आज सुप्रीम कोर्ट में महाशिवरात्रि के मौके पर तेलंगाना के मशहूर श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर का मामला पहुंचा। वीरभद्र को भगवान शिव का ही अवतार कहा जाता है। हालांकि इस स्थान को मछिलेश्वरनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई एक याचिका के माध्यम से इसी मंदिर के पुजारियों ने सरकार पर आरोप लगते हुए कहा है कि राज्य सरकार गैरकानूनी रूप से मंदिर का टेकओवर करना चाहती है। सरकार इसके लिए तेलंगाना हिंदू धार्मिक ऐंड चैरिटेबल ऐक्ट का प्रयोग कर रही है। सरकार की ओर से मंदिर के कामकाज के लिए एग्जीक्यूटिव अधिकारियों की नियुक्ति की गई है।
मंदिर के पुजारियों द्वारा दायर की गई याचिका में संविधान के आर्टिकल 25 और 26 का हवाला देते हुए कहा गया है कि किसी भी मंदिर का प्रबंधन और उसका कामकाज देखना धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है। एक सेकुलर देश में किसी सरकार के अधिकारियों को मंदिर का कामकाज संभालने की जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती।
वहीं सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमएम संदुरेश और एसवीएन भट्टी की बेंच ने कमिश्रर के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसके अनुसार एक कार्यकारी अधिकारी नियुक्ति कर टेकओवर का आदेश दिया गया था। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने इस मामले पर आगे सुनवाई के लिए अपनी सहमती भी प्रदान की है। बता दें कि अर्जी पर सुनवाई के दौरान अदालत में सुप्रीम कोर्ट का भी जिक्र करते हुए कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट का ही कानून कहता है कि मंदिर प्रशासन का काम राज्य तभी संभाल सकता है, जब आर्थिक गड़बड़ी की बात हो।
बता दें कि मंदिर के पुजारियों ने तेलंगाना हिंदू धार्मिक ऐंड चैरिटेबल ऐक्ट की वैधता पर सवाल खड़े किए हैं। जिसके चलते कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को भी नोटिस जारी किया है।
क्या है 1987 का एक्ट
याचिका दायर करने वाले पुजारियों के अनुसार तेलंगाना सरकार के 1987 के ऐक्ट से राज्य में स्थित किसी भी मंदिर को टेकओवर कर सकती है। इसके अलावा सरकार मंदिर के प्रशासक के तौर पर एक कार्यकारी अधिकारी की भी नियुक्ति कर सकती है और इसके अलावा मंदिर के ट्रस्ट में भी किसी को सदस्य नियुक्त कर सकती है।
टिप्पणियाँ