गत फरवरी को कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अजय माकन ने अचानक एक संवादादाता सम्मेलन कर कहा कि केंद्र सरकार ने कांग्रेस के बैंक खाते को फ्रीज (लेन-देन पर रोक) कर दिया है। हालांकि कुछ ही देर बाद वह रोक हट गई थी इसके बावजूद युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। इन सबके बीच माकन बहुत ही चतुराई के साथ इस बात को छिपा गए कि कांग्रेस के खाते पर रोक क्यों लगी? लेकिन जब लोगों को रोक के कारण का पता चला तो कहने लगे कि ‘चोर’ मचा रहा है शोर। दरअसल, कांग्रेस के खाते के साथ जो कुछ हुआ, उसके लिए खुद कांग्रेस ही जिम्मेदार है।
दरअसल, कांग्रेस के खाते के साथ जो कुछ हुआ, उसके लिए खुद कांग्रेस ही जिम्मेदार है। हुआ यूं कि बार-बार मांगने के बावजूद कांग्रेस अपनी आय का विवरण आयकर विभाग को नहीं दे रही थी। वह आय कर भी नहीं भर रही थी।
हुआ यूं कि बार-बार मांगने के बावजूद कांग्रेस अपनी आय का विवरण आयकर विभाग को नहीं दे रही थी। वह आय कर भी नहीं भर रही थी। इसलिए पिछले दिनों आयकर अपीलीय अधिकरण (आई.टी.ए.टी.) ने कांग्रेस को 215 करोड़ रुपए जमा करने का नोटिस भेज दिया। यह देनदारी बनती थी शायद इसलिए कांग्रेस ने इस नोटिस के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील नहीं की। एक कारण यह भी था कि अपील करने से पहले देनदारी का कम से कम 20 प्रतिशत पैसा जमा कराना होता है। यानी कांग्रेस को 42 करोड़ रु. से अधिक की राशि जमा करने के बाद ही राहत मिल सकती थी, लेकिन उसने ऐसा भी नहीं किया। इसके बाद आई.टी.ए.टी. ने कांग्रेस के साथ वही किया, जो वह एक सामान्य उपभोक्ता के साथ करता है।
कांग्रेस अपनी मनमानी से अराजकता फैलाती रहती है। बता दें कि नोटबंदी के बाद से राजनीतिक दलों को आय कर में छूट नहीं मिलती। इस कारण राजनीतिक दलों को मिलने वाला दान और उनकी आमदनी आय कर के दायरे में आते हैं। 2016-17 के बाद से सभी राजनीतिक दलों को अपने खाता, आमदनी व खर्चों का विवरण आयकर विभाग को देना पड़ता है, लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया।
215 करोड़ रु. की यह देनदारी वित्तीय वर्ष (2017-18) से लंबित है। इस देनदारी को चुकाने के बजाय, कांग्रेस बचने की जुगत में लगी रही। उसने छूट पाने के लिए पहली बार आयकर आयुक्त का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां से उसे कोई राहत नहीं मिली।
दूसरी अपील उसने आई.टी.ए.टी. में की। इसने भी देनदारी का 20 प्रतिशत पैसा जमा कराने को कहा। इसके बावजूद कांग्रेस ने कुछ नहीं किया। अब आयकर विभाग के पास एक ही रास्ता बचा था और उसने आयकर कानून की धारा 83 के तहत खाते पर रोक लगा दी।
इसके बाद कांग्रेस के नेताओं ने जो हंगामा मचाया, वह उनकी मानसिकता को समझने के लिए पर्याप्त है।
वास्तव में कांग्रेस पार्टी अपने आपको किसी साम्राज्यवादी ताकत से कम नहीं समझती। इसलिए वह बराबर कानून की अवहेलना करती है। यह भी कह सकते हैं कि कांग्रेस अपनी मनमानी से अराजकता फैलाती रहती है। बता दें कि नोटबंदी के बाद से राजनीतिक दलों को आय कर में छूट नहीं मिलती। इस कारण राजनीतिक दलों को मिलने वाला दान और उनकी आमदनी आय कर के दायरे में आते हैं। 2016-17 के बाद से सभी राजनीतिक दलों को अपने खाता, आमदनी व खर्चों का विवरण आयकर विभाग को देना पड़ता है, लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। शायद कांग्रेस के नेताओं को लगता होगा कि आय कर विभाग उनका क्या बिगाड़ लेगा?
स्पष्ट है कि कांग्रेस का स्वभाव ही कानून को न मानने वाला हो गया है। इसके प्रमाण हैं सरकारी संस्थानों, जांच एजेंसियों को लेकर कांग्रेसी नेताओंÞ केÞ विवादास्पद बयान। अपने उलटे-सीधे बयानों के लिए राहुल गांधी को कई बार माफी भी मांगनी पड़ी है। उन्होंने कहा था-‘चौकीदार चोर है।’ इसके लिए राहुल को माफी मांगनी पड़ी। विवादित बयानों के लिए राहुल के खिलाफ अभी भी देश की अनेक अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं। अभी हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह के विरुद्ध बयान देने के लिए रांची की एक अदालत ने राहुल गांधी पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी है। इन सारी बातों का निष्कर्ष यही है कि कांग्रेस अभी भी यह मानने को तैयार नहीं है कि वह ‘सत्ता’ में नहीं है। अच्छा होगा वह जल्दी इस मानसिकता से निकले।
(लेखक उच्चतम न्यायालय में अपर महाधिवक्ता हैं)
टिप्पणियाँ