झारखंड में पुलिसिया व्यवस्था पर फिर से एक बार सवालिया निशान लगा है। पुलिस एक 20 वर्षीय युवक को चोरी के आरोप में पूछताछ के लिए उठा ले जाती है और अगले दिन सुबह उसकी लाश अस्पताल के मुर्दाघर में पाई जाती है। जब घर वालों और राजनीतिक दलों का दबाव पड़ता है तो पुलिस यह बताती है कि युवक ने आत्महत्या कर ली थी। हालांकि पुलिस की इस दलील पर किसी को विश्वास नहीं है , लेकिन यह सच भी है तो पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है। हालांकि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के निर्देश के बाद न्यायिक जांच का आदेश दिया गया है।
क्या है पूरा मामला ?
मामला प्रदेश के रामगढ़ जिले का है। कुछ दिन पहले रामगढ़ के रोटरी क्लब में चोरी हुई थी। इसी चोरी के आरोप में 21 फरवरी की रात एक होटल में काम करने वाले दलित युवक अनिकेत राम को पुलिस उठा ले जाती है। इस होटल में अनिकेत के पिता महेंद्र राम भी काम कर रहे थे, जब उन्होंने पुलिस से पूछा तो पुलिस का कहना था कि थोड़ी देर में अनिकेत को छोड़ दिया जाएगा। रात भर युवक पुलिस की हिरासत में रहा । अगले दिन सुबह जब युवक के माता-पिता रामगढ़ थाना पहुंचे तो उन्हें पता चला कि युवक को सदर अस्पताल भेज दिया गया है। सदर अस्पताल जाने के बाद युवक के परिजनों को पता चलता है कि उसकी मौत हो गई है और उसकी लाश मुर्दाघर में है। इस घटना से आहत होकर उसकी मां बेसुध हो जाती है और पूरा परिवार बिलख-बिलख कर रोने लगता है। पुलिस का कहना है कि युवक ने कंबल फाड़कर रस्सी बनाई और उसी का उपयोग करके थाने के अंदर ही आत्महत्या कर ली। इधर परिवार वालों का आरोप है कि पुलिस ने उनके बेटे अनिकेत की हिरासत में पीट-पीट कर हत्या कर दी है।
इस घटना की जानकारी जैसे ही स्थानीय भाजपा और आजसू नेताओं को मिली तो वे लोग परिवार के समर्थन में थाना का घेराव करने पहुंच गए और आवेदन देकर दोषियों पर कार्रवाई की मांग की। इस मामले की जानकारी मिलते ही नेता प्रतिपक्ष सह भाजपा नेता अमर बाउरी और भाजपा एससी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सह सिमरिया विधायक किशुन कुमार दास 23 फरवरी को पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे और उन्हें हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया। अमर बाउरी ने जिले के उपायुक्त चंदन कुमार से बात की और उन्होंने पीड़ित परिवार को 15 लाख का मुआवजा, अंबेडकर आवास और भूमि आवंटन करने की मांग की है। ऐसा नहीं करने पर उन्होंने सोमवार से आंदोलन की चेतावनी भी दे डाली है।
अमर बाउरी ने पुलिस प्रशासन के साथ-साथ राज्य की चंपई सरकार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि राज्य में दलित और आदिवासियों की पुलिस की हिरासत में मौत हो जाती है और उसके बाद भी सरकार से लेकर प्रशासन चुप्पी साधे बैठा रहता है। इससे यही पता चलता है कि राज्य सरकार को जनता के किसी भी मामले से कोई सरोकार नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि शासन और प्रशासन अगर ढीला होता है तो उसका दुष्प्रभाव ऐसा ही दिखाई देता है।
नया नहीं है पुलिस की हिरासत में मौत का मामला
पुलिस की हिरासत में मौत का मामला नया नहीं है । 13 अप्रैल 2022 को कोडरमा के डोमचांच में पुलिस हिरासत में ढिबरा कारोबारी की मौत हो गयी थी। इस मामले में थानेदार सहित चार पुलिसकर्मी को निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद आज से 2 वर्ष पूर्व 24 फरवरी को साहिबगंज के तालझारी थाना क्षेत्र में देबू तुरी नाम के भाजपा कार्यकर्ता की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी। यहाँ भी पुलिस का कहना था कि चोरी की घटना में पूछताछ के लिए देबू तुरी को बुलाया गया था और उसी दौरान उनकी तबीयत बिगड़ गई। यहाँ भी मृतक के परिजनों का आरोप था कि पूछताछ के दौरान उन्हें बुरी तरह मारा-पीटा गया था, जिससे उनकी मौत हुई है। इसके बाद 18 जुलाई 2023 को हजारीबाग के बरही में चोरी के आरोप में गिरफ्तार किये गये मोहम्मद अशफाक नाम के युवक की मौत पुलिस हिरासत में हुई थी। 21 अगस्त 2023 को भी गिरिडीह जिले के बेंगाबाद थाना में एक व्यक्ति की पुलिस हिरासत में मौत हो गयी थी।
एक आंकड़े की बात करें तो जब से झामुमो की सरकार बनी है तब से हर वर्ष कई निर्दोष पुलिस की हिरासत में मारे जा रहे हैं। वर्ष 2019-20 में 45 और 2021-22 में 54 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हो चुकी है।
क्या होता है ‘हिरासत में मौत’ ?
अभियुक्त रिमांड पर हो या ना हो, हिरासत में लिया गया हो या पूछताछ के लिए बुलाया गया हो, उस पर कोई मामला अदालत में लंबित हो या वह सुनवाई की प्रतीक्षा कर रहा हो। इस दौरान अभियुक्त की मौत हो तो उसे ‘हिरासत में मौत’ माना जाता है। इसमें पुलिस हिरासत के दौरान आत्महत्या, बीमारी के कारण हुई मौत, हिरासत में लिये जाने के दौरान घायल होने एवं इलाज के दौरान मौत या अपराध कबूल करवाने के लिए पूछताछ के दौरान पिटाई से हुई मौत शामिल है। झारखंड में पुलिस हिरासत में मौत के सभी मामलों की जांच सीआईडी करती है। वर्तमान में भी पुलिस हिरासत में मौत के सभी मामलों की जांच सीआईडी कर रही है। इनमें से कुछ मामलों में पुलिस कर्मियों को दोषी पाते हुए विभागीय कार्रवाई की जा रही है।
अब देखना ये है कि रामगढ़ कि घटना को लेकर प्रदेश की सरकार कितनी गंभीर होती है। पीड़ित परिवार अत्यंत गरीब है। उनके पास ना तो अपना कोई मकान है और ना ही आजीविका का कोई साधन। होटल में काम करके अपने परिवार को चलाने वाला अनिकेत राम पुलिस और प्रशासन की लापरवाही का शिकार तो हो गया, लेकिन आज उसका परिवार बिखर गया।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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