गणेश शंकर विद्यार्थीः तमंचे से भी तेज थी जिनकी कलम की धार, सदैव पत्रकारिता जगत के आदर्श रहेंगे गणेश शंकर विद्यार्थी
July 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम विश्लेषण

गणेश शंकर विद्यार्थीः तमंचे से भी तेज थी जिनकी कलम की धार, सदैव पत्रकारिता जगत के आदर्श रहेंगे गणेश शंकर विद्यार्थी

गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता जगत के ऐसे महान पुरोधा थे, जिनकी लेखनी से ब्रिटिश सरकार इस कदर भयभीत रहती थी कि क्रांतिकारी लेखन के लिए उन्हें अंग्रेज सरकार द्वारा पांच बार सश्रम कारावास और अर्थदंड की सजा दी गई थी।

by योगेश कुमार गोयल
Mar 26, 2024, 07:31 pm IST
in विश्लेषण
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता जगत के ऐसे महान पुरोधा थे, जिनकी लेखनी से ब्रिटिश सरकार इस कदर भयभीत रहती थी कि क्रांतिकारी लेखन के लिए उन्हें अंग्रेज सरकार द्वारा पांच बार सश्रम कारावास और अर्थदंड की सजा दी गई। उनके लेखों में ऐसी गजब की ताकत थी कि उनकी पत्रकारिता ने ब्रिटिश शासन की नींद हराम कर दी थी। जब उनकी कलम चलती थी तो ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिल जाती थी। बेमिसाल क्रांतिकारी पत्रकारिता के कारण ही गणेश शंकर विद्यार्थी और उनका अखबार ‘प्रताप’ आज के दौर में भी पत्रकारिता जगत के लिए आदर्श माने जाते हैं। वह एक निर्भीक पत्रकार, समाजसेवी, महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे स्वयं तो एक उच्च कोटि के पत्रकार थे ही, उन्होंने अनेक युवाओं को लेखक, पत्रकार तथा कवि बनने की प्रेरणा और ट्रेनिंग दी। कांग्रेस के विभिन्न आन्दोलनों में भाग लेने तथा ब्रिटिश सत्ता के अत्याचारों के विरूद्ध ‘प्रताप’ में निर्भीक लेख लिखने के कारण वे पांच बार जेल गए। जब भी उन्हें अंग्रेज सरकार द्वारा गिरफ्तार किया जाता तो उनकी अनुपस्थिति में ‘प्रताप’ का सम्पादन माखनलाल चतुर्वेदी तथा बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ सरीखे साहित्य के दिग्गज संभाला करते थे।

26 अक्तूबर 1890 को उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के अतरसुइया मोहल्ले में एक स्कूल हैडमास्टर जयनारायण के घर जन्मे विद्यार्थी जी की प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू तथा अंग्रेजी में हुई। इलाहाबाद में शिक्षण के दौरान ही उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर हुआ। हिन्दी साप्ताहिक ‘कर्मयोगी’ के सम्पादन में वे पंडित सुन्दर लाल की सहायता करने लगे। कानपुर में अध्यापन के दौरान उन्होंने कर्मयोगी सहित कई और अखबारों में लेख लिखे और पत्रकारिता के जरिये स्वाधीनता आन्दोलन से गहरे जुड़ गए। कुछ समय बाद उन्होंने पत्रकारिता, सामाजिक कार्यों तथा स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़ाव के चलते ‘विद्यार्थी’ उपनाम अपना लिया और गणेश शंकर से ‘गणेश शंकर विद्यार्थी’ हो गए। 16 वर्ष की आयु में ही उन्होंनो ’हमारी आत्मोशसर्गता’ नामक पुस्तक की भी रचना की थी। उनकी उत्कृष्ट लेखनशैली से प्रभावित होकर हिन्दी पत्रकारिता जगत के पुरोधा पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 1911 में अपनी साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ में उपसम्पादक के पद पर कार्य करने का ऑफर दिया किन्तु विद्यार्थी जी को ज्वलंत समाचारों, समसामयिक तथा राजनीतिक विषयों में ज्यादा दिलचस्पी थी, इसलिए उन्होंने द्विवेदी जी का प्रस्ताव स्वीकारने के बजाय महामना पं. मदन मोहन मालवीय के हिन्दी साप्ताहिक ‘अभ्युदय’ में नौकरी ज्वाइन की।

