दिल्ली हाई कोर्ट ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, डीएमके नेता कनिमोझी समेत 15 अन्य कारोबारी और तत्कालीन सरकारी अधिकारियों को बरी करने के फैसले के खिलाफ सीबीआई की अपील को स्वीकार कर लिया है। इससे अब एक बार फिर से इन सभी की मुश्किलें बढ़नी तय है।
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इससे पहले दिसंबर 2017 में एक विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। बाद में सीबीआई ने विशेष अदालत के फैसले को 2018 में उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी। उस पर अब कोर्ट ने अपना फैसला दिया है।
मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस दिनेस कुमार शर्मा की बेंच ने 2जी मामले में 17 आरोपियों को बरी करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर स्वीकार कर लिया। जस्टिस शर्मा ने कहा, “रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री, आक्षेपित फैसले और प्रस्तुतियों को देखने के बाद इस अदालत की राय है कि प्रथम दृष्टया मामला बनाया गया है, जिसके लिए पूरे सबूतों की गहन जांच की आवश्यकता है।”
कोर्ट ने सीबीआई की अपील को नियमित अपील में बदलने योग्य मामला माना।
7 अलग-अलग न्यायाधीशों ने की सुनवाई
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबि, जस्टिस शर्मा की अदालत में आने से पहले 2जी स्कैम के इस केस को 7 अलग-अलग जजों ने सुना। बता दें कि इस मामले में दिसंबर 2017 में पटियाला हाउस विशेष अदालत ने ए राजा, कनिमोझी समेत 15 आरोपियों को बरी कर दिया था।
क्या है 2G स्कैम
गौरतलब है कि सीबीआई के आरोपों के अनुसार यूपीए गठबंधन में दूरसंचार मंत्री रहे डीएमके नेता ए राजा ने टेलीकॉम लाइसेंस बांटने के नाम कंपनियों से कम शुल्क लेकर देश के खजाने को चूना लगाया था। कैग के अनुमान के अनुसार कुल नुकसान करीब 1.76 ट्रिलियन रुपए का था।
इस गड़बड़ी के उजागर होते ही सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में लाइसेंस आवंटन की प्रक्रिया को रद्द कर दिया। इसी के साथ 9 कंपनियों को आवंटित 122 लाइसेंस कैंसिल हो गए। बाद में जांच सीबीआई के पास आई और मामले में खुलासा हुआ कि इसमें पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, राजा के पूर्व निजी सचिव आरके चंदोलिया, स्वान टेलीकॉम के प्रमोटर शाहिद उस्मान बलवा और विनोद गोयनका, यूनिटेक के प्रबंध निदेशक डी संजय चंद्रा और अनिल अंबानी के रिलायंस समूह के तीन शीर्ष अधिकारी गौतम दोशी सुरेंद्र पिपारा और हरि नायर भी शामिल हैं।
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