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विनम्रता की मूर्ति

संत शिरोमणि आचार्यप्रवर श्री विद्यासागर जी महाराज समाधिस्थ हो गए। वे वर्षों से चंद्रगिरि तीर्थ, डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) में साधनारत थे। राष्ट्रवाद के प्रखर प्रणेता विद्यासागर जी ने अपने नश्वर शरीर को त्यागने से तीन दिन पहले मौन धारण कर लिया था और इस दौरान वे उपवास में रहे। इसी अवस्था में उन्होंने अपने प्राण त्यागे।

by WEB DESK
Feb 23, 2024, 11:11 am IST
in भारत, छत्तीसगढ़, श्रद्धांजलि
संत शिरोमणि आचार्यप्रवर श्री विद्यासागर जी महाराज

संत शिरोमणि आचार्यप्रवर श्री विद्यासागर जी महाराज

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आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी का ब्रह्मलीन होना देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। लोगों में आध्यात्मिक जागृति के लिए उनके बहुमूल्य प्रयास सदैव स्मरण किए जाएंगे। वे जीवनपर्यंत गरीबी उन्मूलन के साथ-साथ समाज में स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे। समाज के लिए उनका अप्रतिम योगदान देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

गत 17 फरवरी को संत शिरोमणि आचार्यप्रवर श्री विद्यासागर जी महाराज समाधिस्थ हो गए। वे वर्षों से चंद्रगिरि तीर्थ, डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) में साधनारत थे। राष्ट्रवाद के प्रखर प्रणेता विद्यासागर जी ने अपने नश्वर शरीर को त्यागने से तीन दिन पहले मौन धारण कर लिया था और इस दौरान वे उपवास में रहे। इसी अवस्था में उन्होंने अपने प्राण त्यागे।

इससे पहले उन्होंने 6 फरवरी को दोपहर शौच से लौटने के उपरांत साथ के मुनिराजों को अपने से अलग भेज कर निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागर जी से चर्चा की। इसके बाद उन्होंने समस्त कार्यों से निवृत्ति ली और आचार्य पद का त्याग करते हुए प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज को आचार्य पद सौंपने की घोषणा की।

आचार्यश्री का जन्म 10 अक्तूबर, 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन सदलगा, बेलगांव (कर्नाटक) में हुआ था। दीक्षा के पहले भी उनका नाम विद्यासागर ही था। उन्होंने 22 वर्ष की आयु में घर त्याग दिया था। उन्होंने 30 जून, 1968 को अजमेर (राजस्थान) में अपने गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर जी महाराज से दीक्षा ली थी। दीक्षा के बाद उन्होंने कठोर तपस्या की।

विद्यासागर जी दिन भर में केवल एक बार एक अंजुली पानी पीते थे। वे खाने में सीमित मात्रा में सादी दाल और रोटी लेते थे। उन्होंने आजीवन नमक, चीनी, फल, हरी सब्जियां, दूध, दही, सूखे मेव, अंग्रेजी दवाई, तेल, चटाई का त्याग किया।

उन्होंने आजीवन सांसारिक एवं भौतिक पदार्थों का त्याग कर दिया। मुनि जी ने पैदल ही पूरे देश का भ्रमण किया। उनकी तपस्या को देखते हुए श्रीज्ञानसागर जी महाराज ने 22 नवंबर, 1972 को उन्हें आचार्य पद सौंपा था। आचार्य जी संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, मराठी और कन्नड़ में पारंगत थे। उन्होंने हिंदी और संस्कृत में कई ग्रंथ लिखे। पाञ्चजन्य परिवार की ओर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।

संघ ने दी श्रद्धांजलि

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आचार्य विद्यासागर जी को श्रद्धांजलि दी है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि महान तीर्थंकरों की श्रेष्ठतम परंपराओं को अपने जीवन में साक्षात् करने वाले जैन धर्म के महान आचार्य पूज्य श्री विद्यासागर जी महाराज का शरीर डोंगरगढ़, राजनंदगांव (छत्तीसगढ़) में पूर्ण हो गया।

पूज्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने 1968 में दिगंबरी दीक्षा ली थी और तब से आज तक वे निरंतर सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, ब्रह्मचर्य की साधना करते हुए इन पंच महाव्रतों के देशव्यापी प्रचार हेतु समर्पित रहे। लोक कल्याण की भावना से अनुप्राणित होकर पूज्य आचार्य श्री महाराज ने अपने जीवन में सैकड़ों मुनियों एवं आर्यिकाओं को दीक्षा प्रदान की और लोकोपकारी कार्यों हेतु सदैव अपनी प्रेरणा और आशीर्वाद प्रदान किया।

उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष में अनेक स्थानों पर गोशालाएं, शिक्षा संस्थान, हथकरघा केंद्र तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की लोकमंगलकारी योजनाओं का शुभारंभ कराया। अनेक कारागारों में वहां रह रहे हजारों लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन करने का अभूतपूर्व कार्य आपके आशीर्वाद से ही चल रहा है। उनकी यही अभिलाषा थी कि यह देश अपनी उदात्त शिक्षाओं और जीवनादर्शों को लेकर पुन: खड़ा हो और वर्तमान समय में विश्व को नई दिशा प्रदान करे। उनका संपूर्ण जीवन इन आदर्शों के प्रति पूरी तरह समर्पित था।

अंतिम श्वांस तक उन्होंने अपने कठोर साधनाव्रत का निर्वाह किया। लाखों लोग आज उन आदर्शों पर चल रहे हैं। उनके चले जाने का दु:ख तो सभी को होना स्वाभाविक ही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उनके द्वारा दिग्दर्शित मार्ग पर हम सभी लोग और अधिक दृढ़ता और समर्पित भाव से निरंतर आगे बढ़ते रहें तथा उन आदर्शों को तीव्र गति प्रदान करें। हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से उनके प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

Topics: Sarsanghchalak Mohanrao BhagwatSarkaryavah Dattatreya Hosabaleआचार्यप्रवर श्री विद्यासागर जी महाराजश्रीज्ञानसागर जी महाराजदिगंबरी दीक्षाAcharyapravar Shri Vidyasagar Ji MaharajShri Gyansagar Ji Maharajराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघDigambari DikshaRashtriya Swayamsevak Sanghसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबालेसरसंघचालक मोहनराव भागवत
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