9 नवम्बर 1913 को उन्होंने एक क्रांतिकारी पत्रकार के रूप में कानपुर से स्वयं ‘प्रताप’ नामक पत्रिका निकालना शुरू कर दिया। प्रताप के जरिये विद्यार्थी जी किसानों, मजदूरों और ब्रिटिश अत्याचारों से कराहते गरीबों का दुख-दर्द उजागर करने लगे। ब्रिटिश शासनकाल की उत्पीड़न और अन्याय की क्रूर व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाना उनकी पत्रकारिता का सबसे महत्वपूर्ण अंग था, जो ब्रिटिश हुकूमत को फूटी आंख न सुहाया और इसीलिए अपनी इसी क्रांतिकारी पत्रकारिता का खामियाजा उन्हें कई मुकद्दमों, भारी जुर्माने और कई बार जेल जाने के रूप में भुगतना पड़ा। 1920 में उन्होंने ‘प्रताप’ का दैनिक संस्करण निकालना शुरू कर दिया, जो मूलतः किसानों, मजदूरों और पीडि़तों का हिमायती समाचारपत्र बना रहा। उन्होंने ‘प्रताप’ के अलावा ‘प्रभा’ नामक एक साहित्यिक पत्रिका तथा एक राजनीतिक मासिक पत्रिका का भी प्रकाशन किया।

घटना जनवरी 1921 की है, जब रायबरेली के एक ताल्लुकदार सरदार वीरपाल सिंह ने किसानों पर गोलियां चलावाई थी। ‘प्रताप’ के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी ने उस घटनाक्रम का पूरा विवरण अपने अखबार में छापा, जिसके लिए उन्हें तथा ‘प्रताप’ छापने वाले शिवनारायण मिश्र पर मानहानि का मुकद्दमा दर्ज किया गया और उन्हें जेल हो गई। 16 अक्तूबर 1921 को विद्यार्थी जी ने स्वयं गिरफ्तारी दी और 22 मई 1922 को जेल से रिहा हुए। जेल में रहते हुए उन्होंने एक डायरी लिखी और रिहाई के बाद उन्होंने उसी पर आधारित ‘जेल जीवन की झलक’ नामक एक ऐसी श्रृंखला छापी, जिसे अत्यधिक पसंद किया गया और ‘प्रताप’ के साथ पाठकों का काफिला जुड़ता गया। उसके बाद तो अंग्रेजों ने उन्हें वक्त-बेवक्त लपेटने का कोई अवसर नहीं छोड़ा लेकिन विद्यार्थी अपने क्रांतिकारी विचारों से जरा भी नहीं डिगे।

जेल से रिहाई के कुछ ही समय बाद भड़काऊ भाषण देने के आरोप में उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा फिर गिरफ्तार कर लिया गया और 1924 में तब रिहा किया गया, जब उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया था। 1925 में राज्यसभा विधानसभा चुनाव में वे कानपुर से चुने गए और कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की स्वागत-समिति के प्रधानमंत्री भी नियुक्त हुए लेकिन 1929 में उन्होंने पार्टी की मांग पर त्यागपत्र दे दिया, जिसके बाद वे 1930 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष चुन लिए गए और उन्हें प्रदेशभर में सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व करने की अहम जिम्मेदारी दी गई। उसी दौरान उन्हें फिर गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और गांधी-इरविन पैक्ट के बाद 9 मार्च 1931 को उनकी जेल से रिहाई हुई।

स्वाधीनता संग्राम के उस दौर में हिन्दू-मुस्लिम एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग कर रहे थे लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने दोनों समुदायों की भावनाओं को भड़काने का ऐसा खेल खेला कि जगह-जगह हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक दंगे भड़कने लगे और देशभर में साम्प्रदायिक हिंसा फैलने लगी। कानपुर शहर भी साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस उठा। गणेश शंकर विद्यार्थी का मन इन दंगों से बड़ा व्यथित हुआ और वे स्वयं इन दंगों को रोकने तथा दोनों समुदायों में भाईचारा कायम करने के लिए लोगों को समझाते हुए घूमने लगे। कई जगहों पर वे लोगों को समझाने में सफल भी रहे और इन दंगों के दौरान उन्होंने हजारों लोगों की जान बचाई भी लेकिन वे स्वयं दंगाइयों की एक ऐसी टुकड़ी में फंस गए. जो उन्हें पहचानते नहीं थे। उसके बाद उनकी बहुत खोज की गई किन्तु वे कहीं नहीं मिले। आखिर में उनका पार्थिव शरीर एक अस्पताल में लाशों के ढ़ेर में पड़ा मिला, जो इतना फूल गया था कि लोग उसे पहचान भी नहीं पा रहे थे। हजारों लोगों की जान बचाने के बावजूद गणेश शंकर विद्यार्थी स्वयं धार्मिक उन्माद की भेंट चढ़ गए और इस प्रकार 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दिए जाने के दो ही दिन बाद देश ने 25 मार्च 1931 को अपनी कलम की ताकत से ब्रिटिश हुकूमत की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ाने वाला निर्भीक, निष्पक्ष, ईमानदार, यशस्वी व क्रांतिकारी पत्रकार भी खो दिया। 29 मार्च 1931 को उनका अंतिम संस्कार किया गया।

