ब्रिटेन की पूर्व गृहमंत्री सुएला ब्रेवरमैन एक बार फिर इस्लामी कट्टरपंथ के विरुद्ध खुलकर सामने आई हैं। उन्होंने कहा कि यह तो नागरिकों का कर्तव्य है कि इस्लामी उन्माद के बारे में बोलें, इसे इस्लामोफोबिया नहीं कहा जा सकता।
पूर्व गृहमंत्री सुएला ने कहा है कि इस्लामी कट्टरपंथियों का दुष्प्रभाव हमारी अदालतों और कानूनी पेशे में भी देखने में आ रहा है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में वो हावी होते दिख रहे हैं। यहां तक कि इस्लामी कट्टरपंथी तत्व अब तो संसद तक पहुंच बना चुके हैं। सुएला का कहना है कि अब तो समाज जीवन में जहां देखो वहां हमारी मान्यताओं तथा आजादी पर चोट की जा रही है।
भारत मूल की ब्रिटेन की पूर्व गृहमंत्री अपनी बेबाक राय और कार्यशैली की वजह से जानी जाती हैं। कुछ समय पहले उनका ब्रिटेन के पुलिस विभाग के एक मुद्दे पर तनाव होने के बाद, सुएला ब्रेवरमैन को पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
ब्रिटेन के एक प्रसिद्ध अखबार ‘डेली टेलीग्राफ’ में छपे अपने आलेख में सुएला का यह कहना बहुत ही गंभीर माना जा रहा है कि उनका देश अपनी पहचान को ही खोता दिखाई दे रहा है। उनके अनुसार ब्रिटेन को बहुपांथिक और बहुनस्लीय होते हुए भी शांति के साथ रहने वाले देश के नाते जाना जाता रहा है। परन्तु आज ब्रिटेन में इस्लामी उन्मादी हावी हो चले हैं।
पूर्व गृहमंत्री ने कहा कि उन्होंने जब इस्लामी तुष्टीकरण के विरुद्ध आवाज उठाई तो उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था। यह सही बात है। तब प्रधानमंत्री ऋषि सुनक पर संसद और बाहर ऐसा दबाव डाला गया था कि उन्हें सुएला का गृहमंत्री के पद से हटाना पड़ा था। सुएला का यही कहना है कि आज ब्रिटेन समाज का स्वरूप ही ऐसा बन गया है कि खुद को व्यक्त करने या ब्रिटिश मूल्यों की बात करना खराब माना जाने लगा है। कारण? ब्रिटेन आज इस्लामवादियों, कट्टरपंथियों तथा यहूदी विरोधियों के कब्जे में है। यह बात एकदम सच है।
सुएला जानती हैं कि इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों ने अपने विरुद्ध खुलकर बोलने वाली सुएला को पद से हटाने का दबाव बनाया था। लेकिन तो भी वे दमदारी से कह रही हैं कि वे आगे भी इस मुसीबत के विरुद्ध बोलती रहेंगी। उन्होंने समाज का आह्वान किया है कि अब जागना होगा। हम नींद में है और यही वजह है कि ब्रिटेन जिन मूल्यों के लिए जाना जाता है वे कमजोर होते जा रहे हैं।
युवा और एक तेजतर्रार नेता के नाते पहचानी जाने वाली ब्रेवरमैन ने अपने इसी आलेख में लिखा है कि हालत यहां तक खराब हो गई है कि इस्लामी उन्मादी हमारी अदालतों ही नहीं कानून के पेशे तक में अपना असर पैदा कर चुके हैं। कालेजों तथा विश्वविद्यालयों में उनकी पैद बन गई है। संसद में भी उनकी उपस्थिति दिखाई देने लगी है।
ऐसी स्थिति को चिंताजनक मानते हुए ही सुएला ने लिखा है कि इस्लामी कट्टरपंथ के विरुद्ध आवाज उठाना किसी भी सूरत में इस्लामोफोबिक नहीं कहा जा सकता है। ऐसा करना तो नागरिकों की जिम्मेदारी बनती है।
सुएला जानती है कि इन्हीं इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों ने अपने विरुद्ध खुलकर बोलने वाली सुएला को पद से हटाने का दबाव बनाया था। लेकिन तो भी वे दमदारी से कह रही हैं कि वे आगे भी इस मुसीबत के विरुद्ध बोलती रहेंगी। उन्होंने समाज का आह्वान किया है कि अब जागना होगा। हम नींद में है और यही वजह है कि ब्रिटेन जिन मूल्यों के लिए जाना जाता है वे कमजोर होते जा रहे हैं।
सुएला लोगों को झकझोरती हुई कहती हैं कि समाज पर शरिया कानूनों, इस्लामवादी तथा यहूदी विरोधी तत्वों का कब्जा होता जा रहा है। समाज जीवन में ऐसा डर बैठा दिया गया है कि जिससे हमें बाहर निकलना ही होगा। वे जानती हैं और कहती भी हैं कि इस वजह से उन्हें इस्लामोफोबिक भले कहा जाएगा, लेकिन अब वक्त है कि सच बोलना ही होगा।
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