तमिलनाडु के मंत्री और डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन अपने ही जाल में फंस गए हैं। ‘सनातन धर्म’ को खत्म करने वाले उनके बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने डीएमके नेता से पूछा कि अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन करने के बाद वो आखिर अपनी याचिका के साथ सर्वोच्च न्यायालय का रुख कैसे किया।
मामले पर सुनवाई करते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जज संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने उदयनिधि स्टालिन से कहा, “आप संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हैं। आप अनुच्छेद 25 के तहत अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हैं। अब आप अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं? क्या आप नहीं जानते कि आपने जो कहा उसका परिणाम क्या होगा? आप आम आदमी नहीं हैं। आप मंत्री हैं। आपको परिणाम जानना चाहिए।”
इसी के साथ पीठ ने इस मामले की सुनवाई को 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया है।
गौरतलब है कि तमिलनाडु मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे ने कोर्ट से गुहार लगाई थी कि उनके खिलाफ महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, बिहार, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ दिया जाए। ताकि एक ही जगह उसकी सुनवाई हो सके।
खास बात ये है कि हर बार की तरह ही इस बार भी सनातन धर्म के खिलाफ केस लड़ने वाला वकील कोई और नहीं, बल्कि एक कांग्रेसी नेता हैं। इन नेता का नाम है अभिषेक मनु सिंघवी। वही अभिषेक मनु सिंघवी जो हाल ही मे हिमाचल में हुए राज्यसभा चुनाव में हार गए थे।
क्या है पूरा मामला
उल्लेखनीय है कि पिछले साल सितंबर महीने में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिनने एक कार्यक्रम के दौरान ‘सनातन धर्म’ की तुलना ‘मलेरिया’ और ‘डेंगू’ जैसी बीमारियों से की थी। इसके बाद डीएमके नेता के खिलाफ देश के अलग-अलग राज्यों में केस दर्ज किए गए थे। इन सभी केसों को एक ही जगह समेटने के लिए उदयनिधि स्टालिन ने ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी।
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