केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को एक साथ दो झटके लगे हैं। एक ओर सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की एक याचिका खारिज कर दी, दूसरी ओर राष्ट्रपति ने 4 विधेयकों को मंजूरी नहीं दी। पहले बात सर्वोच्च न्यायालय के 5 मार्च, 2024 के निर्णय की। इसमें शीर्ष अदालत ने साफ-साफ कहा कि राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच खींचतान में अधिकारियों को बलि का बकरा नहीं बनाया जाना चाहिए।
दरअसल, एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय (केटीयू) के कुलपति डॉ. राजश्री को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोग्य घोषित किए जाने के बाद राज्य सरकार ने इस पद के लिए उच्च शिक्षा सचिव, पीवीसी और डिजिटल यूनिवसिर्टी के कुलपतियों के नामों की सिफारिश की, जिसे राज्यपाल डॉ. आरिफ मोहम्मद खान ने खारिज कर दिया, क्योंकि उन्होंने पाया कि वे पात्र नहीं थे।
उन्होंने तकनीकी शिक्षा निदेशक को कुलपति की जिम्मेदारी दी, पर वह कथित तौर पर राज्य सरकार से प्रभावित थीं, इसलिए उन्होंने पदभार नहीं संभाला। लिहाजा, राज्यपाल ने वरिष्ठ संयुक्त निदेशक डॉ. सिजा थॉमस को प्रभारी कुलपति नियुक्त कर दिया। इसके बाद डॉ. थॉमस उच्च शिक्षा सचिव से मिलने गर्इं और उन्हें सूचित किया कि वह कुलपति का पदभार संभालने जा रही हैं। लेकिन सरकार के क्रोध के डर से सचिव व्यक्तिगत बैठक के लिए तैयार नहीं हुए।
उधर, केटीयू सिंडिकेट के सदस्य, कर्मचारी और छात्रों ने कुलपति का विरोध शुरू कर दिया। इसलिए उन्हें पुलिस सुरक्षा में विश्वविद्यालय जाना पड़ा। लेकिन रजिस्ट्रार सहित तमाम अधिकारियों ने उन्हें कुलपति का पासवर्ड नहीं दिया, जिससे वह प्रमाण-पत्रों पर हस्ताक्षर कर सकें। फिर, राज्य सरकार यह कहते हुए उच्च न्यायालय में गई कि डॉ. सिजा थॉमस ने सरकार की अनुमति के बिना कार्यभार संभाला है, इसलिए उनकी नियुक्ति अवैध है। लेकिन 8 नवंबर, 2022 को उच्च न्यायालय ने राज्यपाल के फैसले को कायम रखा। इसके बाद पिनराई सरकार ने डॉ. थॉमस का स्थानांतरण कोझिकोड कर दिया, लेकिन प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने इस पर रोक लगा दी।
31 मार्च, 2023 को डॉ. थॉमस की सेवानिवृत्ति से पहले पिनराई सरकार उनके विरुद्ध कार्रवाई के लिए तैयार थी, लेकिन इस बार भी प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने न सिर्फ उनका बचाव किया, बल्कि सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्हें सेवा में बने रहने की अनुमति दी। तब केरल सरकार ने राज्यपाल के आदेश का पालन करने और सभी दंडात्मक कारर्वाइयों को रोकने के उच्च न्यायालय के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। साथ ही, डॉ. थॉमस की पेंशन रोक दी।
डॉ. सिजा थॉमस देश के विभिन्न आईआईटी में एक व्यस्त विजिटिंग प्रोफेसर हैं, लेकिन केरल में तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में ‘बहिष्कृत’ हैं। बहरहाल, सुनवाई के दौरान डॉ. थॉमस ने शीर्ष अदालत को बताया कि राज्य उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त सचिव की कारर्वाई एकतरफा थी, जिससे उन्हें गंभीर मानसिक आघात पहुंचा। इसलिए उनके विरुद्ध बदले की सभी कारर्वाई को रद्द किया जाए। इसके बाद शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी।
इसी दिन, पिनराई सरकार को एक और झटका लगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने केरल सहकारी सोसायटी संशोधन विधेयक-2022 (एमआईएलएमए) को खारिज कर दिया। इसका उद्देश्य नामित सदस्यों के माध्यम से केरल सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ महासंघ को नियंत्रित करना था। इससे पूर्व राष्ट्रपति ने तीन विधेयकों को मंजूरी नहीं दी थी।
इनमें विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक-2022, जो कुलपति की नियुक्ति के लिए खोज समिति के विस्तार से संबंधित है, विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक-2021, जो अपीलीय न्यायाधिकरण के मुद्दे और अन्य संशोधनों से संबंधित है और केरल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन नंबर-2) विधेयक-2022, जिसका उद्देश्य राज्यपाल को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटाना है, शामिल है।
विधेयकों पर राज्यपाल की आपत्तियां
दरअसल, राज्य सरकार ने 8 विधेयक राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा था। राज्पाल को इन पर आपत्ति थी, इसलिए उन्होंने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। इसके बाद राज्य सरकार ने राज्यपाल पर बिना कारण विधेयकों को रोकने का आरोप लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
तब राज्यपाल ने एक विधेयक को मंजूरी दे दी। लेकिन विवादास्पद विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक सहित 7 विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए अपने पास रख लिया। इनमें पांच विधेयक विश्वविद्यालय कानून संशोधन से संबंधित थे, जिनका उद्देश्य राज्यपाल को राज्य में विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में प्रतिस्थापित करने सहित उनकी शक्तियां छीनना है। इनमें एक विधेयक एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय से संबंधित है।
इस प्रकार राष्ट्रपति को भेजे गए 7 में से चार विधेयक खारिज किए जा चुके हैं, जबकि दो पर अभी निर्णय नहीं लिया गया है। केवल केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक-2022 को मंजूरी मिली है। केरल सहकारी सोसायटी संशोधन विधेयक पर राज्यपाल का कहना है कि यह लोकतंत्र की भावना और सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। विधेयक में सहकारी संस्थाओं की संचालक परिषदों में प्रशासकों को मतदान की शक्ति देने का प्रावधान है।
राज्यपाल का तर्क है कि जो डेयरी किसानों के प्रतिनिधि नहीं हैं, उन्हें अधिकार देना लोकतांत्रिक नहीं है, बल्कि यह हेरफेर का संभावित माध्यम है। इसी तरह, केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक पर उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर नहीं किया था कि यह लोकायुक्त को नख-दंत विहीन एक निरर्थक निकाय बना देगा। केरल सहकारी समिति (संशोधन) विधेयक भी है, जो करोड़ों रुपये के करुवन्नूर बैंक घोटाले के मद्देनजर जमा धन की पुख्ता सुरक्षा सुनिश्चित करने का दावा करता है, लेकिन राज्यपाल ने टीम आॅडिट और कार्यकाल सीमा सहित विभिन्न प्रावधानों में अस्पष्टता पर चिंता जताई थी।
एक अन्य विधेयक, जिस पर सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव चरम पर पहुंचा, वह है केरल भूमि असाइनमेंट (संशोधन) विधेयक। इसे सितंबर 2023 में पारित किया गया था। इसमें निर्दिष्ट भूमि (पट्टा भूमि) पर हर तरह के निर्माण को नियमित करने का प्रावधान है। खासकर इडुक्की की ऊंची पर्वतमालाओं में कृषि या आवास उद्देश्य से पट्टा भूमि आवंटित की गई थी, लेकिन इन पर अवैध निर्माण कर दिए गए।
हालांकि इडुक्की में अतिक्रमण से जुड़े कई मामलों में केरल उच्च न्यायालय संबंधित विभागों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दे चुका है कि विभिन्न विभागों से अनापत्ति प्रमाण-पत्र मिलने के बाद ही निर्माण किया जाए। लेकिन इस आदेश की अनदेखी करते हुए संशोधित विधेयक में पट्टा भूमि पर नए निर्माण के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने का प्रावधान किया गया है।
जब विधानसभा ने यह विधेयक पारित किया था, तब पर्यावरण कार्यकर्ताओं के एक मंच ने भी इसका विरोध किया था। मंच का कहना था कि यह विधेयक राज्य के ऊंचे इलाकों में पर्यावरणीय आपदा को तो जन्म देगा ही, निहित समूह भी इसका दुरुपयोग करेंगे। अन्य समान विचारधारा वाले समूहों की चिंता यह थी कि यह विधेयक उच्च पर्वतमालाओं में सभी अवैध निर्माणों के नियमितीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा, विशेष रूप से पर्यटन स्थल मन्नार हिल स्टेशन में। जब राज्यपाल ने विधेयक को मंजूरी नहीं दी तो माकपा और पिनराई सरकार गुस्से से तमतमा गई। जिस दिन राज्यपाल जिले के दौरे पर थे, उस दिन माकपा ने राजभवन तक मार्च और इडुक्की में हड़ताल का आयोजन किया।
राज्यपाल डॉ. आरिफ मोहम्मद खान ने कहा था, ‘‘मुझे विधेयक के खिलाफ कई शिकायतें मिली हैं। इसे टिप्पणी के लिए सरकार के पास वापस भेजा गया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। मैं कोई रबर स्टांप नहीं हूं।’’ अक्तूबर 2023 में राज्यपाल ने एक प्रेस कान्फ्रेंस में पूछा कि यदि मंत्री या मुख्यमंत्री विधेयकों के उपबंधों के संबंध में ‘स्पष्टीकरण देने की स्थिति में’ नहीं हैं तो उन्हें किसे संबोधित करना चाहिए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केरल विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों में 35 प्रतिशत पद रिक्त हैं।
शिक्षा के गिरते स्तर के कारण हजारों विद्यार्थी दूसरे राज्यों या विदेश का रुख कर रहे हैं। राज्य में खुलेआम अवैध तरीके से माकपा से जुड़े लोगों को फैकल्टी नियुक्त किया जा रहा है, जिनके पास न तो पीएच.डी की डिग्री है और न ही उसकी विश्वसनीयता। सत्ता तंत्र के साथ अच्छे तालमेल के कारण कुलपति के पद भी दिए जा रहे हैं। इसलिए साहित्यिक चोरी और फर्जी थीसिस के ढेरों मामले सामने आ रहे हैं।
राज्यपाल इसके खिलाफ आवाज उठाते है। यही कारण है कि राज्यपाल जहां भी जाते हैं सत्तारूढ़ माकपा और इसके गठबंधन सहयोगी एलडीएफ, डीवाईएफआई व एसएफआई के गुर्गे उनके काफिले को रोकते हैं और राज्यपाल से अभद्रता करते हैं।
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