उत्तर प्रदेश में कृषि और किसान की स्थिति में बहुत सुधार आया है। अब किसानों को उर्वरक के लिए न लंबा इंतजार करना पड़ता है और न ही वे आत्महत्या करते हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही किसान सम्मान निधि योजना, फसल बीमा, सौर ऊर्जा, तालाब तथा ऊसर भूमि सुधार सहित अन्य योजनाओं से किसानों की आय तो बढ़ी ही है; गन्ना, सब्जी, गेहूं, अमरूद, आम व आंवला के उत्पादन में भी प्रदेश पहले स्थान पर आ गया है। प्रदेश से बड़े पैमाने पर हरी सब्जियों का निर्यात हो रहा है। पाञ्चजन्य के लखनऊ ब्यूरो प्रमुख सुनील राय ने उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही से ‘किसान’ आंदोलन के संदर्भ में प्रदेश में कृषि और किसानों से संबंधित कई मुद्दों पर बात की। प्रस्तुत है उस बातचीत के संपादित अंश :
पंजाब के ‘किसान’ एक बार फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व अन्य मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। इस संबंध में आपका क्या कहना है?
ये लोग किसान हैं ही नहीं। किसान तो अपने खेतों में काम कर रहे हैं। ये तो किसानों के नाम पर नेतागिरी कर राजनीतिक रोटी सेंकने वाले लोग हैं। इन्होंने कभी किसानों का भला नहीं किया है। देश के किसी भी राज्य में ऐसी स्थिति देखने को नहीं मिलती है। सिर्फ पंजाब में कुछ ‘खास’ प्रकार के लोग आंदोलन करते रहते हैं। ये दिल्ली और अन्य प्रदेशों की सीमा पर जमावड़ा लगाकर सड़कें जाम करते हैं। अगर इनमें तनिक भी समझदारी होती, तो अपनी बात को शांतिपूर्ण ढंग से सरकार के सामने रखते। सभी को मालूम है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार किसानों की बेहतरी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही। केंद्र सरकार उनसे बातचीत कर रही है। लेकिन वे अड़े रहेंगे, तो कोई परिणाम निकलेगा क्या? एक समय था, जब देश का कृषि बजट महज 22,000 करोड़ रुपये हुआ करता था। लेकिन नरेंद्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कृषि बजट लगातार बढ़ा है। आज यह 1.20 लाख करोड़ रुपये है। यानी पहले की तुलना में कृषि बजट पांच गुना बढ़ा है।
किसानों के लिए केंद्र सरकार ने जो कदम उठाए हैं, क्या वे पर्याप्त हैं? उत्तर प्रदेश में एमएसपी की क्या स्थिति है?
मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने किसानों के हित में कई प्रभावी कदम उठाए हैं। इसमें एमएसपी बढ़ाना भी शामिल है। पहले की अपेक्षा अब तीन गुना दाम पर अनाज की खरीद हो रही है। किसान खुशहाल हैं। दरअसल, 1968- 89 में जो एमएसपी तय किया गया था, उसे बढ़ाने की गति बहुत धीमी थी। इससे किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पाता था। उत्तर प्रदेश में बरसों तक गन्ने का भुगतान नहीं होता था। हमने गन्ने का पिछला और वर्तमान भुगतान आनलाइन किया। पैसा सीधे किसानों के खाते में गया। हमने बिचौलियों के लिए कोई मौका ही नहीं छोड़ा है, जबकि पंजाब में बिचौलिए हावी हैं। उत्तर प्रदेश में सरकार सीधे किसानों से अनाज खरीदती है। लेकिन पंजाब में आढ़तियों का वर्चस्व है। आढ़तियों के वर्चस्व को खत्म करने में वहां की सरकार विफल रही है।
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से पहले, उत्तर प्रदेश में केवल धान और गेहूं की खरीद एमएसपी पर होती थी। अब बाजरा, ज्वार, मक्का, उड़द, मूंगफली, चना, मसूर और सरसों आदि की भी खरीद हो रही है। 2014-15 में धान और गेहूं का एमएसपी क्रमश: 1,360 रुपये और 1,460 रुपये था, जो 2022-23 में बढ़कर क्रमश: 2,183 रुपये और 2,500 हो गया। इसी तरह, दलहन और तिलहन की फसलों पर भी एमएसपी बढ़ाया गया है। बाजरे का एमएसपी 1,250 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये किया गया है।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग भी उठाई जाती रही है। क्या इस पर ‘किसानों’ की तरफ से राजनीति नहीं हो रही?
