कर्नाटक में कांग्रेस सरकार तुष्टीकरण को बढ़ावा दे रही है और बहुसंख्यक हिंदू समाज की आस्था, संस्कृति पर चोट कर रही है। पाठ्यपुस्तकों में बदलाव कर रही है और क्षेत्रीय भाषाई पहचान के नाम पर लोगों को बांट रही है। ये सारे कदम एक ही तरफ संकेत करते हैं
कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए थे। तुष्टीकरण के तहत हिंदू संगठनों पर प्रतिबंध लगाने, कन्वर्जन कानून रद्द करने से लेकर मुफ्त वाली पांच गारंटी योजनाएं लागू करने का वादा तो किया ही, फर्जी क्यूआर कोड का भी सहारा लिया जो अब पार्टी नेताओं के गले की फांस बन गया है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए एक अभियान चलाया। इसके तहत ‘पेसीएम’ क्यूआर कोड वाले पोस्टर लगाए, जिसे स्कैन करने पर कांग्रेस की ‘40 परसेंट सरकरा’ कैम्पेन वेबसाइट खुलती थी। इस अभियान के खिलाफ भाजपा लीगल सेल के सदस्य और अधिवक्ता विनोद कुमार की शिकायत पर एक विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने राहुल गांधी, मुख्यमंंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को समन भेजकर 28 मार्च को पेश होने को कहा है।
इससे पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को 6 हफ्ते के भीतर ‘40 प्रतिशत कमीशन’ के आरोपों की जांच पूरी करने का आदेश दिया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री बी. शिवरामू अपनी ही पार्टी की सरकार पर कमीशनखोरी का आरोप लगा चुके हैं। इसके बाद केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी भी कह चुके हैं कि सिद्धारमैया के नेतृत्व में कर्नाटक में ‘50 प्रतिशत कमीशन’ सरकार चल रही है।
विद्वेष की प्रयोगशाला
बहरहाल, सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने अपने विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाया तथा ‘मॉडल प्रयोगशाला’ की नींव रखी। यह ‘पंथनिरपेक्षता’ की आड़ में लगातार तुष्टीकरण को बढ़ावा देने वाले कदम उठा रही है। पहली ही कैबिनेट बैठक में सिद्धारमैया सरकार ने कन्वर्जन विरोधी कानून रद्द करने का फैसला किया, जिसे पिछली भाजपा सरकार ने लागू किया था। मुस्लिम और ईसाई वोट हासिल करने के लिए यह कांग्रेस का चुनावी वादा भी था। यही नहीं, सिद्धारमैया सरकार ने छठी से दसवीं कक्षा के लिए कन्नड़ और सामाजिक विज्ञान स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में भाजपा द्वारा किए गए बदलावों को भी पलटने के लिए 5 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति गठित की है। इनमें डॉ. हेडगेवार, वीर सावरकर जैसे हिंदूनिष्ठ विचारकों पर पाठ, चक्रवर्ती सुलीबेले द्वारा लिखे गए पाठ सहित 45 बड़े बदलाव शामिल हैं, जो इसी शैक्षणिक सत्र से लागू किए जाएंगे।
सिद्धारमैया सरकार ने स्कूलों में हिजाब पर लगी पाबंदी को भी हटाने की बात कही थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के मद्देनजर फैसला टाल दिया है। सरकार गोहत्या कानून को भी बदलने पर आमादा है, क्योंकि इससे खजाने पर 5,240 करोड़ रुपये का ‘बोझ’ पड़ रहा है। यही नहीं, सरकार ने विधानसभा में ‘सर्वसम्मति’ से उस प्रस्ताव को भी पारित करा लिया, जिसमें केंद्र सरकार से मैसूरु हवाईअड्डे का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखने का आग्रह किया गया है। इसके अलावा, अयोध्या में श्रीराम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा से पहले श्रीकांत पुजारी को गिरफ्तार किया गया और मांड्या जिले के केरागोडु गांव में 108 फीट ऊंचे ध्वज स्तंभ से हनुमानजी की तस्वीर वाला भगवा झंडा हटा दिया गया, जिससे तनाव की स्थिति बनी।
कांग्रेस ने श्रीकांत पुजारी को आपराधिक पृष्ठभूमि का बताते हुए उन पर ‘मटका’ से जुड़े मामलों में संलिप्त होने के आरोप लगाए। वहीं, भाजपा ने कहा कि श्रीकांत पुजारी कारसेवक हैं। उन्हें श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान 1992 में हुई हिंसा के एक मामले में गिरफ्तार किया गया। यदि ऐसा नहीं है तो इतने लंबे समय बाद उन्हें क्यों गिरफ्तार किया गया? उन्होंने कांग्रेस सरकार पर रामजन्मभूमि आंदोलन में शामिल रहे लोगों और कारसेवकों पर अतीत में झूठे मामले दर्ज करने का आरोप लगाते हुए कहा कि प्राण प्रतिष्ठा से पहले अपने सेकुलरवाद के प्रति संकेत करने के उद्देश्य से कारसेवकों और राम भक्तों की गिरफ्तारी की गई।
