पिछले वर्ष एक समाचार ने सभी को हैरान और परेशान कर दिया था कि यूके के स्कूलों में मुस्लिम बच्चे हिन्दू बच्चों को इस्लामिक कन्वर्जन करने के लिए कहते हैं और उन पर बीफ फेंकते हैं और सात ही उन्हें काफिर कहते हैं। यह अभी तक पाकिस्तान या कट्टर इस्लामी देशों में होता आया था कि बच्चों के स्तर पर इस प्रकार का मजहबी भेदभाव किया जाए। मगर इजरायल पर हमास के हमले और इजरायल द्वारा हमास के हमलों का बदला लिए जाने पर जिस प्रकार से यूके एवं पश्चिम के कई देशों में युवाओं और किशोरों ने इजरायल का विरोध किया है वह चौंकाने वाला था। वहीं अब एक रिपोर्ट निकलकर आ रही है, जो एक और बड़े षड्यंत्र या खतरे की ओर संकेत कर रही है। यह रिपोर्ट है डेली मेल की वह रिपोर्ट, जिसमें यह बताया गया है कि कैसे श्वेत ईसाई ब्रिटिश बच्चे कम उम्र में ही अपने आप इस्लाम अपना रहे हैं।
यह खतरनाक रिपोर्ट हाल ही में डेली मेल और और इससे पहले कई और पोर्टल्स जैसे मोरक्को वर्ल्ड न्यूज़ और अल जजीरा जैसे पोर्टल्स कर चुके हैं। डेलीमेल में 20 फरवरी को जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, उसमें एक नौ वर्ष के ईसाई बच्चे का उल्लेख है, जिसे वर्ष 2021 में सबसे कम उम्र का इस्लाम में मतांतरित बताया गया था। यूके वर्तमान में मुस्लिमों की संख्या पिछले छ वर्षों में 37% तक बढ़ गयी है और साथ ही वहां पर मस्जिदों की संख्या बढ़कर 1500 हो गयी हैं।
वह बच्चा जिसका नाम पिछले दिनों इस्लाम अपनाने वाले बच्चों में सबसे चर्चित रहा था वह था, टोनी ब्लेयर की सिस्टर इन लॉ की बेटी का। टोनी ब्लेयर की सिस्टर इन लॉ अर्थात लॉरेन बूथ, जो उनकी पत्नी की सौतेली बहन हैं, उन्होंने कई वर्ष पहले ही इस्लाम अपना लिया था, मगर उनकी बेटी ने जब इस्लाम अपनाया था तो उसे मस्जिदों एवं इस्लामी पोर्टल्स द्वारा प्रचारित किया गया था। यह संभवतया वर्ष 2012 की बात है। बारह वर्षीय अलेग्जेंड्रा ने इस्लाम अपनाते हुए कहा था, “मेरी माँ का आभार, जिहोनें मुझे इस्लाम अपनाने के लिए दिशा दिखाई और इस्लाम में मतान्तरित होने से मुझे आत्मिक शांति एवं संतुष्टि मिली है और उसने यहाँ तक कहा था कि इस्लाम ने उसका जीवन आश्चर्यजनक रूप से बदल दिया है!”
