28 मार्च को बेंगलुरु में ‘हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड’ (एचएएल) के हवाई अड्डे से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में भारत के सम्पूर्ण स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान ‘तेजस’ के ‘एमके1ए’ वैरिएंट के पहले विमान एलए5033 की सफल उड़ान के साथ ही भारत ने रक्षा विमानन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा और बेहद महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ा दिया है। तेजस एमके1ए विमान श्रृंखला का यह विमान बेंगलुरु के आसमान में 18 मिनट तक सफलतापूर्वक उड़ता रहा और हवा में 18 मिनट बिताने के बाद इसने सुरक्षित लैंडिंग की। उड़ान का संचालन चीफ टेस्ट पायलट ग्रुप कैप्टन केके वेणुगोपाल (सेवानिवृत्त) ने किया।
4.5 पीढ़ी के तेजस विमान के एमके1ए वैरिएंट को अब जल्द ही वायुसेना के बेड़े में शामिल किया जाएगा। एचएएल द्वारा निर्मित यह हर मौसम में काम करने वाला बहु-उद्देशीय लड़ाकू विमान है, जिसमें उन्नत इलैक्ट्रॉनिक रडार, युद्ध और संचार प्रणाली, बेहतर युद्ध क्षमता और बेहतर सुविधाएं होंगी। एचएएल के मुताबिक इसके शामिल होने से वायुसेना की क्षमता दोगुनी हो जाएगी। यह अन्य सुधारों के अलावा डिजिटल रडार चेतावनी रिसीवर, एक बेहतर एईएसए (सक्रिय इलैक्ट्रॉनिक रूप से स्कैन की गई सरणी) रडार, उन्नत दृश्य-सीमा (बीवीआर), हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों और बाहरी आत्म-सुरक्षा जैमर पॉड जैसी विशेषताओं से लैस होगा।
भारत का स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस न केवल भारतीय वायुसेना के लिए बेहद अहम है बल्कि दुनिया के कई प्रमुख देशों का भरोसा भी इस पर लगातार बढ़ रहा है, जिसके चलते दुनियाभर में इसकी मांग बढ़ रही है। लड़ाकू विमान तेजस की सफलता को देखते हुए भारत सरकार ने हाल ही में एक बड़ा निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) कुछ समय पहले तेजस एलसीए एमके2 मल्टीरोल लड़ाकू विमान के अधिक प्रभावी मॉडल के विकास को भी मंजूरी दे चुकी है, जिसके बाद यह विमान भारतीय वायुसेना में चरणबद्ध तरीके से मिराज 2000, जगुआर और मिग-29 लड़ाकू विमानों की जगह लेते हुए वायुसेना को बेहद शक्तिशाली बनाएगा। एलसीए मार्क2 लड़ाकू विमान विकास परियोजना को सरकार द्वारा स्वीकृति प्रदान किए जाने से डिजाइनरों के लिए एक उन्नत 17.5 टन एकल इंजन विमान विकसित करने का रास्ता खुल चुका है। एयरोनॉटिकल डवलपमेंट एजेंसी (एडीए) प्रमुख गिरीश देवधरे के अनुसार पांचवीं पीढ़ी के उन्नत मध्यम लड़ाकू विमानों की परियोजना व्यापक उड़ान परीक्षणों और अन्य संबंधित कार्यों के बाद वर्ष 2027 तक पूरी हो जाएगी और सब कुछ ठीक रहा तो तेजस-2 की पहली उड़ान जल्द संभव होगी। परीक्षण उड़ान तथा प्रमाणन के बाद एचएएल 2028 से 2030 के बीच तेजस-2 का उत्पादन शुरू कर देगी, जो उन्नत 4.5 पीढ़ी का विमान होगा।
लाइटवेट तेजस एमके1 मुख्य रूप से देश की वायु रक्षा के लिए है जबकि मध्यम वजन के एमके2 फाइटर विमान भारी हथियारों के साथ दुश्मन के इलाके में आक्रामक अभियानों के लिए उपलब्ध होंगे और माना जा रहा है कि अधिक शक्तिशाली इंजन से लैस एलसीए तेजस एमके1 का अधिक सक्षम और आधुनिक विकसित स्वरूप तेजस एमके2 दुश्मन के क्षेत्र में घुसकर दोगुनी ताकत से प्रहार करेगा। डीआरडीओ के मुताबिक यह विमान एवियोनिक्स और क्षमताओं के मामले में राफेल विमान की श्रेणी का होगा लेकिन वजन में हल्का होगा। सरकार द्वारा यह भी मंजूरी दी जा चुकी है कि विमान में इस्तेमाल होने वाले इंजन प्रारंभिक विकास चरण के बाद मेड इन इंडिया होने चाहिएं। एलसीए एमके2 लड़ाकू विमान विकास परियोजना पर सरकार द्वारा पहले ही ढ़ाई हजार करोड़ रुपये की स्वीकृति दी जा चुकी है और अब प्रोटोटाइप, उड़ान परीक्षण तथा प्रमाणन के साथ तेजस एमके2 के डिजाइन और विकास के लिए 6500 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि स्वीकृत हो चुकी है।