मैं कथित आंदोलनकारियों से पूछना चाहता हूं कि 2004 में स्वामीनाथन की अध्यक्षता में आयोग बना और 2006 में उसकी रिपोर्ट भी आ गई थी। लेकिन तत्कालीन संप्रग सरकार ने उसे लागू नहीं किया। 2004 से 2014 तक केंद्र में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की सरकार थी। उस समय स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू कराने के लिए आंदोलन क्यों नहीं किया गया? आज किसान को उसकी लागत का तीन गुना से अधिक मूल्य मिल रहा है। किसान की दशा में उत्तरोत्तर सुधार हो रहा है। मैं खुद भी किसान हूं। कृषि को बेहद करीब से देखता-समझता हूं। अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने वाले लोग सड़क पर कथित आंदोलन चला कर जनजीवन अस्त-व्यस्त कर रहे हैं।
पहले किसानों को उर्वरक के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता था। आज क्या स्थिति है?
सच में एक समय था, जब किसानों को उर्वरक के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ता था। कई बार तो उन्हें रात सड़क पर ही गुजारनी पड़ती थी। यही नहीं, कई बार तो खाद लेने आए किसानों की भीड़ पर पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया। लेकिन योगी आदित्यनाथ जी की सरकार में किसी भी स्थान पर उर्वरक को लेकर कोई दिक्कत नहीं हुई है। मैं पदभार ग्रहण करने के दिन से ही लगातार प्रदेश में उर्वरक के स्टॉक की समीक्षा कर रहा हूं। हमारे पास पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध है।
पहले आर्थिक तंगी के कारण आए दिन किसान आत्महत्या करते थे, पर अब यह एकदम बंद हो गया है। इस दिशा में आपकी सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
जब ऐसी घटनाएं बहुतायत में हो रही थीं, तब सरकारों का इनपुट और आउटपुट बहुत कमजोर था। फसल क्षति की भरपाई के लिए उस समय की सरकारों ने कोई नीति ही नहीं बनाई थी। 2004 से 2012 तक बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या करने पर विवश हुए थे। भाजपा ने अपने संकल्प-पत्र में किसानों को आर्थिक दबाव से मुक्त करने का वादा किया था। प्रदेश में सरकार बनते ही योगी सरकार ने पहला निर्णय ऋण माफी का लिया और 86 लाख किसानों का 36 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर दिया। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद 50 लाख मीट्रिक टन खरीद का लक्ष्य रखा और 37 लाख मीट्रिक टन की खरीद की थी। अभी तक प्रदेश सरकार ने रिकॉर्ड खरीदारी की है। बीते 6 वर्ष के दौरान प्रदेश सरकार ने एक करोड़ से अधिक किसानों से 5.68 लाख मीट्रिक टन गेहूं और धान की खरीद की है और 1,4,770 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। वहीं, 2012 से 2017 के बीच 2.17 लाख मीट्रिक टन की ही खरीद हुई थी और लगभग 29 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। यानी योगी जी की सरकार ने सपा के शासनकाल की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा खरीद की है और किसानों को तीन गुना से अधिक भुगतान किया है।
बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए प्रदेश में दीन दयाल उपाध्याय किसान समृद्धि योजना चलाई जा रही है। गत 5 वर्ष में 500 करोड़ रुपये खर्च कर एक लाख हेक्टेयर भूमि को कृषि योग्य बनाया गया है। इस बार 1.10 लाख हेक्टेयर भूमि को उपजाऊ बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इस पर 602 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
खेती में युवाओं को रोजगार मिले, इसके लिए प्रदेश सरकार क्या कर रही है?