परन्तु एक बारह वर्ष की बच्ची के पास ऐसे अनुभव क्या स्वत: आ सकते हैं? शायद नहीं, क्योंकि इस मामले में उसकी माँ के विचारों ने उसे प्रेरित किया था। तो क्या ऐसे वीडियो केवल इस्लाम के प्रचार के लिए हैं? इनपर बात होनी चाहिए कि बच्चों के मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले वीडियो अंतत: किस प्रोपोगैंडा के अंतर्गत बनाए जा रहे हैं? डेली मेल लिखता है कि चर्च ऑफ इंग्लैण्ड के आर्चबिशप ऑफ कैंटरबरी जस्टिन वेलबी की कैथेड्रल सिटी सीट में भी एक मस्जिद ने एक ऑनलाइन फिल्म पोस्ट की है, जिनमें दो अंग्रेज भाइयों को इस्लाम अपनाते हुए दिखाया जा रहा है।
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इस वीडियो में 14 और 15 वर्ष के दो किशोर, कुछ मुस्लिम युवाओं के समूह को देखकर शाहदा दोहरा दोहरा रहे हैं और जब वह पूरा हो जाता है तो लोग उन्हें गले लगाते हैं। ऐसे ही एक और वीडियो का उल्लेख इस रिपोर्ट में है, जिसमें पिछले दिसंबर लन्दन में फिलिस्तीन के समर्थन में होने वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान एक दस वर्षीय बच्चे को इस्लाम अपनाते हुए दिखाया जा रहा है। इस वीडियो में वह बच्चा अपने पिता के साथ खड़ा है। जिसने इस रिपोर्ट के अनुसार पच्चीस वर्ष पहले इस्लाम अपना लिया था, मगर मजहबी तालीम का पालन नहीं किया था और वह चर्च में प्रार्थना के लिए जाता था। उसके अनुसार उसने अपने बच्चे को प्रोत्साहित किया और उसने इस्लाम अपना लिया।
इस रिपोर्ट में लेविस्हम इस्लामिक सेंटर का भी उल्लेख है, जिसके मुख्यिमाम शकील बेग ने 7 अक्टूबर को हमास द्वारा इजरायल पर हुई हैवानियत का स्वागत किया था और इसे गाजा के लोगों की विजय बताते हुए कहा था कि फिलीस्तीन के लोगों, गाजा के लोगों के इस संघर्ष का स्वागत किया जाना चाहिए और उन्हें अपना समर्थन देना चाहिए कि वह अपने दुश्मनों को नष्ट कर सकें। बेग ने यह तक कहा था कि पश्चिम और इजरायल यह झूठ कह रहे हैं कि मुस्लिमों ने इजरायल में निर्दोष बच्चों को मारा है। बेग को जब बीबीसी ने एक बार कट्टरपंथी कहा था तो उसने बीबीसी पर मुकदमा किया था, मगर जज ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी और उसके बारे में कहा था कि वह छोटे बच्चों के दिलों में नफरत और कट्टरता का बीज बो रहा है।
इस्लामिक चैनल पर इमाम ने यह व्याख्या के थी कि उन्होंने लगभग 30,000 लोगों को पिछले दो दशकों में मतांतरित किया है। मगर सबसे चौंकाने वाले आंकड़े और दावे छोटे बच्चों के हैं। इसी रिपोर्ट में एक और आठ वर्ष की बच्ची के इस्लाम अपनाने की बात है।
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ऐसी कई कहानियां कई पोर्टल्स पर हैं और यदि अकादमिक जगत के कई मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन को देखा जाए तो यह स्पष्ट होता है कि बच्चों के एक वर्ग के मन में हिन्दूफोबिया एवं यहूदियों के प्रति घृणा एक स्वाभाविक आदत होती जा रही है। जैसे वह हिन्दू बच्चों को इस्लाम में मतांतरित होने के लिए कहते हैं।
एक और विशेष बात इस रिपोर्ट में कही गयी है और वह है कि कई मस्जिदों ने यह तक कहा है कि वह इस्लाम में आने वाले हर युवा और बच्चे का स्वागत करते हैं फिर चाहे वह टैटू बनाए हुए हों या फिर अजीबोगरीब कपडे ही क्यों न पहने हों। बच्चों के इस्लाम अपनाने के पीछे एक कारण मुस्लिम बच्चों का स्कूल्स में पांच बार नमाज पढ़ना और एक अनुशासित जीवन जीना होता है। अशराफ दाबौस, ने थिंकिंग मुस्लिम पॉडकास्ट में इसका उल्लेख करते हुए कहा था कि जब श्वेत बच्चे अपने मुस्लिम साथियों को अनुशासित जीवन जीते और पांच बार नमाज पढ़ते हुए देखते हैं तो वह भी करना चाहते हैं।
कारण कुछ भी हों, परन्तु बच्चों का इतनी छोटी उम्र में अपने आप मतांतरित होंने का निर्णय लेना कहीं न कहीं चौंकाता है, हालांकि ये निर्णय अपने आप नहीं होते हैं, उसकी प्रेरणा उनके मातापिता ही होते हैं जैसा हमने लॉरा बूथ की बेटी के मामले में देखा था। फिर इन बच्चों के मतांतरण के वीडियो बनाकर क्या प्रमाणित करने का प्रयास किया जा रहा है या फिर यह एक और प्रचारतंत्र है?
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