तेजस-2 की पहली उड़ान आगामी एक-दो वर्ष में सामने आने की उम्मीद है। इस मैगा परियोजना को एलसीए एमके1 कार्यक्रम में हुई प्रगति से लाभ मिलेगा और पांचवीं पीढ़ी के उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान परियोजना के विकास में भी मदद मिलेगी। चीन के साथ जारी तनाव के बीच यह परियोजना इसलिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि इससे न केवल वायुसेना को मजबूती मिलेगी बल्कि भारत के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को भी गति मिलेगी। तेजस एमके1 में जहां जीई-404 इंजन तथा ईएलटीए ईएल/एम-2032 मल्टीमोड रडार लगा है, वहीं एमके2 में अधिक ताकतवर इंजन जीई-414 तथा एईएसए रडार इस्तेमाल होगा। एमके1 की पिक पावर 83 किलोन्यूटन और वजन तीन टन है लेकिन एमके2 की पिक पावर 98 किलोन्यूटन तथा वजन चार टन होगा। शक्तिशाली जीई-414 इंजन से इसकी हथियार ले जाने की क्षमता बढ़ जाएगी, इसके अलावा अत्याधुनिक रडार, बेहतर एवियोनिक्स तथा इलैक्ट्रॉनिक प्रणाली इसे राफेल और अमेरिकी सेना के एफ-7 जैसे अत्याधुनिक विमानों की श्रेणी में खड़ा करेगी।
करीब दो साल पहले सिंगापुर एयर शो में जब तेजस ने लो-लेवल एयरोबैटिक्स डिस्प्ले में हिस्सा लेकर सिंगापुर के आसमान में गर्जना के साथ कलाबाजियां करते हुए अपने पराक्रम और मारक क्षमता की पूरी दुनिया के समक्ष अद्भुत मिसाल पेश की थी, जब सिंगापुर के आसमान में कलाबाजियां करते तेजस की तस्वीरें भारतीय वायुसेना द्वारा ‘लाइक ए डायमंड इन द स्काई’ लिखकर ट्वीट की गई थी। मौजूदा समय में एलएसी और एलओसी पर चीन तथा पाकिस्तान के खिलाफ दोहरी चुनौती में वायुसेना के लिए तेजस बड़ा और घातक हथियार है। चीन तथा पाकिस्तान के जेएफ-17 से ज्यादा ताकतवर और इंपेक्टफुल होने के कारण दुनियाभर में इसकी डिमांड बढ़ रही है। इसकी मांग बढ़ने का एक बड़ा कारण तेजस का दुनिया के अन्य लड़ाकू विमानों से कीमत में सस्ता होना भी है। तेजस की कीमत दुनिया के अन्य लड़ाकू विमानों की तुलना में बेहद कम है जबकि ताकत और बहादुरी के मामले में यह दूसरे लड़ाकू विमानों से काफी बेहतर है। हल्के कॉम्बेट एयरक्राफ्ट के तौर पर निर्मित किए गए तेजस को समय के साथ लगातार अपडेट किया जाता रहा है, इसीलिए कम बजट वाले देशों के लिए यह बेहद अनुकूल है। दुनियाभर में इसकी विश्वसनीयता बढ़ने का सबसे बड़ा कारण यही है कि यह लड़ाकू विमान कभी किसी दुर्घटना का शिकार नहीं हुआ है। भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक दुनिया के कई देश भारतीय लड़ाकू विमान तेजस को खरीदने के इच्छुक हैं। पिछले दिनों अर्जेंटीना द्वारा इस विमान में रूचि दिखाई गई थी जबकि उससे पहले मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, मिस्र, फिलीपींस इत्यादि देश भी तेजस में रुचि दिखा चुके हैं।
भारतीय वायुसेना में काफी लंबे समय से अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों तथा रक्षा साजो-सामान की कमी महसूस की जाती रही है, ऐसे में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा 13 जनवरी 2021 को वायुसेना के लिए एचएएल द्वारा निर्मित किए जाने वाले 83 हल्के स्वदेशी लड़ाकू विमान ‘तेजस’ की खरीद के लिए 47 हजार करोड़ के सौदे को अनुमति दिया जाना रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भरता की दिशा में बहुत बड़ा कदम माना गया था। रक्षा मंत्रालय ने 83 एलसीए तेजस