लिबरल लबादे में इस्लामोफोबिया का झूठ
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

लिबरल लबादे में इस्लामोफोबिया का झूठ

‘उदारवाद’ के नाम पर छल करने की बजाय असल उदारवादियों का यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि अन्य आस्था समूहों को ऐतिहासिक रूप से कहीं ज्यादा कट्टरता और नफरत का सामना करना पड़ा है और वे आज भी इससे जूझ रहे हैं।

by हितेश शंकर
Mar 23, 2024, 09:36 am IST
in भारत, सम्पादकीय, धर्म-संस्कृति
बांग्लादेशी मजहबी उन्मादी तत्वों के दमन का शिकार हो रहे हैं हिन्दू (फाइल चित्र)

बांग्लादेशी मजहबी उन्मादी तत्वों के दमन का शिकार हो रहे हैं हिन्दू (फाइल चित्र)

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

विविध संस्कृतियों और मान्यताओं को सहेजने और पोषित करने वाले उदारवादी विचार की वास्तविकता यह है कि इस ‘लिबरल लबादे’ में खास किस्म की कट्टरता को छूट देने की मंशा छिपी है।

बात इस्लामोफोबिया बनाम अन्य मत—पंथों से जुड़ी है, जिस पर चीन और पाकिस्तान मिलकर हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ में एक विशेष प्रस्ताव लाए।

दरअसल, दुनिया में, ‘मजहबी कट्टरता’ और सम्प्रदाय विशेष से भय रखने की बात एक गंभीर मुद्दा है जिससे अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं सम्भवत: मनमाने तरीके से निपटना चाहती हैं। इस तरह की कोई भी कोशिश बहुत खतरनाक हो सकती है।

वास्तव में विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदायों को यह मानना होगा कि केवल एक के हित की बात सोचना ऐसी चीज है जो अन्तत: विभिन्न सम्प्रदाय-समुदायों को प्रभावित करती है। गम्भीरता से सोचा जाए तो इस्लाम द्वारा उसकी मान्यताओं से परे, अन्य आस्था-मान्यताओं को ‘काफिर’ ठहराना एक ज्यादा बड़ी चिंता है, क्योंकि यह निर्दोष व्यक्तियों से दोयम दर्जे के व्यवहार और उन्हें क्रूर नियति के हवाले करने तक को न्यायसंगत ठहराता है।

इस्लामोफोबिया के सामने काफिरोफोबिया एक बड़ी बहस का फलक है। किसी एक पंथ में दूसरे या अपने अलावा बाकी सभी से नफरत के विचार की पड़ताल करते हुए आगे बढ़ें तो अंग्रेजी का एक शब्द ‘रिलीजियोफोबिया’ ध्यान में आता है। इस शब्द का तात्पर्य मत-पंथों या आस्थावान व्यक्तियों के प्रति भय, पूर्वाग्रह और भेदभाव से है। इस अर्थ में यह एक व्यापक शब्द है जिसमें न केवल ‘इस्लामोफोबिया’ बल्कि हिंदू धर्म, बौद्ध, सिख और अन्य सभी आस्थाओं के खिलाफ भेदभाव से जुड़ी चिंता भी शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय निकायों ने स्पष्टत: ‘इस्लामोफोबिया’ पर ध्यान केंद्रित किया है, जो केवल मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा की वैश्विक घटनाओं के प्रति उनकी चिंता को ही दिखाता है। क्या संयुक्त राष्ट्र अपने उस मकसद को पूरा कर रहा है, जिसके लिए वह बना था? संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि तिरुमूर्ति ने इस संस्था के ऐसे ही एक प्रस्ताव के बारे में कहा था कि यह प्रस्ताव हिंदू, सिख और बौद्ध जैसे अन्य मत-पंथों के खिलाफ हिंसा, भेदभाव और नफरत को नजरअंदाज करता है। एक मजहब पर ही बल देना एक बात है और एक खास मजहब के खिलाफ नफरत विरोधी दिवस मनाना बिल्कुल दूसरी बात। संभव है कि यह प्रस्ताव दूसरे सभी पंथों के खिलाफ घृणा और हिंसा की गंभीरता को दबा देगा।

और क्या आपको यह टिप्पणी याद है जो संयुक्त राष्ट्र में भारत की प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने की थी? उन्होंने कहा था, हिंदू विरोधी, बौद्ध विरोधी, सिख विरोधी तत्वों के गुरुद्वारों, मठों, मंदिरों पर हमले बढ़ रहे हैं। यह संज्ञान में लेना महत्वपूर्ण है कि 120 करोड़ से अधिक अनुयायियों वाला हिंदू धर्म, 53.5 करोड़ से अधिक अनुयायियों वाला बौद्ध धर्म और दुनियाभर में 3 करोड़ से अधिक अनुयायियों वाला सिख धर्म, ये सभी भय का अनुभव कर रहे हैं।

