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‘लोकतंत्र को खतरे’ में बता विपक्ष के लिए बैटिंग कर रहा ‘फाइनैंशियल टाइम्स’, कोर्ट के तथ्यों को किया दरकिनार

इस लेख में यह तो कहा गया है कि मोदी सरकार विपक्षी दलों के नेताओं को परेशान कर रही है, मगर विपक्षी दलों के उन कार्यों के विषय में नहीं बताया गया है, जिन्हें लेकर न्यायालय द्वारा आदेश किए जा रहे हैं।

by सोनाली मिश्रा
Apr 5, 2024, 11:00 am IST
in भारत, विश्लेषण
Financial times article on loktantra ED Action on Opsition

फाइनैंशियल टाइम्स के लेख का स्क्रीनशॉट

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भारत में लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है और हर ओपिनियन पोल में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार की वापसी दिख रही है। हालांकि, नतीजे आने में समय है, आंकलन चालू है। यह आंकलन जहां जनता मोदी सरकार के कामों के आधार पर कर रही है, तो वहीं भारत की मीडिया में एक बहुत बड़ा औपनिवेशिक सोच वाला समूह है, जिसके लिए भारत में लोकतंत्र पीड़ित हो रहा है और वह भी इसलिए क्योंकि कथित विपक्षी नेताओं पर कानूनी कार्यवाही हो रही है।

यह वर्ग ऐसा है, जो भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने वाले हर दल का बिना शर्त समर्थन करता है क्योंकि उसे लगता है कि इंडिया में यदि लोकतंत्र है तो वह भाजपा विरोधी दलों के कारण। यह ऐसा वर्ग है जिसे इस कारण गैर-भाजपाई दलों पर प्रश्न उठाना सही नहीं लगता है क्योंकि इससे कहीं न कहीं लोकतंत्र पर खतरा आ जाएगा। इस समय जो न्यायिक कार्यवाहियां भारत के विपक्षी दलों के नेताओं के घोटालों पर की जा रही हैं, उन्हें लेकर यह वर्ग इस सीमा तक चिंतित है कि उसने यह घोषणा ही जैसे कर दी है कि ‘लोकतंत्र की जननी की स्थिति ठीक नहीं है।’

आज फाइनेंशियल टाइम्स के सम्पादकीय मंडल ने एक ओपिनियन पीस लिखा है जिसमें उन्होंने लिखा है लोकतंत्र की जननी सही स्थिति में नहीं है। यह लिखा गया है कि भारत में लोकतंत्र समर्थक बयानबाजी और वास्तविकता के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है।

इसे भी पढ़ें: श्रीकृष्ण जन्मभूमि: कथित शाही ईदगाह को वक्फ ने बताया अपना, हिन्दू पक्ष ने SC के फैसले का हवाला दे उठाए सवाल

मगर यह अंतर कैसे बढ़ रहा है, यह देखना बहुत रोचक है। यह अंतर इस एडिटोरियल बोर्ड के अनुसार इसलिए बढ़ता जा रहा है क्योंकि नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी के शासन की एक बड़ी विशेषता यह रही है कि उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं विपक्ष को चुप कराने का कार्य किया है और विशेषकर पांच वर्ष पहले दूसरी जीत के बाद से। इनकी आपत्ति इस बात को लेकर है कि कर या कानूनी प्राधिकरणों द्वारा उत्पीड़न से सरकारी आलोचकों का मुंह बंद किया जा रहा है और फिर चाहे वह स्वतंत्र मीडिया हो, अकादमिक्स हों, थिंक टैंक या नागरिक समूह के लोग हों। भारतीय जनता पार्टी के मुखर हिन्दू राष्ट्रवाद ने भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की परम्परा का क्षरण किया है।

इस लेख में पूरे एडिटोरियल बोर्ड ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि चुनाव आते ही राज्य की संस्थाएं विपक्षी दलों को चुप कराने के लिए और भी मुस्तैदी से लग गयी हैं, जिनमें अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी और कर विवाद के चलते कांग्रेस के खाते फ्रीज़ होना शामिल है। सबसे मुख्य राजनीतिक व्यक्तित्व राहुल गांधी का कहना है कि पार्टी चुनाव अभियान के कार्यकर्ताओं, विज्ञापन और यात्रा का भुगतान करने में असमर्थ है।

