लोकसभा चुनाव होने में बस अब कुछ ही महीने शेष हैं। ऐसे में हर विपक्षी INDIA गठबंधन कुचक्र का सहारा लेकर केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (CAA) का विरोध करके ध्रुवीकरण करने की कोशिशों में लगा हुआ है। टीएमसी, सपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, डीएमके और वामपंथी पार्टियां लगातार सीएए पर झूठ फैला रही हैं। इसी क्रम में एक बार फिर से केरल की वामपंथी सरकार के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने सीएए का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि वो इसे केरल में लागू नहीं होने देंगे।
पी विजयन ने गुरुवार को दोहराया कि केरल में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू नहीं किया जाएगा। तिरुवनंतपुरम में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि केरल कानूनी तौर पर सीएए का विरोध करने और आगे की कार्रवाई करने के लिए तैयार है। विजयन कहते हैं, “हम नागरिकता संशोधन अधिनियम के राजनीतिक उद्देश्य का विरोध कर रहे हैं। यह कानून जनविरोधी है और सांप्रदायिक एजेंडे का हिस्सा है। यह एक ऐसा कानून है जो मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाता है। यह संशोधन भारत की अवधारणा के खिलाफ है।”
उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करते हुए दावा किया कि भारत के इस कानून की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो रही है। उन्होंने इसे लिए संघ को जिम्मेदार ठहराया। उनसे पहले दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने बकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सीएए का विरोध किया और झूठ फैलाया कि इससे भाजपा अपना वोटबैंक मजबूत करना चाहती है। उनका दावा था कि कैसा होगा वो नजारा जब आपके घर के सामने बांग्लादेशी, पाकिस्तानी और अफगानिस्तान के लोग घर बनाकर रहने लगेंगे? केजरीवाल के बयान के बाद एंट्री होती है विजयन की। वह दोबारा से सीएए कानून को कोसने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं।
हालांकि, इंडि ठगबंधन के इन नेता लोगों को झूठ बोलकर बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं कि इससे अवैध लोगों की देश में भरमार हो जाएगी। असल मुद्दा तो इनका ‘मुस्लिम प्रेम’ है। इनका तो धंधा ही इसी के जरिए चलता है कि ’20 फीसदी अपना है, 80 में टुकड़े करना है’। यही कारण है कि केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन लगातार सीएए का विरोध करते हुए कभी इसे मुस्लिमों को दोयम दर्जे का नागरिक मानने वाला बताते हैं तो कभी कहते हैं कि इस कानून की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो रही है। हम इसे केरल में लागू नहीं होने देगें। जबकि, सत्य तो ये है कि अभी तक किसी अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने सीएए पर सामान्य न्यूज के अलावा कोई गलत बात नहीं की। फिर पिनाराई विजयन ‘अंतरराष्ट्रीय आलोचना’ वाला खयाली पुलाव कैसे चाव से खा रहे हैं। इसके अलावा सबसे अहम तर्क तो ये है कि समस्या अगर हमारे घर में है तो उसे हमें सुलझानी पड़ेगी। उससे अगर पड़ोसी के पेट में मरोड़ होती है तो हमें उससे क्या मतलब है?
सीएए पर विपक्षी विलाप की सबसे अहम कारण ये है कि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और विपक्ष को ये पता है कि इस बार भाजपा पलड़ा सब पर भारी है। चुनावी सर्वे ये बताते हैं कि अबकी बार भाजपा पिछली बार के रिकॉर्ड को ब्रेक करके बड़ी जीत हासिल करेगी। ऐसे में विपक्ष के पास कोई तो मुद्दा होना चाहिए। पिछली बार इन्होंने देश के मुसलमानों को बरगलाया कि सीएए से उनकी नागरिकता खत्म हो जाएगी। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। खास बात ये है कि गृह मंत्री अमित शाह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि सीएए कानून भारत का कानून है औऱ ये किसी भी कीमत पर वापस नहीं लिया जाएगा। खुद गृह मंत्री इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं कि 2014 से पहले भारत आए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के सिख, पारसी, ईसाई और हिन्दुओं को भारत की नागरिकता दी जाएगी।
क्या राज्य इसे रोक सकते हैं?
भारतीय संविधान में संघ, राज्य और समवर्ती सूची है। राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के अधिकारों का वर्णन सातवीं अनुसूची में किया गया है। इसके तहत रक्षा, विदेश मामले, जनगणना और नागरिकता जैसे 100 मामले केंद्र सरकार के अधीन होते हैं। इनमें कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास होता है।
राज्य की सूची में कोर्ट, सड़क, वन, स्वास्थ्य जैसे करीब 61 मामलों में राज्य सरकार कानून बना सकती है। लेकिन अगर केंद्र सरकार किसी विषय पर कानून बना लेता है तो राज्य सरकारें उसे मानने के लिए बाध्य होंगी। केंद्र सरकार की सूची से जुड़े विषयों पर फैसले लेने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है।
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