प्रसिद्ध ब्रिटिश टिप्पणीकार नील गार्डेनर ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र की नाकामी के पीछे प्रमुख कारण है उसका कमजोर नेतृत्व, जो सही वक्त पर सही फैसला नहीं ले पाता है।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली पर सीधी चोट करते हुए यहां तक कहा है कि इस संस्था के कमजोर पड़ने का जोखिम नजर आने लगा है। छोटी-छोटी बातों पर भी सहमति बनाने में अड़चन आती है।

संदर्भ कोई भी रहा हो, क्या संयुक्त राष्ट्र की निष्पक्षता पर सवाल नहीं खड़े हो रहे हैं? नि:संदेह, ‘उदारवाद’ के नाम पर छल करने की बजाय वास्तविक उदारवादियों के लिए यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि अन्य आस्था समूहों को ऐतिहासिक रूप से कहीं ज्यादा कट्टरता और नफरत का सामना करना पड़ा है और इस समस्या से वे आज भी जूझ रहे हैं।

कई देशों में यहूदी-विरोधी हमले बढ़ रहे हैं, विशेषकर जिहादी हमास के विरुद्ध इस्राएल की सैन्य कार्रवाई के बाद। ब्रिटेन में तो स्थिति इतनी विकट हो गई कि वहां की पूर्व गृह मंत्री सुएला बे्रवरमैन और बाद में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक तक ने कट्टर मजहबी तत्वों द्वारा अपने यहां मचाए जा रहे यहूदी विरोधी उत्पातों और उन्हें लक्षित करने की घटनाओं पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। और सिर्फ यहूदी ही नहीं, दुनियाभर में हिंदुओं, बौद्धों, सिखों और अन्य मत-पंथों के अनुयायियों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाएं हुई हैं। क्या इन सभी घटनाओं से आंखें मूंदी जा सकती हैं?

तालिबान के राज में हिंदू-सिख और पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में हिंदू, सिख, ईसाई अल्पसंख्यक समूहों को निगल जाने का भयानक खेल, या कहिए पूरे के पूरे समुदाय का नस्ली सफाया होता आ रहा है। यह सब हम सबने अपनी आंखों से देखा है।
क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय और उदारवादियों की आंखें खोलने के लिए इतना काफी नहीं है!

याद रखिए! किसी आस्था से नाहक भय की व्यापकता हिंसा और प्रतिशोध के चक्र को जन्म दे सकती है, जिससे विभिन्न समुदायों के बीच तनाव कभी भी काबू से बाहर हो सकने वाली परिस्थितियां पैदा कर सकता है।

आज अंतरपांथिक संवाद और समझ को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों, सरकारों और नागरिक समाज के लिए मिलकर काम करना आवश्यक हो गया है। इसमें सभी मत-पंथों के समूहों को अपनी आस्था का स्वतंत्र रूप से, उत्पीड़न के डर के बिना, अभ्यास और पालन करने के अधिकारों को मान्यता देना शामिल है।

किसी मत-पंथ से जुड़े भय को संबोधित करने के लिए वैसे भी गहन अध्ययन, तर्कशीलता, बहुआयामी दृष्टिकोण और निष्कर्ष को स्वीकारने की क्षमता रखने वाली खुली-साहसी सोच की आवश्यकता होती है।

क्या आज के कथित उदारवादी और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं कट्टरता के बेशर्म प्रदर्शन के सामने इस खुलेपन और साहस का परिचय दे रही हैं? निश्चित ही नहीं!

शिक्षा, समझ और सहनशीलता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विभिन्न पंथों और उनकी आस्थाओं के बारे में जानकर, लोग मौजूदा मान्यताओं की विविधता के प्रति अधिक उदार दृष्टिकोण या कहिए बेहतर समझ, विकसित कर सकते हैं। इसके साथ ही, कानूनी व्यवस्थाओं को उन वास्तविक ‘कमजोर’’ और हाशिये पर पड़े अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा और चिंता करनी चाहिए जिन्हें एक ओर राजनीति अपने हित के लिए डराती और प्रयोग करती है तो दूसरी ओर कन्वर्जन उन्हें निगलता जाता है।

केवल ‘इस्लामोफोबिया’ की बात करने की बजाय अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह सुनिश्चित करना ज्यादा आवश्यक हो गया है कि किसी मजहब से प्रेरित घृणा अपराधों के अपराधियों को जवाबदेह ठहराया जाए। केवल इस्लाम की बात करने वालों से पूछा जाना चाहिए कि केवल एक की बात क्यों करते हैं? एक पक्षीय बात क्यों करते हैं? क्या वे दुनिया को एक पक्षीय या वैश्विक विमर्श को नए सिरे से एक ध्रुवीय बनाना चाहते हैं? यह आसानी से समझ में आने वाली बात है कि सभी प्रकार के ‘रिलीजियोफोबिया’ को शामिल करने के लिए बातचीत को व्यापक बनाना अंतरराष्ट्रीय मंचों को उनकी गरिमा लौटाने वाला जरूरी कदम है।

