इंदौर/भोपाल। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने धार की ऐतिहासिक भोजशाला का ज्ञानवापी की तर्ज पर सर्वे कराने के आदेश दिए हैं। उच्च न्यायालय ने सोमवार को इस मुद्दे पर आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) को पांच विशेषज्ञों की टीम बनाने को कहा है। इस टीम को छह सप्ताह में रिपोर्ट हाई कोर्ट को सौंपनी होगी।
मामले में हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने सोशल मीडिया पर यह जानकारी साझा की है। उन्होंने हाई कोर्ट के आदेश की प्रति भी शेयर की है। उन्होंने लिखा है कि मध्य प्रदेश में भोजशाला/धार के एएसआई सर्वेक्षण के लिए मेरे अनुरोध को इंदौर उच्च न्यायालय ने अनुमति दे दी है।
दरअसल, हिंदू पक्ष की ओर से ऐतिहासिक भोजशाला का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मांग की गई थी। हिंदू पक्ष ने यहां होने वाली नमाज पर भी रोक लगाने की मांग की थी। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक है, जिसका नाम राजा भोज पर रखा गया। इस मामले में इंदौर हाई कोर्ट में 19 जनवरी को बहस हुई थी। तक हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। हाई कोर्ट ने इस मामले में हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार कर लिया है।
हाई कोर्ट ने बनाई पांच सदस्यीय कमेटी
हाई कोर्ट ने इस मामले में जांच के लिए पांच सदस्यीय कमेटी भी गठित की है। यह कमेटी सर्वे का काम देखेगी। कोर्ट ने इस मामले में सर्वे पूरा कर 29 अप्रैल तक रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 29 अप्रैल को होगी।
हिंदू पक्ष की ओर से हाई कोर्ट में कई सबूत पेश किए गए। सरकारी वेबसाइट के मुताबिक भोजशाला में एक खुला प्रांगण है। इसमें चारों ओर स्तंभ मौजूद हैं और एक प्रार्थना गृह है। यहां शिलाओं विष्णु के मगरमच्छ अवतार के प्राकृत भाषा में लिखित दो स्तोत्र हैं। यहां संस्कृत में कई छंद भी लिखे हुए हैं। एक लेख में राजा भोज के उत्तराधिकारी उदयादित्य और नरवरमान की स्तुति की है।
क्या है मामला?
धार जिले की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक राजा भोज (1000-1055 ई.) परमार राजवंश के सबसे बड़े शासक थे। उन्होंने धार में यूनिवर्सिटी की स्थापना की। इसे बाद में भोजशाला के रूप में जाना जाने लगा। इस भोजशाला के मुगल काल में मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया। हिंदू पक्ष इसके सरस्वती मंदिर होने का दावा करता है। इसके सबूत के तौर पर हिंदू पक्ष की ओर से हाईकोर्ट में तस्वीरें भी पेश की गईं। फिलहाल यह भोजशाला केंद्र सरकार के अधीन है और इसका संरक्षण एएसआई करती है। एएसआई ने सात अप्रैल 2003 को एक आदेश दिया, जिसके मुताबिक हिंदुओं को प्रत्येक मंगलवार भोजशाला में पूजा करने की अनुमति है। वहीं मुस्लिमों को हर शुक्रवार इस जगह नमाज अदा करने की इजाजत दी गई है।
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने एक मई 2022 को इंदौर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि भोजशाला का पूर्ण आधिपत्य हिंदुओं को सौंपा जाए। हर मंगलवार को हिंदू भोजशाला में यज्ञ कर उसे पवित्र करते हैं और शुक्रवार को मुसलमान नमाज के नाम पर यज्ञ कुंड को अपवित्र कर देते हैं। इसे रोका जाना चाहिए। इसके साथ याचिका में भोजशाला की फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और खुदाई की मांग की गई। हाई कोर्ट ने इन बिंदुओं के आधार पर सर्वे की मांग स्वीकार कर ली है। मामले से लगातार जुड़े आशीष जनक ने बताया कि 19 फरवरी को हमने कोर्ट में एएसआई सर्वे की मांग की थी। आज हाई कोर्ट ने निर्णय सुनाया है। छह हफ्ते में इसकी सर्वे रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश होगी। इस सर्वे में आसपास के 50 मीटर के दायरे को भी जांचा जाएगा।
हाई कोर्ट ने पूरे सर्वे की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा है कि जीपीआर-जीपीएस रीके से इस वैज्ञानिक सर्वे को कराया जाए। जीपीआर यानी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार। यह जमीन के अंदर विभिन्न स्तरों की हकीकत जांचने की तकनीक है। इसमें रडार का उपयोग होता है। यह अदृश्य यानी छुपी वस्तुओं, संरचनाओं को सही तरीके से माप लेता है। इसी तरह ग्लोबल पॉजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस के तहत भी सर्वे किया जाएगा।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
टिप्पणियाँ