झारखंड में सरकार चल रही है या सर्कस यह पता ही नहीं चल रहा है। जैसे किसी शादी विवाह में उचित सम्मान न मिल पाने के करण फूफा या मौसा नाराज हो जाते हैं। ठीक इसी तरह समय-समय पर झारखंड सरकार में शामिल विधायकों की नाराजगी की खबरें आती रहती हैं। इस बार सरकार में शामिल 12 कांग्रेस विधायक मंत्री पद ना मिल पाने के कारण नाराज हो गए हैं और इनमे से 9 विधायक दिल्ली जाकर अपने आलाकमान से मिलने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि इन नाराज विधायकों से अब तक किसी ने मुलाकात तो नहीं की है, फिर भी वे लोग दिल्ली में ही बैठे हैं। ताजा खबर ये भी है कि इन्हें खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ेगा। आलाकमान से निर्देश मिला है कि विधायकों का सम्मान बना रहे, इसके लिए उन्हें संगठन में बड़ा पद या बोर्ड -निगम में स्थान दिया जा सकता है।
आपको बता दें कि अभी कुछ दिन पहले ही जैसे-तैसे करके झारखंड की सरकार को बचाया गया है। हुआ ये कि निवर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जब एहसास हो गया कि वे जेल जाने वाले हैं तो उन्होंने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी देने का निर्णय ले लिया था। ठीक वैसे ही जैसे बिहार में लालू यादव ने किया था। कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने के लिए गांडेय के विधायक डॉ सरफराज अहमद से इस्तीफा भी ले लिया गया,ताकि जरूरत पड़ने पर कल्पना सोरेन को चुनाव लड़वाया जा सके। कल्पना सोरेन के नाम की सिर्फ घोषणा ही बची थी, लेकिन इसी बीच हेमंत सोरेन के भाई (बसंत सोरेन) और भाभी (सीता सोरेन) नाराज हो गए और विरोध पर उतर आए। सीता सोरेन का कहना था कि सोरेन परिवार की बड़ी बहू होने के नाते मुख्यमंत्री उन्हें ही बनना चाहिए। मामला हाथ से निकलता देख हेमंत सोरेन ने दूसरी चाल चली और पार्टी के सबसे पुराने और वफादार नेता चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे कर दिया, लेकिन सीता सोरेन को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया। शायद उन्हें इस बात का डर था कि सीता सोरेन मुख्यमंत्री बन जाती हैं तो पार्टी पर उनकी पकड़ ढीली हो सकती है। और इस तरह चम्पई सोरेन का भाग्य चमका और मुख्यमंत्री बन गए।
इसके बाद लगने लगा कि सबकुछ ठीकठाक हो गया है । चंपई सोरेन ने विधानसभा में बहुमत भी सिद्ध कर दिया। इसके बाद नए मंत्रिमंडल का गठन भी हुआ। इसमें कांग्रेस के 3 विधायक मंत्री बने। ये तीनों हेमंत सरकार में भी मंत्री थे। उधर कांग्रेस के विधायकों को लग रहा था कि नए मंत्रिमंडल में नए लोगों को मौका मिलेगा, लेकिन उनका सपना धरा का धरा ही रह गया। गुस्साए कांग्रेसी खुलकर सरकार के विरोध में बोलने लगे। कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय के दावे तो बहुत हैं। उन्हें लग रहा था कि इस बार मंत्री बन ही जाएंगी। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नही। इसके बाद कांग्रेस के 12 विधायक इतने नाराज हुए कि उन्होंने दिल्ली की उड़ान पकड़ ली।
बता दें वर्तमान में झामुमो के पास कुल 29 विधायक हैं। वहीं कांग्रेस के पास 17 और आरजेडी के पास एक विधायक है। कुल मिलाकर महागठबंधन सरकार के पास विधायकों की संख्या 47 है। वाम दल के विधायक विनोद सिंह का समर्थन भी महागठबंधन को प्राप्त है। इधर कांग्रेस के 17 विधायकों मे से 12 विधायक नाराज होकर दिल्ली में बैठे हैं। खबर ये भी है कि अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो ये लोग दिल्ली से जयपुर चले जाएंगे और आगे की रणनीति वहीं से तय करेंगे।
सिर्फ इतना ही नहीं, कांग्रेस के साथ-साथ लातेहार के झामुमो विधायक बैद्यनाथ राम भी नाराज हो चुके हैं। इनका मंत्री बनना तय हो गया था। राजभवन को उनका नाम भी प्रेषित कर दिया गया था, लेकिन अंतिम समय में कांग्रेस की तरफ से इस पर आपत्ति की गई। संदेश दिया गया कि 12वां मंत्री का पद पूर्व से ही रिक्त है इसीलिए ये अभी भी रिक्त ही रहेगा। इस पर निर्णय लेने के लिए आपस में सहमति अनिवार्य है। कांग्रेस की आपत्ति को देखते हुए झामुमो के शीर्ष नेतृत्व ने प्रस्ताव वापस ले लिया। इसे लेकर बैद्यनाथ राम भी अपनी नाराजगी प्रकट कर चुके हैं।उन्होंने भी सरकार को जल्द से जल्द इस पर फैसला लेने की धमकी दी है।
कुल मिलाकर झारखंड में एक बार फिर से चंपई सरकार पर संकट के बादल छाने लगे हैं। कांग्रेस के कुल 17 में से 12 विधायक अगर बिदक कर भाजपा के पाले में चले जाते हैं कांग्रेस टूट सकती है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा क्योंकि ये संख्या दो तिहाई हो जाती है।
अब देखना ये है कि चंपई सरकार इन 12 विधायकों को मना पाती है या नहीं या फिर एक बार फिर से झारखंड में सियासी उथल पुथल देखने को मिलेगी? सवाल यह भी है कि अगर मंत्रिमंडल में पहले से शामिल विधायकों को हटाया जाए तो वे नाराज नहीं होंगे क्या ? इसके बाद अगर वे लोग नाराज होते हैं तो भी नाराज विधायकों की संख्या 12 की ही बनी रहेगी। अब इस समीकरण को चंपई सोरेन किस तरह से साधते हैं ये देखने वाली बात होगी।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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