एमके-1ए लड़ाकू के लिए तब एचएएल के साथ 46898 करोड़ रुपये से अधिक के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे और 73 एलसीए तेजस एमके1ए लड़ाकू विमान तथा 10 एलसीए तेजस एमके1 ट्रेनर विमान की खरीद को मंजूरी दी गई थी जबकि डिजाइन और बुनियादी ढ़ांचे के विकास के लिए 1202 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे। वर्ष 2020 में जारी नई रक्षा खरीद नीति के तहत देश में ही डिजाइन, विकसित तथा निर्मित श्रेणी में वह पहली खरीद थी। तेजस को भारतीय वायुसेना का मुख्य आधार बनाने के क्रम में रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) द्वारा 97 और तेजस एमके-1ए विमानों की आवश्यकता की स्वीकृति (एओएन) प्रदान की जा चुकी है। फिलहाल भारतीय वायुसेना के पास दो तेजस स्क्वाड्रन (फ्लाइंग डैगर्स और फ्लाइंग बुलेट्स) हैं, जिनमें से एक पाकिस्तान के सामने दक्षिण-पश्चिमी सेक्टर में तैनात है।
तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया के मुताबिक तेजस लड़ाकू विमान चीन-पाकिस्तान के संयुक्त उद्यम में बने लड़ाकू विमान जेएफ-17 से हाईटेक और बेहतर है और यह किसी भी हथियार की बराबरी करने में सक्षम है। गुणवत्ता, क्षमता और सूक्ष्मता में तेजस के सामने जेएफ-17 कहीं नहीं टिक सकता। उनका कहना है कि तेजस आतंकी ठिकानों पर बालाकोट स्ट्राइक से भी ज्यादा ताकत से हमला करने में सक्षम है। एक तेजस मार्क 1ए लड़ाकू विमान की कीमत करीब 550 करोड़ रुपये है, जो एचएएल द्वारा ही निर्मित सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान से करीब 120 करोड़ रुपये ज्यादा है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि तेजस मार्क 1ए लड़ाकू विमान इसी श्रेणी के दूसरे हल्के लड़ाकू विमानों से थोड़ा महंगा इसलिए है क्योंकि इसे बहुत सारी नई तकनीक के उपकरणों से लैस किया गया है। इसमें इसराइल में विकसित रडार के अलावा स्वदेश में विकसित रडार भी हैं। इसके अलावा इसमें अमेरिका की जीई कम्पनी द्वारा निर्मित एफ-404 टर्बो फैन इंजन लगा है। यह बहुआयामी लड़ाकू विमान है, जो मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी बेहतर नतीजे देने में सक्षम है। साढ़े चार जनरेशन के हल्के तेजस लड़ाकू विमान अत्याधुनिक तकनीक से बने हैं, जिनमें तैनात हथियार भी स्वदेशी रूप से ही विकसित किए गए हैं। तेजस भारत का पहला ऐसा स्वदेशी लड़ाकू विमान है, जिसमें 50 फीसदी से ज्यादा कलपुर्जे भारत में ही निर्मित हैं।
तेजस संस्कृत भाषा का नाम है, जिसका अर्थ है ‘अत्यधिक ताकतवर ऊर्जा’ और ‘तेजस’ का यह अधिकारिक नाम 4 मई 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रखा गया था। तेजस को एचएएल द्वारा ही निर्मित सुखोई विमानों से भी बेहतर माना जाता है। 42 फीसदी कार्बन फाइबर और 43 फीसदी एल्यूमीनियम एलॉय व टाइटेनियम से बनाए गए तेजस में एंटीशिप मिसाइल, बम तथा रॉकेट लगाए जा सकते हैं और यह हवा से हवा में और हवा से जमीन पर मिसाइलें छोड़ सकता है। लंबी दूरी की मार करने वाली मिसाइलों से लैस तेजस अपने लक्ष्य को लॉक कर उस पर निशाना दागने की विलक्षण क्षमता रखता है। यह कम ऊंचाई पर उड़कर नजदीक से भी दुश्मन पर सटीक निशाना साध सकता है। कुछ रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक तेजस लड़ाकू विमान 8-9 टन तक वजन उठाने और 52 हजार फुट तक की ऊंचाई पर ध्वनि की गति से डेढ़ गुना से भी ज्यादा तेज अर्थात् मैक 1.6 से लेकर मेक 1.8 तक की तेजी से उड़ सकते हैं। इतनी ऊंचाई पर यह 2300 किलोमीटर तक लगातार उड़ान भरने में सक्षम है।
