कांग्रेस और उनकी सरकारों पर तुष्टिकरण के आरोप लगते रहे हैं इसका कारण उनकी ऐसी नीतियां रहीं हैं जिनसे हिन्दू अधिकार सीमित हुये और अल्पसंख्यक अधिकार बढ़े । इससे आरोप को बल मिला । अब कर्नाटक सरकार ने अपने बजट में जहां अल्पसंख्यक कल्याण के लिये तो धनराशि में वृद्धि की है वहीं मंदिरों के चढ़ावे पर भी टैक्स लगा दिया है। इसके साथ अब कर्नाटक में गैर हिन्दू भी मंदिर प्रबंध न्यास के सदस्य नामांकित हो सकेंगे।
संभवतः भारत संसार में ऐसा अकेला देश है जहां अल्पसंख्यकों के धार्मिक और सामाजिक अधिकार बहुसंख्यक समाज की तुलना में अधिक होते हैं। अपने विकास के लिये अल्पसंख्यक समाज को वे अधिकार तो होते ही हैं जो सामान्य वर्ग को होते हैं इसके साथ अतिरिक्त अधिकार भी होते हैं। लेकिन जिन प्रांतों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं वहां-वहां ये अल्पसंख्यक अधिकार प्राप्त नहीं होते। पूरे भारत में कहीं भी चर्च या मस्जिद प्रबंधन में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता पर मंदिर प्रबंधन में होता है। दान के रूप में चर्च या मस्जिद के पास जो भी धन आता है उसका व्यय संबंधित समाज ही अपनी इच्छा और आवश्यकतानुसार करते हैं किन्तु मंदिरों में आने वाले दानधन के व्यय का निर्णय वह न्यास करता है जिसमें शासन द्वारा नामांकित प्रतिनिधि भी होते हैं ।
मंदिरों की दानपेटी भी ट्रस्ट पदाधिकारी की निगरानी में खोली जाती है और बैंक में आये दान के व्यय का निर्णय भी सरकारी प्रतिनिधि की सहमति से होता है। मंदिरों पर नियंत्रण करने का यह काम अंग्रेजी शासकाल में लागू हुआ था जो स्वतंत्रता के बाद भी यथावत रहा । अनेक बार आवाजें उठीं लेकिन सरकारी नियंत्रण से मंदिर मुक्त न हो सके । बल्कि मंदिरों की आय को हथियाने के नये नये तरीके निकाले गये । वहीं अल्पसंख्यक संस्थानों अपेक्षाकृत सुविधायें बढ़ाई गईं। धार्मिक प्रावधानों और पर्सनल लॉ में अपेक्षाकृत अधिक सामाजिक अधिकार देने के कारण ही कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दलों और उनके द्वारा संचालित सरकारों पर तुष्टिकरण के आरोप लगते रहे हैं। अब इसी दिशा में कर्नाटक सरकार ने दो कदम और आगे बढ़ाये हैं। एक ओर अल्पसंख्यक कल्याण के लिये बजट राशि में वृद्धि की घोषणा की है तो वहीं अब मंदिर में आने वाले चढ़ावे पर भी टैक्स लगाने का निर्णय लिया है । माना जा रहा है कि अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर रामलला के विराजमान होने से हिन्दू समाज में आस्था बढ़ी है। इससे न केवल अयोध्या अपितु देशभर के सभी मंदिरों में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है। मंदिर में श्रृद्धालु बढ़ेंगे तो चढ़ावा भी बढ़ेगा। संभवतः यह अनुमान लगाकर ही कर्नाटक सरकार ने एक विधेयक लाकर यह निर्णय लिये हैं।
मंदिरों में दो प्रकार से धन आता है । एक दान के रूप में और दूसरा चढ़ावे के रूप में । मंदिरों की दान राशि पर तो सरकार की नजर रहती ही है अब कर्नाटक सरकार ने चढ़ावे पर भी अपनी दृष्टि गड़ा दी है । सामान्यता चढ़ावे की कुछ राशि वहां कार्यरत पुजारियों, सेवादारों में वितरित होती है और इसका कुछ भाग मंदिर के रखरखाव पर व्यय होता है । लेकिन अब कर्नाटक में चढ़ावे पर भी सरकार का शिकंजा रहेगा और टैक्स लगेगा । मंदिरों के चढ़ावे पर टैक्स वसूलने वाला यह विधेयक कर्नाटक विधानसभा में इसी सप्ताह बुधवार को आया और इससे पांच दिन पहले शुक्रवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बजट संबोधन में अल्पसंख्यक कल्याण के लिये राशि वृद्धि की घोषणा की थी ।
चढ़ावे पर टैक्स वृद्धि विधेयक
