इस्लामिक संस्था दारुल उलूम का विवादों से गहरा नाता रहा है। सभी जानते हैं कि गजवा-ए-हिंद की पूरी कहानी गैर-मुसलमानों को तलवार के दम पर मुसलमान बनाने से जुड़ी रही है। ऐसे में कहा जा रहा है कि गजवा-ए-हिंद का समर्थन कर देवबंद से न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में इस्लामिक हिंसा और अत्याचार को बल देने की खतरनाक कोशिश की जा रही है।
कुछ लोगों का मानना है कि गजवा-ए-हिंद को जायज ठहराकर दारुल उलूम फंस गया है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने देवबंद से जारी फतवे को राष्ट्र विरोधी करार दिया है और कानूनी कार्रवाई के लिए सहारनपुर जिला प्रशासन को पत्र लिखा है। सहारनपुर के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भेजे पत्र में आयोग ने कहा है कि देवबंद का फतवा बच्चों को अपने ही देश के खिलाफ नफरत के लिए प्रेरित कर रहा है। जिलाधिकारी दिनेश चंद्र सिंह ने कहा है कि प्रशासन जल्दी ही अपनी रपट आयोग को भेजेगा।
दारुल उलूम अरबी शब्द है। हिंदी में इसका अर्थ होता है- ज्ञान का घर, लेकिन यहां से जिस तरह के फतवे जारी होते हैं, उनसे न सिर्फ राष्ट्रवादी विचारों को ठेस पहुंचती है, बल्कि महिला हित भी प्रभावित होते हैं। यही वजह है कि मुसलमानों के बीच से भी लगातार इसके विरोध में आवाजें उठती रही हैं। दारुल उलूम ने अब तक 1,00,000 से ज्यादा फतवे जारी किए हैं। यही नहीं, इसने 2005 में आनलाइन फतवा विभाग भी बनाया है। इसके तमाम फतवे बेवसाइट पर उर्दू और अंग्रेजी में हैं।
इसने एक बार फतवा दिया था कि त्योहार पर एक-दूसरे से गले मिलना इस्लाम की नजर में अच्छा नहीं है। इस संबंध में पाकिस्तान के एक शख्स ने सवाल पूछा था। दारुल उलूम के मुफ्तियों ने फतवे में कहा कि अगर कोई गले मिलने के लिए आगे बढ़ता है तो उसे विनम्रता के साथ रोक देना चाहिए। और अगर किसी से बहुत दिनों के बाद मुलाकात हुई हो तो उससे गले मिलने में कोई हर्ज नहीं है।
कुछ साल पहले दारुल उलूम ने कहा था कि डिजाइनर बुर्का या लिबास पहनकर महिलाओं का घर से बाहर निकलना जायज नहीं है।
इसके अलावा नवंबर, 2018 में दारूल उलूम के एक मुफ्ती ने कहा था कि महिलाओं को अपने नाखूनों पर नेल पॉलिश की जगह मेहंदी का इस्तेमाल करना चाहिए। दारूल उलूम का यह भी कहना है कि मुस्लिम बच्चे अंग्रेजी नहीं पढ़ सकते। इसका खुद मुसलमानों ने विरोध किया था। आलिया खान नामक एक महिला ने एक कार्यक्रम में गीता के श्लोक पढ़े थे। दारूल उलूम ने इसे गैर-इस्लामी करार दिया था। एक बार मुफ्ती अथर कासमी ने कहा था कि फुटबॉल छोटे कपड़े पहनकर खेला जाता है और ऐसे में मैच देखते वक्त महिलाओं की नजर खिलाड़ियों के घुटनों पर जाती है, जिसे देखना गुनाह है।
एनसीपीसीआर ने लिया संज्ञान
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने गजवा ए हिंद मामले में कार्रवाई करते हुए सहारनपुर जिले के डीएम और एसपी को एक नोटिस जारी कर प्राथमिकी दर्ज करने को कहा है। एनसीपीआर ने कहा है कि दारुल उलूम देवबंद मदरसे में बच्चों को भारत विरोधी शिक्षाएं दे रहा है। इससे इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा मिल रहा है। आयोग ने इसे किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 का उल्लंघन करार दिया है। आयोग ने जिला प्रशासन से दारुल उलूम की बेवसाइट की जांच करने का अनुरोध करते हुए कहा है कि इसके जरिए देश की जनता को गुमराह किया गया है। इसलिए इस वेबसाइट की जांच कर इसे तुरंत ब्लॉक किया जाए।
बच्चों को गोद लेने को लेकर जारी कुछ फतवे भी विवादित हुए हैं। किसी व्यक्ति ने पूछा था कि उसकी दो बेटियां हैं और वह एक लड़का गोद लेना चाहते हैं, क्या इसकी इजाजत है? इसके जवाब में फतवा दिया था, ‘‘गोद लिया हुआ बच्चा संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं होगा। सिर्फ गोद ले लेने से वह वास्तविक संतान नहीं बन जाएगा। अगर आपने नवजात शिशु गोद लिया है और उसे स्तनपान कराया है तो वह आपके परिवार का हिस्सा तो होगा और उससे पर्दे की जरूरत नहीं होगी लेकिन वह आपका उत्तराधिकारी नहीं बन सकेगा।’’ जबकि नियमानुसार गोद लिए हुए बच्चे को हर अधिकार मिलता है। ऐसे ही फतवों ने दारुल उलूम पर लोगों को उंगली उठाने का अवसर दिया है। काश, इसके मुफ्ती लोगों की भावनाएं समझ पाते।
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