प्रदेश सरकार कृषि स्नातक युवाओं को खाद्य और बीज लाइसेंस देकर उन्हें व्यापार के लिए प्रोत्साहित कर रही है। ‘वन शॉप-वन स्टॉप’ योजना के तहत व्यापार शुरू करने के लिए सरकार उन्हें 75,000 रुपये का अनुदान दे रही है। इससे शिक्षित बेरोजगारों का पलायन रुका है और कृषि क्षेत्र में पढ़े-लिखे युवाओं का रुझान बढ़ा है।
बुंदेलखंड में मवेशी फसल को नुकसान पहुंचाते थे। पानी की भी किल्लत थी। अन्य जिलों में भी भूजल स्तर नीचे गिर रहा था। अब वहां क्या स्थिति है?
इस समस्या से निपटने के लिए हमने जैविक खेती को बढ़ावा दिया है। नमामि गंगे के जरिए प्रदेश के 27 जनपदों में कार्य प्रगति पर है। बुंदेलखंड के सात जनपदों में गोवंश आधारित खेती पर 68 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, इससे कृषि क्षेत्र की तस्वीर तेजी से बदल रही है। वहां पर योगी जी की सरकार ने पानी की किल्लत को दूर किया है। अब खेती के लिए पानी भी उपलब्ध है और अन्ना प्रथा पर काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया है। ‘एक बूंद-अधिक उपज’ योजना से काफी लाभ हुआ है। साथ ही, ‘एक खेत-एक तालाब’ योजना में भी किसानों ने रुचि दिखाई है। इस योजना के अंतर्गत खेत में तालाब का निर्माण किया जाता है, जिसके लिए प्रदेश सरकार अनुदान दे रही है। इस वर्ष 5,500 तालाबों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। इससे प्रदेश का भूजल स्तर लगातार सुधर रहा है। बुंदेलखंड में यह योजना बहुत कारगर साबित हुई है। परंपरागत खेती से हटकर किसान सब्जी आदि उगा रहे हैं, मछली पालन कर रहे हैं।
औद्योगीकरण के कारण शहरों का तेजी से विस्तार हो रहा है और कृषि भूमि घट रही है। इस असंतुलन को कैसे ठीक करेंगे?
ऊसर और बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए प्रदेश में दीन दयाल उपाध्याय किसान समृद्धि योजना चलाई जा रही है। गत 5 वर्ष में 500 करोड़ रुपये खर्च कर एक लाख हेक्टेयर भूमि को कृषि योग्य बनाया गया है। इस बार 1.10 लाख हेक्टेयर भूमि को उपजाऊ बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इस पर 602 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
मोटे अनाज को लेकर राज्य सरकार की क्या योजना है?
मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए प्रदेश सरकार 186 करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है। किसानों को मुफ्त बीज उपलब्ध कराया जा रहा है। प्रसंस्करण के लिए 20 कृषि विज्ञान केंद्रों और अन्य विश्वविद्यालयों को अनुदान दिया जा रहा है। प्रदेश सरकार मोटे अनाज से बने उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग भी करेगी। इसके लिए सभी जनपदों में यह योजना चलाई जा रही है, जिसका धरातल पर व्यापक असर भी दिख रहा है।
विदेशों से तिलहन का आयात न करना पड़े, क्या इस दिशा में कोई प्रगति हुई है?
2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जी ने तिलहन की फसलों की उत्पादकता बढ़ाने की अपील की थी। प्रदेश सरकार लगातार तिलहन को प्रोत्साहित कर रही है और तिलहन की फसलें भी खरीद रही है। साथ ही, सघन सहकारी समितियों को भी जीवंत किया गया है। इसमें 30,000 नए किसान जुड़े हैं। इससे सरकार को भी 75 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ है। पहले 4,000 वितरण केंद्र थे, जो आज बढ़कर 6,000 हो गए हैं। यही नहीं, 44 उत्पादों पर मंडी शुल्क भी पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है, जबकि कुछ उत्पादों पर मात्र एक प्रतिशत मंडी शुल्क लिया जा रहा है। हमारा प्रयास है कि भविष्य में तिलहन का आयात न करना पड़े।
टिप्पणियाँ