‘थोथा चना बाजे घना’, ये मुहावरा पाकिस्तान (Pakistan) पर बिल्कुल फिट बैठता है। उसके घर में खाने को नहीं है और जब तक भारत पर उंगली उठाने में लगा रहता है। इस बार भी उसने ऐसा ही किया। उसने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के मंच का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए करते हुए कश्मीर में मानवाधिकार (Human rights) का मुद्दा उठाया। लेकिन हर बार की तरह ही उसे इस बार भी भारत ने करारा जबाव देते हुए उसका मुंह बंद कर दिया।
भारत की तरफ से संयुक्त राष्ट्र में प्रथम सचिव अनुपमा सिंह ने पाकिस्तान की कलई खोलते हुए उसे कड़ी लताड़ लगाई। उन्होंने दो टूक कहा कि जम्मू और कश्मीर और लद्दाख भारत का अभिन्न अंग है। यहां पर सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में भारत द्वारा किए जा रहे प्रयास भारत सरकार का आंतरिक मामला है। पाकिस्तान को इस पर बात करने का कोई अधिकार ही नहीं है। मानवाधिकार क मुद्दे पर पाकिस्तान को आइना दिखाते हुए भारतीय अधिकारी ने कहा कि जिस देश ने खुद के अल्पसंख्यकों के प्रणालीगत उत्पीड़न को संस्थागत बना दिया है, उसका खुद का मानवाधिकार का रिकॉर्ड बहुत ही खराब रहा है उसे भारत पर कमेंट करने का कोई अधिकार ही नहीं है।
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अनुपमा सिंह ने पाकिस्तान की इज्जत को तार-तार करते हुए कहा कि हम ऐसे किसी भी देश पर ध्यान ही नहीं देते हैं, जो खुद ही आतंकवाद के कारण हुए खून-खराबे से लाल हो चुका है। ऐसा देश जो कर्ज की बैलेंश शीट के लाल रंग के नीचे कुछ इस कदर दबा हुआ है, जिसे उसके ही लोग अपनी सरकार के लिए महसूस करते हैं। भारत ने पाकिस्तान में पिछले साल अगस्त में जरनवाला शहर में अल्पसंख्यकों का उदाहरण भी दिया। भारत ने यूएन को बताया कि किस तरह से जरनवाला में अल्पसंख्यक ईसाइयों के साथ अत्याचार किए गए थे। 19 चर्चों को तोड़ने के बाद 89 ईसाइयों के घरों को भी जला दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 55वें सत्र के दौरान पाकिस्तान ने भारत के दामन पर कीचड़ उछालने की कोशिश की, लेकिन उल्टे उसका दामन ही कीचड़ में सन गया।
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