कर्नाटक विधानसभा में भाजपा सहित विपक्षी दलों के भारी विरोध के बावजूद पारित इस विधेयक का पूरा नाम ‘कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक 2024 (Karnataka Hindu Religious Institutions and Charitable Endowments Bill 2024) है । इसमें प्रावधान किया गया है कि कर्नाटक के जिन हिंदू मंदिरों में चढ़ावे के रूप में एक करोड़ रुपये या इससे अधिक की आय होती है। वहां दस प्रतिशत टैक्स लगेगा । जबकि एक करोड़ से कम और दस लाख से अधिक वार्षिक चढ़ावा प्राप्त करने वाले मंदिरों को पांच प्रतिशत टैक्स देना होगा । अभी तक मंदिर परिसर की दुकानों के किराये, मंदिर से संबंधित कृषि भूमि अथवा अन्य प्रतिष्ठानों संचालन से होने वाली आय पर ही टैक्स लगता था पर चढ़ावा मुक्त था। इस विधेयक में चढ़ावे पर टैक्स के अतिरिक्त एक और प्रावधान है । अब कर्नाटक सरकार मंदिर प्रबंध न्यास में हिन्दू अथवा अन्य मतों के सदस्य को भी मनोनीत कर सकेगी। यनि अब गैर हिन्दू भी मंदिर प्रबंधन का अंग हो सकेंगे। चर्च में गैर ईसाई या वक्फ बोर्ड अथवा मस्जिद इंतजामिया कमेटी में गैर इस्लामिक कोई सदस्य नहीं हो सकता । लेकिन कर्नाटक सरकार ने मंदिर प्रबंधन में गैर हिन्दू को सदस्य बनाने का मार्ग बना लिया है । यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि हिन्दू समाज के लोग तो अन्य मतों के स्थलों में श्रृद्धा के साथ जाते हैं। इसे मजारों की भीड़ और चर्च के सार्वजनिक आयोजनों में देखा जा सकता है पर ईसाई अथवा इस्लामिक समाज के लोग सनातनी आस्था में विश्वास के आयोजनों में सहभागी नहीं होते। वे मंदिरों के आसपास दुकानें लगाकर अथवा कारोबार करके अपनी आजीविका कमाते हैं पर कभी उस मंदिर में दर्शन को नहीं जाते। हिन्दू तीर्थस्थलों पर बड़ी संख्या में जो गैर हिन्दुओं की दुकानें देखी जा सकती हैं इनमें अन्य आवश्यक सामग्री के साथ फूल, प्रसाद, चुनरी एवं चढ़ावे की अन्य सामग्री भी है। स्वाभाविक है कि तीर्थ स्थलों पर इन दुकानों के ग्राहक हिन्दू तीर्थ यात्री ही होते हैं । गैर हिन्दुओं की ऐसी दुकानें अयोध्या, मथुरा, काशी, द्वारिका, उज्जैन, ओंकारेश्वर सहित देशभर के अधिकांश हिन्दू तीर्थ स्थानों पर देखीं जा सकतीं हैं । लेकिन कर्नाटक सरकार ने यह विधेयक लाकर गैर हिन्दू धर्मावलंबियों को एक और सुविधा दे दी, उन्हें अब मंदिर प्रबंधन में सहभागी होने का अधिकार मिल गया है ।
कर्नाटक में अल्पसंख्यक कल्याण राशि बढ़ी
कर्नाटक सरकार ने एक ओर मंदिरों के चढ़ावे पर तो टैक्स लगाया है वहीं दूसरी ओर अपने बजट में अल्पसंख्यक कल्याण राशि में बढ़ोत्तरी की है । यह वृद्धि दोनों प्रकार से है । चर्च और वक्फ बोर्ड को दिये जाने वाले अनुदान में भी वृद्धि हुई और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अंतर्गत चलने वाले योजनागत कार्यों के प्रावधान में भी वृद्धि की गई है । कर्नाटक सरकार ने वर्ष 2024-25 के बजट में मुस्लिम समाज के वक्फ बोर्ड को 100 करोड़ रुपये और ईसाई समुदाय को 200 करोड़ रुपये अनुदान देने का प्रावधान किया है । इसके साथ अल्पसंख्यक विकास निगम के माध्यम से 393 करोड़ रुपये की लागत से अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रम चलाने की घोषणा भी की है । कर्नाटक में सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड को अनुदान के रूप में दी जाने राशि से ही मस्जिद के इमामों के वेतन दिया जाता है और कुछ मस्जिद के रखरखाव पर व्यय होती है । अल्पसंख्यक कल्याण के लिये राशि वृद्धि के साथ कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने यह घोषणा भी की है कि ‘मौलवियों’ और ‘मुत्तवल्लियों’ के वर्कशॉप कर्नाटक वक्फ बोर्ड के साथ पंजीकृत भी किए जाएंगे ।
मंदिरों से सरकार को होने वाली आय
सरकार के अपने साधनों से अर्जित राशि जहां अल्पसंख्यक समाज के स्थलों पर व्यय होती है वहीं मंदिरों से सरकार को आय होती है । यह ठीक है कि सरकार मंदिरों के रखरखाव या मंदिर विकास पर धर्मस्व विभाग के माध्यम से राशि व्यय करती है । पर यह राशि सरकार के पास मंदिरों से ही एकत्र होती है । मंदिर में आने वाली राशि पर सरकार का नियंत्रण होता है । मंदिरों के रखरखाव या अन्य विकास पर जितनी राशि व्यय करती है सरकार को उससे कहीं अधिक राशि मंदिरों से प्राप्त होती है। कर्नाटक सरकार को वर्ष 2023-24 में मंदिरों से 445 करोड़ रुपया प्राप्त हुआ था । जबकि इसमें से केवल सौ करोड़ रुपया ही मंदिरों के विकास या रखरखाव पर व्यय हुआ था । शेष 345 करोड़ रुपये की सरकार को आय हुई थी । अब माना जा रहा है कि आगामी वर्ष कर्नाटक सरकार को मंदिरों से होने वाली इस आय में और वृद्धि होगी । एक तो बदले वातावरण से मंदिर जाने वाले श्रृद्धालुओं की संख्या तो बढ़ेगी ही साथ ही इस नये विधेयक से चढ़ावा पर जो टैक्स लागू किया गया है उससे और वृद्धि होगी ।
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