इसमें यह भी कहा गया कि कैसे भारत में लोकतंत्र मोदी सरकार के कारण खतरे में है और यह मामला अब भारत के नागरिकों के अधिकारों और आजादी का है और इसे लेकर विश्व के राजनेता चिंतित भी हैं और अमेरिका ने केजरीवाल की गिरफ्तारी पर चिंता जताई है और भारत सरकार द्वारा सम्मन किए जाने के बाद भी अमेरिका ने इस विषय में अपनी चिंता व्यक्त की है। इस लेख में यह भी लिखा है कि और लोकतांत्रिक देशों को इसी प्रकार की चिंता दिखानी चाहिए। भारत की प्रगति एवं सम्पन्नता के लिए राजनीतिक आजादी को संरक्षित करना अनिवार्य है।

पूर्वाग्रह से भरा लेख

यह पूरा लेख आरम्भ से ही दुराग्रह से भरा हुआ लेख है। इस लेख में यह तो कहा गया है कि मोदी सरकार विपक्षी दलों के नेताओं को परेशान कर रही है, मगर विपक्षी दलों के उन कार्यों के विषय में नहीं बताया गया है, जिन्हें लेकर न्यायालय द्वारा आदेश किए जा रहे हैं।

इसे भी पढ़ें: हल्द्वानी हिंसा पर मुस्लिमों को पीड़ित बता झूठ फैला रहा पाकिस्तान, सोशल मीडिया, हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद को कोसा

क्या फाइनेंसियल टाइम्स का सम्पादक बोर्ड भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका के विषय में संदेह उत्पन्न कर रहा है और भारत की निष्पक्ष न्यायपालिका को कटघरे में खड़ा कर रहा है? इस लेख में सम्पादक मंडल को समस्या किस बात से यह भी नहीं पता चल रहा है। क्या फाइनेंसियल टाइम्स का सम्पादक मंडल यह मानकर चलता है कि भारतीय जनता पार्टी का विरोधी होने भर से किसी भी राजनीतिक दल को यह छूट मिल जाती है कि वह कुछ भी करे और उन्हें गिरफ्तार केवल इस कारण न किया जाए क्योंकि वह नेता हैं? और भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने वाले नेता हैं?

बंगाल में टीएमसी के नेता द्वारा संदेशखाली में जिस प्रकार से महिलाओं का शोषण किया गया, तो उन महिलाओं के पक्ष में इसलिए खड़ा न हुआ जाए क्योंकि अपराध करने वाला एक ऐसी पार्टी का नेता है, जो भारतीय जनता पार्टी की विरोधी है और ऐसा करने से लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा?

यदि कांग्रेस पार्टी आयकर नहीं जमा करती है और उसे लेकर कोई एजेंसी कदम उठाती है तो क्या इस लिए कदम उठाना गैर कानूनी हो जाएगा कि कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी का विरोध करती है? कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में कई घोटाले पकड़ में आए थे, तो क्या उन पर कोई कदम इसलिए न उठाया जाए क्योंकि कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी की विरोधी पार्टी है? नेशनल हेराल्ड वाला मामला अभी चल ही रहा है और हाल ही में टूजी घोटाले में ए राजा तथा अन्य लोगों को बरी करने को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में एक अपील स्वीकार हुई थी और अब इस पर कार्यवाही भी होगी। तो क्या घोटालों की तह में इसलिए न जाया जाए क्योंकि ए राजा तथा अन्य आरोपी भारतीय जनता पार्टी के विरोधी हैं?

