच करोड़ तक सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। 10 किलो गोबर में 10 किलो गोमूत्र, एक किलो गुड़, एक किलो दलहन का आटा, एक मुट्ठी रसायन-रहित मिट्टी को 180 लीटर पानी में चार से छह दिन तक के लिए छोड़ दिया जाता है। इसे बीच-बीच में छड़ी से हिलाया जाता है। इसके बाद जो पदार्थ बनता है, उसे पौधे में डाला जाता है।

आगे राह आसान नहीं है, किंतु स्पष्ट दृष्टि तथा निरंतर प्रयासों के साथ भारत शीघ्र ही तेलहन उत्पादन में भी आत्मनिर्भर बन सकता है। पूर्व में खाद्य आयात पर निर्भर भारत देश अब न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि एक बड़ा कृषि उत्पाद निर्यातक देश बन चुका है। इस ऊंचाई को कायम रखने के लिए कृषि विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में सतत शोध और विकास की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार निरंतर प्रयास करने होंगे।
(इस लेख में दिए गए आंकड़े कृषि मंत्रालय की वेबसाइट से लिए गए हैं)

Topics: दूरदर्शन-किसानकृषि भारतीय अर्थव्यवस्थामेरा गांववैज्ञानिक शोधसबका साथOne Indiaसबका विकासBest IndiaSabka VikasLand Use Authorityश्रेष्ठ भारतDoordarshan-KisanSabka SaathAgriculture Indian Economyमेरा गौरव’My Villageएक भारतScientific Research
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