चीन की भारत के पड़ासी देशों को लेकर चली जा रहीं धूर्त चालों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बखूबी जानते हैं। इसलिए उनकी विदेश नीति में पड़ोस सबसे पहले है, विशेष रूप से पूर्व के देश। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी भूटान की दो दिन की यात्रा पर गए थे। उन्होंने वहां कहा था कि भारत सदा भूटान के साथ खड़ा है और भूटान के विकास के लिए हर तरह की मदद करेगा। उनके इसी वादे के तहत भारत ने भूटान में ग्यालसुंग परियोजना के ढांचागत निर्माण के लिए दूसरी किश्त में विकास के लिए 5 अरब रुपये भूटान को सौंपे हैं।
यह वही परियोजना है जिसके लिए भारत ने गत जनवरी माह में ही पांच अरब रुपए भेजे थे। यानी इस परियोजना के लिए अभी तक भारत 10 अरब रुपए दे चुका है। अस परियोजना को लेकर जो समझौता हुआ है उसके अंतर्गत भूटान को भारत की ओर से कुल 15 अरब रुपए की आर्थिक मदद दी जाएगी। भारत की इस संबंध में भूमिका रणनीतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि कम्युनिस्ट विस्तारवादी चीन भूटान पर अपना शिकंजा गढ़ाने की फिराक में बैठा है। इसलिए भी भारत भूटान को ऐसे आड़े वक्त में अकेला नहीं छोड़ सकता।
विश्व को एक कुटुंब मानने की नीति अपनाने वाले भारत ने ग्यालसुंग परियोजना में ढांचागत विकास में मदद देकर एक प्रकार से चीन को संकेत दिया है कि शांतिप्रिय हिमालयी देश, भारत के पड़ोसी भूटान पर तिरछी नजर न डाले, वह अकेला नहीं है, भारत उसके साथ खड़ा है। भूटान में भारत के राजदूत सुधाकर दलेला ने इस किश्त के संबंध में वहां के विदेश एवं विदेश व्यापार मंत्री ल्योनपो धुंग्येल से भेंट की और उक्त परियोजना के लिए 5 अरब की दूसरी किश्त सौंपी। इस परियोजना पर भारत की ओर से मदद की पेशकश के बाद इस पर गत जनवरी माह में ही एक संधि हुई थी।
कमजोर और अविकसित देशों को भी उत्थान का मौका देने को समर्पित भारत की सोच की भूटान सरकार खुले दिल से तारीफ भी कर रही है। मदद राशि की दूसरी किश्त सौंपते हुए भारत ने जो बयान जारी किया है उसमें स्पष्ट कहा भी है कि भूटान नरेश की इस ऐतिहासिक पहल पर भारत को भूटान का साथ देने का सुअवसर मिला है जो भारत का सौभाग्य है।
भूटान का मोदी का दौरा 9 मार्च की उनके उस अरुणाचल प्रदेश की यात्रा के तुरंत बाद हुआ जिसे लेकर चीन ने आंखें तरेरने की कोशिश की थी लेकिन भारत के विदेश मंत्री जयशंकर के खरे जवाब के बाद चीन की बोलती बंद हो गई थी। अब मोदी ने भूटान का दौरा करके बीजिंग को साफ संकेत दे दिया है कि ‘नया भारत’ कम्युनिस्ट ड्रैगन की किसी चालाकी को कामयाब नहीं होने देगा।
भारत ने इससे पूर्व पिछले साल जनवरी में देसुंग फॉर ग्यालसंग कार्यक्रम को भी 2 अरब रुपये की सहायता राशि अर्पित की थी। गत 22—23 मार्च को जब प्रधानमंत्री मोदी भूटान गए थे तब वहां उन्होंने साफ कहा था कि भारत थिम्पू को विकास के कामों में पूरा सहयोग करने का वचन देता है। मोदी ने आने वाले पांच साल के दौरान 10,000 करोड़ रुत्र की मदद देने का भी वादा किया था। मोदी और भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे ने संयुक्त रूप से थिम्पू में भारत की मदद से बने एक आधुनिक महिला—शिशु अस्पताल को लोकार्पित करते हुए संकेत दिया था कि दोनों देश संबंधों को प्रगाढ़ बनाने की दिशा में प्रयत्नशील हैं। दोनों ही नहीं चाहते कि कम्युनिस्ट चीन इस क्षेत्र में अपनी कोई धूर्त चाल चले।
इसमें संदेह नहीं है कि मोदी की भूटान यात्रा से चीन सरकार सन्न है। गत कुछ वर्ष से बीजिंग की निगाह भूटान के सीमांत क्षेत्रों को निगल जाने पर रही है। इसीलिए भूटान के डोकलाम सहित अन्य कई क्षेत्रों का उसने अतिक्रमण करने की कोशिशें की थीं। भूटान पर चीन का इतना दबाव था कि ‘सीमा विवाद सुलझाने’ के लिए भूटान और चीन में जमीन की अदलबदल को लेकर कई बातें सुनने में आई थीं।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भूटान भारत के ठीक बगल में है और इसलिए सामरिक दृष्टि से भारत के लिए महत्वपूर्ण है। चीन का उस जगह दखल देने का भारत पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है। डोकलाम विवाद के वक्त यह स्पष्ट भी हुआ था लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की दृढ़ता ने चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।
भूटान का मोदी का दौरा 9 मार्च की उनके उस अरुणाचल प्रदेश की यात्रा के तुरंत बाद हुआ जिसे लेकर चीन ने आंखें तरेरने की कोशिश की थी लेकिन भारत के विदेश मंत्री जयशंकर के खरे जवाब के बाद चीन की बोलती बंद हो गई थी। अब मोदी ने भूटान का दौरा करके बीजिंग को साफ संकेत दे दिया है कि ‘नया भारत’ कम्युनिस्ट ड्रैगन की किसी चालाकी को कामयाब नहीं होने देगा।
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