क्या उदयनिधि स्टालिन जैसे नेताओं को इसलिए विषवमन की छूट होनी चाहिए और उन पर कार्यवाही नहीं होनी चाहिए क्योंकि वे भाजपा विरोधी हैं? आखिर भाजपा विरोधी होना हर अपराध से छूट लेने जैसा क्यों है? क्या घोटालों को इसलिए अनदेखा कर देना चाहिए क्योंकि चुनाव हैं? और चुनाव तो भारत जैसे देश में हर वर्ष कहीं न कहीं होते ही रहते हैं, तो क्या सारे मामलों को कभी भी उठाना नहीं चाहिए क्योंकि चुनाव है?

भारत में अपनी एक स्वतंत्र न्यायपालिका है, जो कानूनों के आधार पर स्वतंत्र निर्णय प्रदान करती है, और यह भी याद रखना चाहिए कि विपक्षी दलों के जो भी नेता या तो शराब पॉलिसी या फिर अन्य मामलों में जेल में हैं, उन्हें माननीय न्यायालयों से भी राहत नहीं मिली है, तो क्या फाइनेंसियल टाइम्स जैसे समाचारपत्र हमारी न्यायपालिका को ही कठघरे में खड़ा कर रहे हैं?

या फिर वह यह कहना चाहते हैं कि भारत के आम नागरिकों और भारतीय जनता पार्टी के लोगों के लिए क़ानून और न्याय अलग हो और भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने वाले नेताओं के लिए अलग? क्या उनकी दृष्टि में भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने वाले नेता हर अपराध से परे हैं? क्या मोहल्ला क्लीनिक में अनिय्मातित्ताओं, शराब पॉलिसी में जो भी वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं, उनके विषय में इसलिए बात ही नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह घोटाला भाजपा विरोधी दलों के नेताओं ने किया है? यह छूट आखिर किसलिए?

सबसे खतरनाक बात है देश की न्यायिक, एवं निर्वाचन प्रक्रियाओं पर अविश्वास व्यक्त करते हुए यह आस जगाना कि अमेरिका की तरह अन्य देश भी भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करें? अमेरिका में भी चुनाव होने वाले हैं और अमेरिका में चुनावों को लेकर पिछली बार जो कुछ हुआ था, वह पूरे विश्व ने देखा था। कैसे बैलेट पेपर्स को लेकर हंगामा हुआ था और कैसे ट्रंप के समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया था और इतना ही नहीं ट्रंप चुनाव न लड़ पाए, इसके लिए भी कई प्रयास किए गए, तो अमेरिका किस मुंह से भारत की स्वतंत्र संस्थाओं पर अविश्वास की बात कर सकता है?

अभी हाल ही में पाकिस्तान में हुए चुनावों पर उसने मुंह तक नहीं खोला है। जब यही प्रश्न अमेरिका के राजदूत मिलर से एक पत्रकार ने पूछा कि केजरीवाल पर इतने मुखर मगर पाकिस्तान पर क्यों नहीं?

https://twitter.com/sidhant/status/1775707196103524658?

इस पर मिलर ने कहा वह चाहते हैं कि पाकिस्तान में सब ठीक से रहें। भारत के मीडिया का एक बड़ा वर्ग अभी तक भारतीय जनता पार्टी के शासन को स्वीकार नहीं कर पाया है। उसे ऐसा लगता है कि भारत पर विदेशी प्रभुत्व बने रहना चाहिए, और वह एक अजीब ही आत्महीनता एवं औपनिवेशिक छद्म श्रेष्ठता की भावना से भरा रहता है और जिसके लिए भारत के आम लोग कीड़े मकोड़ों से बढ़कर कुछ नहीं हैं जिनके साथ कोई भी नेता, कोई भी संस्था कुछ भी कर सकती है, बशर्ते वह भारतीय जनता पार्टी की विरोधी हो, क्योंकि यदि उसके विरुद्ध कोई कदम उठाया जाता है तो वह लोकतंत्र पर हमला होगा और फिर विदेशी सरकारें भारत के अंदरूनी मामलों में दखल की अधिकारी हों जाए!

यह मानसिकता समझ से परे ही नहीं, भारतीय स्वतंत्र संस्थानों के प्रति अविश्वास से भी भरी है!

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