मीडिया की भी जिम्मेदारी है कि वह आस्था समूहों को उनकी सच्चाई दिखाते हुए उनका निष्पक्ष और सटीक चित्रण करे तथा पूर्वाग्रह पैदा करने वाली रूढ़िवादिता से बचे। विशेष रूप से सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को नफरत फैलाने वाले भाषणों और गलत सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिए सतर्क रहने की जरूरत है जो पंथों-समुदायों के बीच नफरत और भय को बढ़ावा दे सकती हैं।

अंतत: मत-पंथ से जुड़े भय के खिलाफ अगर वास्तव में कोई लड़ाई है तो यह लड़ाई सम्मान, सहिष्णुता और मानवीय गरिमा के सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा देने के बारे में है। यह मनुष्यता के बारे में है। इस तथ्य को पहचानने के बारे में है कि हमारे मतभेदों के बावजूद, हम शांति, सुरक्षा और कल्याण के लिए समान आकांक्षाएं साझा कर सकते हैं। सभी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ खड़े होकर, हम एक अधिक समावेशी और सामंजस्यपूर्ण दुनिया बनाने की दिशा में काम कर सकते हैं।

केवल ऐसा करके ही हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सभी समुदायों की चिंताओं को सुना जाए और उनका समाधान किया जाए, और हम एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ें जहां हर व्यक्ति आस्था के आधार पर उत्पीड़न के डर के बिना रह सके। मंजिल भले कुछ दूर लगे, किंतु उस तक पहुंचने का रास्ता शिक्षा, कानूनी सुरक्षा, जिम्मेदार मीडिया प्रतिनिधित्व तथा विविधता और समावेशन के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ-साथ कट्टरता के सामने साहस दिखाने से ही निकलेगा।

@hiteshshankar

Topics: prime minister rishi sunakमजहबी कट्टरतापाकिस्तानउदारवादPakistanLiberalismtalibanरिलीजियोफोबियासंयुक्त राष्ट्र संघलिबरल लबादेbangladeshहिंदू-सिखतालिबानReligious fanaticismबांग्लादेशreligiophobiaUnited Nationsliberal cloakप्रधानमंत्री ऋषि सुनकHindu-Sikh
Share1TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Dhaka lal chand murder case

Bangladesh: ढाका में हिंदू व्यापारी की बेरहमी से हत्या, बांग्लादेश में 330 दिनों में 2442 सांप्रदायिक हमले

Terrorism

नेपाल के रास्ते भारत में दहशत की साजिश, लश्कर-ए-तैयबा का प्लान बेनकाब

प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और जनरल असीम मुनीर: पाकिस्तान एक बार फिर सत्ता संघर्ष के उस मोड़ पर खड़ा है, जहां लोकतंत्र और सैन्य तानाशाही के बीच संघर्ष निर्णायक हो सकता है

जिन्ना के देश में तेज हुई कुर्सी की मारामारी, क्या जनरल Munir शाहबाज सरकार का तख्तापलट करने वाले हैं!

प्रतीकात्मक तस्वीर

बलूचिस्तान में हमला: बस यात्रियों को उतारकर 9 लोगों की बेरहमी से हत्या

फोटो साभार: लाइव हिन्दुस्तान

क्या है IMO? जिससे दिल्ली में पकड़े गए बांग्लादेशी अपने लोगों से करते थे सम्पर्क

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Kerala BJP

केरल में भाजपा की दो स्तरीय रणनीति

Sawan 2025: भगवान शिव जी का आशीर्वाद पाने के लिए शिवलिंग पर जरूर चढ़ाएं ये 7 चीजें

CM Yogi Adityanath

उत्तर प्रदेश में जबरन कन्वर्जन पर सख्त योगी सरकार, दोषियों पर होगी कठोर कार्यवाही

Dhaka lal chand murder case

Bangladesh: ढाका में हिंदू व्यापारी की बेरहमी से हत्या, बांग्लादेश में 330 दिनों में 2442 सांप्रदायिक हमले

प्रदर्शनकारियों को ले जाती हुई पुलिस

ब्रिटेन में ‘पैलेस्टाइन एक्शन’ के समर्थन में विरोध प्रदर्शन, 42 प्रदर्शनकारी गिरफ्तार

Trump Tariff on EU And maxico

Trump Tariff: ईयू, मैक्सिको पर 30% टैरिफ: व्यापार युद्ध गहराया

fenugreek water benefits

सुबह खाली पेट मेथी का पानी पीने से दूर रहती हैं ये बीमारियां

Pakistan UNSC Open debate

पाकिस्तान की UNSC में खुली बहस: कश्मीर से दूरी, भारत की कूटनीतिक जीत

Karnataka Sanatan Dharma Russian women

रूसी महिला कर्नाटक की गुफा में कर रही भगवान रुद्र की आराधना, सनातन धर्म से प्रभावित

Iran Issues image of nuclear attack on Israel

इजरायल पर परमाणु हमला! ईरानी सलाहकार ने शेयर की तस्वीर, मच गया हड़कंप

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies