चुनाव के बाद सरकार बनाने की सिरफुटौव्वल से गुजर रहे पाकिस्तान में फिलहाल शासन लस्त—पस्त है और जनजीवन अस्त—व्यस्त है। पहले से ही कंगाली की कगार पर खड़े देश ने किसी तरह कर्जे से मिले पैसे से चुनाव तो करा लिए हैं लेकिन उससे अभी तक कोई सकारात्मक संकेत नहीं उभरा है। अब मोहम्मद अली जिन्ना की जिद पर बने मजहबी देश के कटोरे में मिली भीख भी तेजी से चुकती जा रही है। वैश्विक साख वाली क्रेडिट रेटिंग संस्था ‘मूडीज’ का कहना है कि इस्लामी देश पर मुसीबत के बाद घिरने में सिर्फ 30 दिन का समय बचा है।
संस्था ‘मूडीज’ ने वहां जारी सियासी उठापटक के आगे भी जारी रहने के कयासों के चलते पाकिस्तान को नकारात्मक ‘क्रेडिट’ वाला देश घोषित किया है। गत वर्ष अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को जो कर्ज की किस्त दी थी वह तेजी से चुकती जा रही है।
कहना का तात्पर्य यह कि पड़ोसी इस्लामी देश पैसे की तंगी के साथ ही सियासी दिक्कतों से गुजर रहा है, लेकिन वहां के नेताओं को कुर्सी की खींचतान से फुर्सत नहीं है। इसी सब को देखते हुए वैश्विक रेटिंग एजेंसी ने अपनी सूची में पाकिस्तान की ‘क्रेडिट रेटिंग’ और नीचे गिरा दी है। इस संस्था ने जो ताजा रिपोर्ट जारी की है उसमें इसने कहा है कि पाकिस्तान में राजनीतिक संकट की वजह से ही संभवत: आने वाले कुछ दिनों में हो सकता है उसे बहुत बुरे आर्थिक संकट से गुजरना पड़े।
इस सूरत में वहां मोलतोल के बाद कोई सरकार बन भी गई तो उसके सामने कंगाल देश को उबारने की बड़ी गंभीर चुनौती पेश आएगी। रिपोर्ट में ‘मूडीज’ का कहना है कि राजनीति के क्षेत्र में धुंधलके की वजह से नई बनने वाली पाकिस्तान की सरकार जब आगामी अप्रैल में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आगे और कर्ज के लिए हाथ फैलाएगी तो मामला इसलिए फंस जाएगा क्योंकि वह पहले ही 49.5 अरब डॉलर का कर्ज लिए बैठा है जिसके लौटाने की वह कोई तय समयसीमा नहीं बता सकता।
वैश्विक क्रेडिट रेटिंग संस्था ने पाकिस्तान की उस कर्ज लेने वाली ‘क्रेडिट रेटिंग’ को गिरा दिया है, यानी अब वह रेटिंग CAA1 से घटकर CAA3 हो गई है। कंगाली की कगार वाली यह रेटिंग किसी भी पैसे से रीते देश के लिए अपमानजनक मानी जाती है। अरब देशों व अन्य इस्लामी देशों ने पाकिस्तान के बार बार पैसे मांगने से उकताकर जिन्ना के देश की तरफ देखना भी बंद कर दिया है इसलिए अभी तो उसे बस आईएमएफ के कर्जे का ही सहारा है।
उल्लेखनीय है कि आईएमएफ ने गत वर्ष जून में इस्लामी देश को कर्जे में 3 अरब डॉलर दिए थे। अब नौ माह की उसे चुकाने की समयसीमा भी खत्म होने को है। पाकिस्तान के पल्ले में रोटी खाने को पैसा नहीं है तो कर्ज चुकाने की सोच भी नहीं सकता। इसलिए उस अब फिर से मोटे कर्ज की आवश्यकता पड़ने वाली है। ‘मूडीज’ की यही रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान के खजाने में बस 30 दिन का पैसा बचा है। अप्रैल में जेब खाली होने पर वह किस मुंह से आईएफएफ के सामने जाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।
वैश्विक क्रेडिट रेटिंग संस्था ने पाकिस्तान की उस कर्ज लेने वाली ‘क्रेडिट रेटिंग’ को गिरा दिया है, यानी अब वह रेटिंग CAA1 से घटकर CAA3 हो गई है। कंगाली की कगार वाली यह रेटिंग किसी भी पैसे से रीते देश के लिए अपमानजनक मानी जाती है। अरब देशों व अन्य इस्लामी देशों ने पाकिस्तान के बार बार पैसे मांगने से उकताकर जिन्ना के देश की तरफ देखना भी बंद कर दिया है इसलिए अभी तो उसे बस आईएमएफ के कर्जे का ही सहारा है।
यह जानना भी दिलचस्प होगा कि मजहबी उन्मादी पाकिस्तान की मुद्रा की हालत भी बड़ी पतली हो चली है। अब पाकिस्तान के एक रुपए की कीमत भारत के 30 पैसे जितनी बची है। अमेरिका का एक डॉलर अब पाकिस्तान के 277 रुपए में ही मिलेगा। बाहर की संस्था ही नहीं, पाकिस्तान के अपने इस्लामाबाद स्थित थिंकटैंक ‘टबडलैब’ की ही रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान की कर्जे की हालत बहुत पतली है। देश की आर्थिक हालत ऐसी है कि इसके बहुत गहरे में डूब जाने की आशंका है। पाकिस्तान कंगाली की ओर बढ़ रहा है। यह ऐसा चक्रव्यूह बन गया है जिससे उबरना पाकिस्तान के लिए लोहे के चने चबाने जैसा होगा।
इसी संस्था की रिपोर्ट आगे कहती है कि कोई हैरतअंगेज स्थिति ही वर्तमान परिस्थिति में सुधार लाए तो लाए वर्ना देश को गर्त में जाने से कोई रोक नहीं पाएगा। उसका भी मानना है कि पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियों के कारण देश की यह बदहाली देखने में आ रही है। नेताओं ने देश की बोटी बोटी लूट ली है। कर्ज तो क्या पाकिस्तान को तो उस पर लदा ब्याज तक उतारने के लिए दूसरे देशों के आगे भीख का कटोरा पसारना पड़ रहा है।
‘मूडीज’ की रिपोर्ट को लेकर पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार द डॉन का कहना है कि चुनाव के बाद देश में जो हालात बने हैं उसे लेकर ‘मूडीज’ का कयास बनने वाली सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है।
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