हिंदुओं का हक मार रहे मुसलमान

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अरुण कुमार सिंह

इस तथ्य के पक्ष में अनेक प्रमाण हैं कि पश्चिम बंगाल सरकार हिंदुओं के साथ सौतेला व्यवहार करती है। अब एक और प्रमाण सामने आया है। कुछ समय पहले ममता बनर्जी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एन.सी.बी.सी.) को 83 पिछड़ी जातियों की एक सूची भेजी थी। इसमें 73 मुस्लिम जातियां और केवल 10 हिंदू जातियां हैं। इस सूची पर एन.सी.बी.सी. के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने घोर आपत्ति दर्ज की है। उन्होंने कहा है कि इन 83 जातियों को पिछड़े वर्ग में शामिल करना संभव नही है, क्योंकि इनके बारे में राज्य सरकार ने आवश्यक जानकारी उपलब्ध नहीं कराई है। उन्होंने यह भी कहा कि आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव को चार बार बुलाया, लेकिन वे नहीं आए और न ही इसके बारे में कोई जानकारी दी। इसलिए इस सूची को मान्यता नहीं दी जा सकती।

बता दें कि इस समय राष्टीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सूची में पश्चिम बंगाल की 98 जातियां शामिल हैं, जबकि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग की सूची में कुल 179 जातियां हैं। इनमें से 61 हिंदू और 118 मुस्लिम जातियां हैं। आंकड़ों के अनुसार पश्चिम बंगाल में लगभग 71 प्रतिशत हिंदू और करीब 27 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस अनुपात से राज्य के पिछड़े वर्ग की सूची में हिंदू जातियां अधिक होनी चाहिए थीं, लेकिन वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं ने ऐसा हिसाब लगाया है कि अब पश्चिम बंगाल में हिंदू पिछड़ी जातियों से अधिक मुस्लिम पिछड़ी जातियां हो गई हैं।

एक जानकारी के अनुसार जिन 73 मुस्लिम जातियों को पिछड़े वर्ग में शामिल करने की बात कही गई है, उनमें से कई बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए हैं। सबको पता है कि पश्चिम बंगाल में भोटिया मुसलमान कहां से आए हैं। दरअसल ये लोग बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं और इन्हें राज्य सरकार ने पिछड़े वर्ग में शामिल कर लिया है। इस कारण राज्य मेें बड़ी संख्या में मुस्लिम घुसपैठिए भी सरकारी नौकरी कर रहे हैं।

एक जानकारी के अनुसार 2010 तक पश्चिम बंगाल में 108 जातियां पिछड़े वर्ग में शामिल थीं। इनमें 55 हिंदू और 53 मुसलमान जातियां थीं। 2011 में अचानक 71 जातियों को पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल किया गया था। इनमें 65 जातियां मुस्लिम थीं और मात्र छह जातियां हिंदू। इस तरह 2011 तक कुल 179 जातियों को पिछड़े वर्ग में रखा गया। इनमें 118 मुसलमान और 61 हिंदू जातियां हैं।

इसी कारण राज्य में पिछड़े वर्ग के लिए निर्धारित आरक्षण का ज्यादातर लाभ मुसलमान उठा रहे हैं। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल के चिकित्सा महाविद्यालयों को लिया जा सकता है। इन महाविद्यालयों में 3,351 सीटें हैं। इनमें से 457 सीटें ‘ए’ श्रेणी में शामिल पिछड़ी जातियों को मिलती हैं और इस ‘ए’ श्रेणी में 91 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस आधार पर इनमें से 400 सीटें मुसलमानों के पास चली जाती हैं। केवल 57 सीटें हिंदू पिछड़ी जातियों को मिलती हैं।

इस्लाम के अनुसार उसके यहां जाति की ‘अवधारणा’ ही नहीं है, पर उसके लोग जाति के नाम पर आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। वस्तुत: इसके लिए वे नेता जिम्मेदार हैं, जो वोट बैंक की राजनीति करते हैं। इसलिए वोट बैंक की राजनीति को खत्म करना होगा।

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