आखिर दसवें समन के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पाप का घड़ा भरा और प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) ने उन्हें 21 मार्च को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि केजरीवाल ने गिरफ्तारी से बचने के लिए खूब कोशिश की, लेकिन उन्हें न्यायालय से भी राहत नहीं मिली। यहां यह बात माननी पड़ेगी कि इस मामले में ई.डी. ने बहुत धैर्य रखा। गौरतलब है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने ई.डी. से पूछा कि क्या आपके पास पर्याप्त सबूत हैं, तब ई.डी. ने अदालत के समक्ष बहुत सारे प्रमाण रखे।
इसके बाद अदालत ने केजरीवाल की प्रार्थना को खारिज कर दिया और ई.डी. ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। रात में ही केजरीवाल के महंगे वकील सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। दूसरे दिन यानी 22 मार्च को केजरीवाल के वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय से याचिका वापस ले ली। इसके पीछे ‘वकील बुद्धि’ ने ही काम किया।
दरअसल, केजरीवाल के वकील चाहते थे कि इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ही करें, लेकिन उन्होंने यह मामला न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ को भेज दिया। न्यायमूर्ति खन्ना वही न्यायाधीश हैं, जिन्होंने इसी शराब घोटाले के अन्य आरोपियों को जमानत तक नहीं दी। इसलिए केजरीवाल के वकीलों को लगा कि अब सर्वोच्च न्यायालय से याचिका वापस लेने में ही भलाई है।
वैसा, देखा जाए तो अपनी गिरफ्तारी के लिए केजरीवाल खुद जिम्मेदार हैं। उन्होंने 9 बार ई.डी. के समन को ठेंगा दिखाया। इससे पहले ई.डी. ने केजरीवाल को 2 नवंबर, 2023, 21 दिसंबर, 2023 और इस वर्ष 3 जनवरी, 18 जनवरी, 2 फरवरी, 19 फरवरी, 26 फरवरी, 4 मार्च और 21 मार्च को समन भेज कर हाजिर होने को कहा था। पर केजरीवाल ने हर बार ई.डी. के समन को राजनीति से प्रेरित बताकर उसके सवालों से बचने का प्रयास किया। यही प्रयास उन्हें महंगा पड़ा।
बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय जब किसी के खिलाफ कोई मामला दर्ज करता है, तो उसे एन्फोर्समेंट केस इंवेस्टिगेशन रिपोर्ट (ई.सी.आई.आर.) कहते हैं। यह एफ.आई.आर. से अलग होती है। नियमानुसार एफ.आई.आर. की प्रति अभियुक्त को उपलब्ध कराई जाती है, लेकिन ई.सी.आई.आर. की प्रति देना जरूरी नहीं है। यह बात भी है कि कोई पुख्ता सबूत होने पर ही ई.सी.आई.आर. दर्ज कराई जाती है। इसलिए ई.डी. के समन को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
9 मार्च, 2024 को केरल उच्च न्यायालय ने भी यही बात कही। न्यायमूर्ति देवान रामचंद्रन ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय के समन पर हर नागरिक को उसके सामने प्रस्तुत होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर ई.डी. उनको भी समन भेजता है तो वे उसके सामने हाजिर होने के लिए बाध्य हैं। इसके माध्यम से न्यायमूर्ति रामचंद्रन शायद केजरीवाल को यह बताना चाहते थे कि उन्हें ई.डी. के पहले ही समन के बाद उसके सामने हाजिर हो जाना चाहिए था, ताकि इस मामले की जांच आगे बढ़ती, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता।
अब जरा प्रवर्तन निदेशालय को भी समझ लेते हैं। प्रवर्तन का शाब्दिक अर्थ है प्रवृत्त करना, उभारना या किसी कार्य को पूर्ण करना। यह भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आता है। इसकी स्थापना 1955 में हुई थी। ई.डी. तीन प्रकार के मामलों की जांच करता है। प्रथम, धन शोधन। धन शोधन निवारण अधिनियम-2002 के अनुसार आय से अधिक संपत्ति एकत्र करना एक ऐसा अपराध है जिसकी जांच का कार्य प्रवर्तन निदेशालय करता है। संपत्ति का पता लगाने हेतु निदेशालय उस संपत्ति को जब्त कर सकता है, संलग्न कर सकता है और आरोपियों के खिलाफ विशेष अदालत में मुकदमा भी चला सकता है।
दूसरा है विदेशी मुद्रा कानून का उल्लंघन। विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम 1999 के अंतर्गत प्रवर्तन निदेशालय आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है।
तीसरा है भगोड़ा आर्थिक अपराध अधिनियम 2018। इसके तहत जो लोग आर्थिक अपराध कर विदेश भाग जाते हैं, उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाती है। इस कानून के तहत केंद्र सरकार भागे हुए अपराधियों की संपत्ति की कुर्की कर सकती है। मामले की जानकारी मिलते ही प्रवर्तन निदेशालय हरकत में आ जाता है। आई.पी.सी/ सी.आर.पी.सी. के तहत जिन अपराधियों पर मुकदमा दर्ज हो सकता है, उन पर सामानांतर रूप से प्रवर्तन निदेशालय द्वारा भी शिकंजा कसा जा सकता है।
ई.डी. आरोपी को धनशोधन निवारण अधिनियम (पी.एम.एल.ए.) की धारा 50 में समन करवा कर तलब कर सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि प्रवर्तन निदेशालय उसे गिरफ्तार कर लेगा। हां, ई.डी. उससे आवश्यक दस्तावेज की मांग कर सकता है, उसका बयान दर्ज करा सकता है। ऐसे में आरोपी को ई.डी. के पहले समन का पालन करना ही चाहिए। बार-बार समन के बाद भी अगर आरोपी ई.डी. के सामने हाजिर नहीं होता है, तो पी.एम.एल.ए. की धारा 19 के तहत ई.डी. उसे गिरफ्तार कर सकता है।
समन का सम्मान नहीं करने पर ही ई.डी. ने अरविंद केजरीवाल और उनसे पूर्व झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया। यही नहीं, ई.डी. ने तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी, शरद पवार के करीबी जयंत पाटिल, शिवसेना नेता संजय राउत, लालू यादव, उनके पुत्र तेजस्वी यादव जैसे नेताओं को भी कई मामलों में आरोपी मानकर समन जारी किया है।
अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने 545 पृष्ठ के ऐतिहासिक फैसले में ई.डी. की शक्तियों का उल्लेख किया है। इसमें कहा गया है कि कालाधन किसी भी राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता पर आघात है। कालेधन का लेन-देन सीधे तौर से अपराध के दायरे में आता है। न्यायालय में वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अनुच्छेद 21 और 22 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। लेकिन न्यायालय ने उनकी सारी दलीलों को दरकिनार करते हुए कहा कि ई.डी. के पास ऐसी शक्तियां हैं कि वह किसी आरोपी को गिरफ्तार कर सकता है।
आरोपी की संपत्ति की खोज और उसको जब्त करने का संवैधानिक अधिकार ई.डी. के पास है। पी.एम.एल.ए. में ये सब प्रावधान सुरक्षित रखे गए हैं। एफ.आई.आर., और ई.सी.आई.आर. दोनों अलग-अलग कानूनी प्रावधान में आते हैं। फौजदारी मुकदमों में ‘जब तक दोष सिद्ध न हो जाए तब तक निर्दोष’ वाला कथन पी.एम.एल.ए. के मामलों में लागू नहीं होता। न्यायाधीश खानविलकर आगे कहते हैं कि धनशोधन एक बहुत बड़ा अपराध है, जो कि आतंकवाद से भी ज्यादा संगीन है। इस अपराध के लिए कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए। वास्तव में ऐसे ही प्रावधानों से भारत के आम लोगों की गाढ़ी कमाई को लुटने से बचाया जा सकता है। बहराल, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अदालत ने केजरीवाल की ई.डी. हिरासत 1 अप्रैल तक बढ़ा दी है।
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