तेजस को जैमर प्रोटेक्शन तकनीक से लैस किया गया है ताकि दुश्मन सीमा के करीब संचार बाधित नहीं हो सके। यह अपने से ज्यादा वजन वाले सुखोई विमान जितने ही हथियार और मिसाइल लेकर उड़ सकता है और दूर से ही दुश्मन के विमानों पर निशाना साधने तथा दुश्मन के रडार को चकमा देने की क्षमता भी रखता है। ‘क्रिटिकल ऑपरेशन क्षमता’ के लिए ‘एक्टिव इलैक्ट्रॉनिकली स्कैंड रडार’ जैसी नवीनतम तकनीक से लैस तेजस में बियांड विजुअल रेंज (बीवीआर) मिसाइल, इलैक्ट्रॉनिक वारफेयर सुइट तथा एयर टू एयर रिफ्यूलिंग की व्यवस्था भी की गई है। यह केवल 460 मीटर के रनवे पर दौड़कर उड़ने की क्षमता रखता है। इस जेट फाइटर में लगा वार्निंग सिस्टम दुश्मन की मिसाइलों और एयरक्राफ्ट का पता लगा सकता है। तेजस दुनिया में सबसे हल्का फाइटर जेट है, जो 15 किलोमीटर ऊंचाई तक उड़ सकने में सक्षम एक सुपरसोनिक फाइटर जेट है, जिसके निचले हिस्से में एक साथ नौ प्रकार के हथियार लोड और फायर किए जा सकते हैं। पूरी तरह से स्वदेशी तेजस 13.2 मीटर लंबा और 4.4 मीटर ऊचा है, जो टर्बों इंजन की मदद से 2222 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से उड़ान भरने में सक्षम है।
तेजस की कुछ अन्य प्रमुख विशेषताओं पर नजर डालें तो तेजस एचएएल द्वारा भारत में ही विकसित किया गया हल्का और मल्टीरोल फाइटर जेट है, जिसे वायुसेना के साथ नौसेना की जरूरतें पूरी करने के हिसाब से तैयार किया जा रहा है। तेजस विमानों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि पूर्णतया देश में ही विकसित करने के बाद इसकी ढ़ेरों परीक्षण उड़ान होने के बावजूद अब तक एक बार भी कोई भी उड़ान विफल नहीं रही और न ही किसी तरह का कोई हादसा हुआ। तेजस से हवा से हवा में मार करने वाली बीवीआर मिसाइल का सफल परीक्षण किया जा चुका है। इसके अलावा यह विमानवाहक पोत से टेकऑफ और लैंडिंग का परीक्षण एक ही उड़ान में पास कर चुका है। डीआरडीओ द्वारा तेजस का रात के समय किया गया अरेस्टेड लैंडिंग का ट्रायल भी पूर्ण रूप से सफल रहा था।
एक समय दुनिया भारत की स्वदेशी और स्वावलंबी बनने की आकांक्षाओं का मजाक उड़ाया करती थी लेकिन आज समय बदल चुका है और पूरी दुनिया भारत के अंतरिक्ष अभियानों सहित स्वदेशी रक्षा उत्पादों का लोहा मान रही है। भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रक्षा बजट वाला देश है और अपनी ज्यादातर रक्षा सामग्री का विदेशों से आयात करता रहा है लेकिन अब ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत भारत तेज गति से आगे बढ़ते हुए अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ रक्षा सामग्री का निर्यातक बनने की राह पर भी अग्रसर हो चुका है। भारतीय सीमाओं को चीन-पाकिस्तान सरीखे दुष्ट पड़ोसी देशों से निरन्तर दोहरी चुनौती मिलती रहती है, ऐसे में भारतीय वायुसेना को आधुनिक तकनीक से निर्मित तेजस विमानों से मजबूत करना बेहद जरूरी है। दुश्मनों की चुनौतियों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय वायुसेना के पास कुल 42 स्क्वाड्रन होने चाहिएं। हर स्क्वाड्रन में कम से कम 18 फाइटर जेट होते हैं जबकि हमारी वायुसेना के पास मौजूदा समय में 30-32 स्क्वाड्रन ही हैं और एचएएल से 83 तेजस मिल जाने तथा उसके बाद तेजस-2 के वायुसेना के बेड़े में शामिल होने से इन स्क्वाड्रनों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार एलसीए-तेजस आने वाले वर्षों में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू बेड़े की रीढ़ बनने जा रहे हैं। दरअसल तेजस में कई ऐसी नई प्रौद्योगिकियों को भी शामिल किया गया है, जिनमें से कई का भारत में इससे पहले कभी प्रयास भी नहीं किया गया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं)
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