घातक एजेंडा
कांग्रेस सरकार लोगों को भाषाई आधार पर भी बांट रही है। ‘क्षेत्रीय भाषाई पहचान’ को बढ़ावा देने के बहाने सरकार ने ‘कन्नड़ भाषा व्यापक विकास (संशोधन)’ अध्यादेश पारित किया। इसमें वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों, उद्योगों, अस्पतालों और संगठनों में सभी साइन बोर्ड और नामपट कन्नड़ में होना अनिवार्य किया गया है। इसके बाद, कर्नाटक रक्षणा वेदिके ने हिंसक प्रदर्शन कर बाजारों व व्यावसायिक स्थानों की संपत्तियों में तोड़फोड़ की। खास तौर से कन्नड़ के अलावा अन्य भाषाओं में लिखे साइन बोर्डों को निशाना बनाया गया।
कांग्रेस सरकार जो कर रही है, उसे ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ कहा जा सकता है।
आध्यात्मिक, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक विनाश के माध्यम से राष्ट्र या जातीय समूहों (इसे बहुसंख्यक समुदाय के रूप में समझें) की संस्कृति को नष्ट करने के लिए किए गए कार्य और उपाय को ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ कहा जाता है। इसमें पुस्तकों, कलाकृतियों और संरचनाओं जैसी सांस्कृतिक कलाकृतियों का उन्मूलन और विनाश भी शामिल है। ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ मजहबी उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है (उदाहरण के लिए, आइकोनोक्लाज्म जो एनिकोनिज्म पर आधारित है), किसी विशिष्ट स्थान या इतिहास से साक्ष्य हटाने के प्रयास में जातीय सफाए के अभियान के हिस्से के रूप में, इसके प्रयास के एक भाग के रूप में। ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ में जबरन आत्मसातीकरण के साथ-साथ किसी भाषा या सांस्कृतिक गतिविधियों का दमन भी शामिल हो सकता है, जो विध्वंस की उचित धारणा के अनुरूप नहीं है। यह ऐसा है जैसे इतिहास से एक साल घटा दिया जाए, जिसमें अतीत और उससे जुड़ी संस्कृति हो और इतिहास को ‘रीसेट’ किया जाए। कांग्रेस इनमें से क्या-क्या करती है, इसका आकलन करना मुश्किल नहीं है।
खजाने पर भारी रेवड़ी संस्कृति
कांग्रेस ने चुनाव से पहले जो पांच प्रमुख योजनाओं की बात की थी। इनमें सभी परिवारों की महिला मुखियाओं को प्रति माह 2,000 रुपये (गृहलक्ष्मी), 200 यूनिट बिजली (गृहज्योति), स्नातक युवाओं को प्रतिमाह 3,000 रुपये और डिप्लोमा धारकों को 1,500 रुपये (युवनिधि), प्रति व्यक्ति हर माह 10 किलो चावल (अन्नभाग्य) और सार्वजनिक परिवहन बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा (उचिता प्रयाण) शामिल हैं। विश्लेषकों का अनुमान है कि मुफ्त की योजनाओं पर सालाना 65,082 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जो राज्य के बजट का लगभग 20 प्रतिशत है।
राज्य सरकार ने सब्सिडी को कवर करने के लिए केंद्र सरकार से अतिरिक्त पैसा मांगा है। कांग्रेस का दोगलापन देखिए, इसी सरकार ने कथित तौर पर पैसा रोकने के लिए केंद्र सरकार की निंदा करते हुए विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया। कांग्रेस सरकार ने राज्य को उसका कर हिस्सा देने में केंद्र की ‘विफलता’ पर भी प्रस्ताव पेश कर चुकी है। मुफ्त बिजली देने वाली ‘गृहज्योति योजना’ को वित्त पोषित करने के लिए सरकार ने बिजली दर बढ़ाने का विकल्प चुना है। इस पर कर्नाटक लघु उद्योग संघ ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि यदि टैरिफ नहीं हटाया गया, तो लघु उद्योग बंद हो जाएंगे। वृहत् बेंगलुरु महानगरपालिका ने भी शहर में वार्षिक संपत्ति कर दोगुना कर दिया है। राजस्व में कमी के कारण राज्य द्वारा सरकारी कर्मचारी मुआवजा बढ़ाने की संभावना नहीं है।
बहरहाल, 2022 के बाद के कर्नाटक के राजनीतिक परिदृश्य से कांग्रेस के कथित ‘पुनरुत्थान’ का पता चलता है, जिसमें ‘पंथनिरपेक्ष’ शासन और ‘कल्याण’ कार्यक्रमों पर जोर दिया गया है। तुष्टीकरण व ‘क्षेत्रीय पहचान’ के साथ बिजली दर व कर वृद्धि राज्य में बढ़ते आर्थिक संकट की ओर संकेत करते हैं। केंद्र के साथ टकराव से यह संकट और गहरा होगा। विभाजनकारी भाषाई नीतियां सामाजिक कलह पैदा करेंगी। राज्य सरकार द्वारा अभी तक किए गए उपाय राजकोषीय कुप्रबंधन व राज्य को खतरनाक रूप से दिवालियापन के करीब ले जाने का संकेत देते हैं।
टिप्पणियाँ