गणेश शंकर विद्यार्थी जीवन पर्यन्त जिस धार्मिक कट्टरता तथा उन्माद के खिलाफ आवाज उठाते रहे, वही धार्मिक उन्माद उनकी जिंदगी लील गया। 27 अक्तूबर 1924 को विद्यार्थी जी ने ‘प्रताप’ में ‘धर्म की आड़’ शीर्षक से लेख में लिखा था, ‘‘देश में धर्म की धूम है और इसके नाम पर उत्पात किए जा रहे हैं। लोग धर्म का मर्म जाने बिना ही इसके नाम पर जान लेने या देने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे लोग कुछ भी समझते-बूझते नहीं हैं। दूसरे लोग इन्हें जिधर जोत देते हैं, ये लोग उधर ही जुत जाते हैं।’’ वह गणेश शंकर विद्यार्थी ही थे, जिन्होंने श्याम लाल गुप्त पार्षद लिखित गीत ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ को जलियांवाला हत्याकांड की बरसी पर 13 अप्रैल 1924 से गाया जाना शुरू करवाया था। ऐसे क्रांतिकारी पत्रकार और महान् स्वाधीनता सेनानी को उनके बलिदान दिवस पर शत-शत नमन।

Topics: क्रांतिकारीलेखनWritingRevolutionaryjournalismbritish governmentपत्रकारितागणेश शंकर विद्यार्थीGanesh Shankar Vidyarthiब्रिटिश सरकार
Share2TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Rajasthan governor dr Hariobhau bagde

पत्रकारिता में खोज और अन्वेषण मूल्यों का अधिकाधिक समावेश हो- राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े

Baba saheb ambedkar

डॉ. आंबेडकर की पत्रकारिता का ‘सांस्कृतिक अवदान’

BJP attack on congress for supporting Jihad

भाजपा का कांग्रेस पर हमला: जिहाद को क्रांति बताना क्रांतिकारियों का अपमान, तुष्टिकरण की राजनीति पर सवाल

British PM Keir starmer grroming Jihad Muslims

ब्रिटेन में ग्रूमिंग जिहाद पर चुप्पी: कीर स्टार्मर मुस्लिमों को बता रहे ‘उदार’, कहा-यही ला रहे रहे सकारात्मक बदलाव

आगरा: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बोले, बांग्लादेश जैसी गलतियां न करें, आपस में बंटेंगे तो कटेंगे

आगरा: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बोले, बांग्लादेश जैसी गलतियां न करें, आपस में बंटेंगे तो कटेंगे

योगेश गोयल को उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए ‘देश रत्न पुरस्कार’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नामीबिया की आधिकारिक यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डॉ. नेटुम्बो नंदी-नदैतवाह ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया।

प्रधानमंत्री मोदी को नामीबिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, 5 देशों की यात्रा में चौथा पुरस्कार

रिटायरमेंट के बाद प्राकृतिक खेती और वेद-अध्ययन करूंगा : अमित शाह

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

लोन वर्राटू से लाल दहशत खत्म : अब तक 1005 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

यत्र -तत्र- सर्वत्र राम

NIA filed chargesheet PFI Sajjad

कट्टरपंथ फैलाने वालों 3 आतंकी सहयोगियों को NIA ने किया गिरफ्तार

उत्तराखंड : BKTC ने 2025-26 के लिए 1 अरब 27 करोड़ का बजट पास

लालू प्रसाद यादव

चारा घोटाला: लालू यादव को झारखंड हाईकोर्ट से बड़ा झटका, सजा बढ़ाने की सीबीआई याचिका स्वीकार

कन्वर्जन कराकर इस्लामिक संगठनों में पैठ बना रहा था ‘मौलाना छांगुर’

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies