अकड़ ढीली, पकड़ सख्त

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Ambuj Bharadwaj and SHIVAM DIXIT

उत्तराखंड सरकार पूरे प्रदेश में सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए अभियान चला रही है। इसी कड़ी में 8 फरवरी को हल्द्वानी के बनभूलपुरा में तीन एकड़ जमीन से अवैध कब्जा हटाया गया। बनभूलपुरा, जिसे मलिक का बगीचा भी कहा जाता है, में इस भूखंड पर मुसलमानों ने अवैध कब्जा कर रखा था और प्लॉटिंग करके जमीन बेच भी रहे थे।

हल्द्वानी में 8 फरवरी को सरकारी जमीन से अवैध कब्जा हटाने के दौरान मजहबी कट्टरपंथियों द्वारा किए गए हमले, तोड़फोड़ और आगजनी के बाद उत्तराखंड सरकार ने जिस सख्ती से उनसे निपटा है, उससे उपद्रवियों के कस-बल ढीले हो गए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दंगाइयों द्वारा महिला पुलिस व पत्रकारों को निशाना बनाने, देवभूमि का स्वरूप व माहौल बिगाड़ने के प्रयासों को गंभीरता से लिया है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि इस तरह की हरकतों को सहन नहीं किया जाएगा। यही नहीं, संपत्तियों के नुकसान की भरपाई भी उपद्रवियों से की जाएगी।

हल्द्वानी के बनभूलपुरा में मुस्लिम दंगाइयों को रोकने का प्रयास करते पुलिसकर्मी
उत्तराखंड सरकार ने हिंसा पर तत्काल नियंत्रण ही नहीं किया, बल्कि मुस्लिम दंगाइयों की धर-पकड़ भी शुरू कर दी। हमले में गंभीर रूप से घायल अजय और उसके परिजन (नीचे दाएं)

उत्तराखंड सरकार पूरे प्रदेश में सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए अभियान चला रही है। इसी कड़ी में 8 फरवरी को हल्द्वानी के बनभूलपुरा में तीन एकड़ जमीन से अवैध कब्जा हटाया गया। बनभूलपुरा, जिसे मलिक का बगीचा भी कहा जाता है, में इस भूखंड पर मुसलमानों ने अवैध कब्जा कर रखा था और प्लॉटिंग करके जमीन बेच भी रहे थे। नगर निगम और प्रशासनिक अधिकारियों की टीम पुलिस बल के साथ जब अतिक्रमण हटाने पहुंची, तो बड़ी संख्या में जिहादियों ने उन पर हमला कर दिया। लेकिन हमले के बीच नगर निगम ने अवैध मदरसे को गिरा दिया।

‘देवभूमि को ‘दैत्यभूमि’ नहीं बनने देंगे’

हल्द्वानी हिंसा पर विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय महामंत्री मिलिंद परांडे ने कहा कि देवभूमि में ‘दैत्यों के आतंक’ को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय की अनुपालना और स्थानीय शासन-प्रशासन के कार्यों में बाधा पहुंचाते हुए ड्यूटी पर तैनात महिला पुलिसकर्मियों के साथ थाने को घेर जो जानलेवा हमला किया गया, उससे पूरा देश स्तब्ध है। अब समय या गया है कि इन देश विरोधी हिंसक जिहादियों और उनके पैरोकारों के विरुद्ध ऐसी कार्रवाई हो कि इनकी आने वाली पीढ़ियां भी हिंसा, उपद्रव या किसी प्रकार की तोड़-फोड़ के बारे में सोच भी न सकें। कुछ विदेशी मीडिया तथा कुछ मुस्लिम नेता दुष्प्रचार कर अपराधी तत्वों की ढाल बन कर भारत की छवि धूमिल करने में जुटे हुए हैं। इनके विरुद्ध भी यथोचित कार्रवाई होनी चाहिए।

हिंसा में शामिल लोग कौन थे? वे कहां से आए? उन्हें कौन-कौन उकसा रहा था? कौन-कौन भ्रम फैलाकर हिंसा को बढ़ावा दे रहा था, उन सभी की पहचान कर सबक सिखाना जरूरी है। साथ ही, श्री परांडे ने मुस्लिम समुदाय को उन्हें भड़काने वाले नेताओं से सतर्क रहने की अपील की। उन्होंने कहा कि जिहादियों की पैरोकारी करने वाले नेता उनके समाज को आत्मघाती रास्ते पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे समुदाय को सावधान रहना होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा संकल्प है कि देवभूमि उत्तराखंड को किसी भी कीमत पर हम ‘दैत्यभूमि’ नहीं बनने देंगे।’’

घायलों की सेवा में जुटे संघ कार्यकर्ता

गोसेवक और बजरंग दल के पूर्व पदाधिकारी जोगेंद्र राणा ने बताया कि जब दंगाई हमला कर रहे थे, तो हिंदू ही रक्षा के लिए आगे आए। गांधीनगर में रहने वाले वाल्मीकि समाज ने मोर्चा संभाला और घायल महिला पुलिसकर्मियों व अन्य लोगों को अपने घर में संरक्षण दिया। इसके अलावा, वाल्मीकि समाज ने कट्टरपंथी दंगाइयों को भी खदेड़ा। दूसरी तरफ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, बजरंग दल के कार्यकर्ता और गोसेवक अस्पताल में घायलों की सेवा में जुटे हुए थे। वे जरूरतमंद लोगों के लिए रक्तदान भी कर रहे थे।

उधर, निगमकर्मी अतिक्रम हटा रहे थे, इधर कट्टरपंथियों की भीड़ लगातार बढ़ रही थी। इसके बाद उग्र भीड़ ने पथराव शुरू कर दिया। इनमें मुस्लिम बच्चे और बुर्का पहने महिलाएं सबसे आगे थीं। उनके पीछे युवा-पुरुष और सबसे पीछे बुजुर्ग थे। जिहादियों की भीड़ ने निगम के अधिकारियों, पुलिसकर्मियों और घटना की कवरेज करने पहुंचे पत्रकारों को निशाना बनाया। इसके बाद पुलिस ने जवाबी कार्रवाई कर हमलावरों को खदेड़ दिया। लेकिन कार्रवाई के बाद जब प्रशासन एवं अधिकारी लौट रहे थे, तो उग्र भीड़ ने फिर से पथराव शुरू कर दिया।

इस बार हमला पहले से तेज था। चारों तरफ से पत्थरों की बरसात हो रही थी। घर की छतों से भी पत्थर फेंके जा रहे थे। इस हमले में दर्जनों पुलिसकर्मी, निगम के कर्मचारी, कुछ अधिकारी और पत्रकार गंभीर रूप से घायल हो गए। दंगाइयों ने कई वाहनों में आग लगा दी। जगह-जगह सार्वजानिक संपत्ति को तोड़कर जलाया और मार्गों को अवरुद्ध कर दिया। इसके बाद स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जिलाधिकारी ने कर्फ्यू लगा दिया।

हिंसा भड़काने में पाकिस्तान का हाथ!

हल्द्वानी में हिंसा में पाकिस्तान का हाथ होने के सबूत मिले हैं। खुफिया एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हिंसा पूर्व नियोजित थी। हिंसा भड़काने के लिए दंगाइयों के पास पर्याप्त सामग्री तो थी ही, पाकिस्तान ने भी टूल किट तैयार किया था। पाकिस्तान के कुछ ‘बॉट अकाउंट्स’ हल्द्वानी हिंसा को सांप्रदायिक रंग देकर देश का माहौल बिगाड़ने में लगे हुए थे। पाकिस्तान की ओर से आसिफ मंसूरी, मोहम्मद सलमान पॉलीटिकलैस नाम से बॉट ट्विटर अकाउंट बनाए गए थे। इसके अलावा हिंसा के तुरंत बाद से पाकिस्तान की ओर से 9 हैशटैग का भी इस्तेमाल किए जाने लगा। रिपोर्ट के अनुसार, जिन 9 हैशटैग का इस्तेमाल किया गया, उसमें हल्द्वानी राइट्स, हल्द्वानी वायलेंस, हल्द्वानी, हल्द्वानी इज बर्निंग, उत्तराखंड, बरेली, हल, हल्द्वानी न्यूज सहित स्टॉप टारगेटिंग इंडियन मुस्लिम पाकिस्तान शामिल थे। इन बॉट अकाउंट के माध्यम से माहौल बिगाड़ने के लिए दूसरे जगहों की हिंसा की तस्वीरों को हल्द्वानी का बता कर साझा किया जा रहा था। अफवाह फैलाने में पाकिस्तान में ही बने अरकाम और आलम शेख के नाम अकाउंट भी शामिल थे।

दंगे में घायल पुलिसकर्मी

पुलिस अभी तक 36 उपद्रवियों की पहचान कर उन्हें जेल भेज चुकी है। इसके अलावा, 41 शस्त्र धारकों के लाइसेंस निरस्त करके शस्त्र थाने में जमा कर अतिक्रमण स्थल पर एक नई पुलिस चौकी की स्थापना कर दी गई है। वीडियो फुटेज के अलावा सर्विलांस के जरिए भी आरोपियों की पहचान की जा रही है। पुलिस के आईटी विभाग की एक पूरी टीम हिंसा प्रभावित क्षेत्र में सक्रिय मोबाइल नंबरों की छंटनी कर रही है। जानकारी के अनुसार, बनभूलपुरा के 26,000 से अधिक मोबाइल नंबर पुलिस की रडार पर हैं। बताया जा रहा है कि इनमें लगभग 7 हजार हिंसा वाले दिन सक्रिय थे।

मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक

बताया जा रहा है कि इस हिंसक प्रदर्शन का मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक है। उसी के उकसावे पर अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई के खिलाफ बनभूलपुरा क्षेत्र में बड़ी संख्या में मुसलमान विरोध जताने पहुंचे थे। यह वही व्यक्ति है, जो सरकारी जमीन की प्लॉटिंग करके बेच रहा था। इसकी शिकायत हुई तो जिला प्रशासन ने मामले की जांच के बाद इस स्थान को खाली करवा कर अपने कब्जे में ले लिया था। साथ ही, यहां भू-माफिया द्वारा बनाए गए अवैध मदरसे को दो दिन में स्वयं हटाने के लिए कहा था। लेकिन तय समयसीमा में अतिक्रमण नहीं हटा, तो प्रशासन ने नोटिस चस्पा कर मदरसे को सील कर दिया था। अतिक्रमणकारी इसके खिलाफ नैनीताल उच्च न्यायालय गए, लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली।

हल्द्वानी के नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने बताया कि बनभूलपुरा में सरकारी भूमि पर बहुत पहले से अतिक्रमण चल रहा था। लेकिन पांच वर्ष पहले से जो अवैध निर्माण किए गए, उसके लिए किसी प्रकार की अनुमति नहीं ली गई। ‘मलिक का बगीचा’ की जमीन को अब्दुल मलिक पचास-पचास रुपये के स्टांप पेपर पर बेच रहा था। यह जमीन बागवानी विभाग की है, जिसे 90 वर्ष के लिए पट्टे पर दिया गया था। लेकिन पट्टे की अवधि खत्म होने के बाद अब्दुल मलिक ने इस पर अवैध कब्जा कर इसकी प्लाटिंग कर रहा था। वास्तव में इस जमीन की न तो लीज बढ़वाई गई और न ही फ्री होल्ड कराया गया।

उन्होंने बताया कि कुछ माह पहले पूर्व पार्षद हितेश पांडेय ने दिसंबर 2023 में इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की थी, जिस पर न्यायालय ने जिला प्रशासन को फटकार लगाई थी। इसके बाद जिला प्रशासन ने जमीन को अपने कब्जे में ले लिया था। इसके बाद अतिक्रमण हटाने के लिए प्रशासन ने कार्रवाई की। उन्होंने बताया कि उपद्रवियों ने पथराव और आगजनी कर हमारी जेसीबी सहित कई वाहनों को जला दिया।

अब्दुल मलिक के समर्थकों ने निगम की 2.44 करोड़ रुपये की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया है। नुकसान की जांच के लिए एक कमेटी गठित की गई है और रिपोर्ट आने के बाद ही वास्तविक नुकसान का पता चलेगा। नगर निगम के अलावा, मीडिया, पुलिस प्रशासन एवं अन्य निजी संपत्तियों को भी क्षति पहुंचाई गई है। सभी विभाग अपने-अपने नुकसान का मूल्यांकन कर रहे हैं। इसकी भरपाई दंगाइयों से की जाएगी। फिलहाल, इस मामले में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर अब्दुल मलिक को 15 फरवरी तक 2.44 करोड़ रुपये जमा कराने को कहा गया। उन्होंने कहा कि रुपये जमा नहीं करने पर नियमानुसार वसूली की कार्रवाई की जाएगी।

हिंसाग्रस्त इलाके में बनभूलपुरा पुलिस थाने के पास आगजनी की तस्वीर\

हिंदुओं को निशाना बना रहे थे दंगाई

दंगाई चुन-चुन कर हिंदुओं को मार रहे थे। हिंसा में घायल पत्रकार अतुल अग्रवाल ने बताया, ‘‘दंगाई पत्रकारों को पकड़ कर उनका नाम पूछ रहे थे, उनका पहचान-पत्र देख रहे थे। वे मुस्लिम पत्रकारों को छोड़ रहे थे, पर हिंदू पत्रकारों को दौड़ा-दौड़ा ईंट-पत्थरों से मार रहे थे। हमारे साथ बहुत क्रूरता की गई। हिंदू पत्रकारों को छोड़कर किसी अन्य समुदाय के पत्रकारों को खरोंच तक नहीं आई है। हल्द्वानी के अस्पतालों में जाकर देखेंगे, तो आपको एक भी मुस्लिम पत्रकार घायल नहीं मिलेगा। अस्पतालों में गंभीर रूप से घायल हिंदू पत्रकार ही भर्ती मिलेंगे।’’

अतुल ने बताया कि पिछले वर्ष जब रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जे का मामला सामने आया था, तो उस समय स्थानीय पत्रकारों ने ‘लाचार’ समझ कर मुसलमानों का साथ दिया था। लेकिन उन्होंने हमारे साथ जो किया, उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। अगले ही पल वह सवालिया अंदाज में बोले, ‘‘उनकी लड़ाई शासन-प्रशासन से थी, हमारे ऊपर हमला करने का तो कोई मतलब ही नहीं था। जो कह रहे हैं कि ये लोग मासूम हैं, इन्हें जान-बूझकर निशाना बनाया जा रहा है, वे लोग हल्द्वानी आते और अपनी आंखों से इस घटना को देखते तब पता चलता कि ये कितने क्रूर हैं। वे बिना सुरक्षा के इनके बीच जाकर पड़ताल करने का प्रयास करें या कवरेज करके दिखा दें।’’

एक अन्य स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार पंकज भी जिहादियों के हमले में घायल हुए थे। उन्होंने बताया कि ‘‘उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ही नगर निगम की टीम सरकारी भूमि पर बने अवैध निर्माण को तोड़ने गई थी। मैं भी समाचार कवरेज के लिए बनभूलपुरा पहुंचा। शुरुआत में कुछ लोगों ने हो-हल्ला किया, लेकिन प्रशासन और नगर निगम की टीम अपना काम करती रही। जब अवैध निर्माण को ध्वस्त हो गया, तो पहले से तैयार कट्टरपंथियों ने अचानक पथराव शुरू कर दिया। हम कुछ समझ पाते, तब तक हमले तेज हो गए। ऐसा लग रहा था कि आसमान से पत्थरों की बरसात हो रही है। थोड़ी देर बाद दंगाई हमारे ऊपर पेट्रोल बम फेंकने लगे।’’

पंकज ने बताया कि दंगाइयों ने उन प्लास्टिक की बोतलों को हथियार बनाया था, जिन्हें इस्तेमाल के बाद हम फेंक देते हैं। वे तमंचे-कट्टे और धारदार हथियारों से लैस थे और लगातार फायरिंग कर रहे थे। वे वाहनों को आग लगा कर भागने के सभी रास्ते बंद कर रहे थे। इन दंगाइयों में बच्चे, युवा और बुजुर्ग ही नहीं, महिलाएं भी शामिल थीं। अधिकांश महिलाएं बुर्के में थीं। लग रहा था, जैसे उन्होंने पत्थरबाजी का प्रशिक्षण ले रखा हो। इस दौरान दंगाई ‘अल्लाह हू अकबर’ और ‘सर तन से जुदा’ जैसे भड़काऊ नारे लगा रहे थे। कट्टरपंथियों ने दो लोगों को बिल्कुल नजदीक से गोली मारने की कोशिश की, लेकिन तमंचे ने साथ नहीं दिया। अगर उस समय गांधीनगर के हिंद नहीं आए होते, तो किसी का भी जिंदा निकलना असंभव था। दंगे के समय गांधीनगर के हिंदू देवदूत बनकर आए, तब जाकर सभी की जान बच सकी।

आंखों देखा हाल

‘पाञ्चजन्य’ की टीम ने बनभूलपुरा में हर तरफ पत्थर, पेट्रोल बम में प्रयुक्त बोतलें और जले हुए वाहन देखे। जगह-जगह गलियों को अवरुद्ध किया गया था। यह सब देख कर सहज अनुमान लगाया जा सकता था कि दंगाइयों ने पूरी व्यवस्था कर रखी थी कि उन गलियों में फंसे लोग बाहर न निकल सकें। हिंसाग्रस्त इलाके में रहने वाले कुछ लोगों ने बताया कि इस हमले की तैयारी कई दिनों से थी। क्षेत्र के लोगों ने बताया कि जिस पानी की बोतल को हम उपयोग के बाद फेंक देते हैं, उन बोतलों का इस्तेमाल पेट्रोल बम बनाने में किया गया। एक पुलिसकर्मी ने बताया कि दंगाइयों ने थाने पर पत्थराव किया और पेट्रोल बम फेंक कर हमें जिंदा जलाने की कोशिश की। एक चश्मदीद दीपांशु ने बताया, ‘‘बहुत भयावह दृश्य था। दंगाई छतों से पत्थर बरसा रहे थे। उन्होंने पानी की टंकी में पत्थर छिपा रखे थे, इसलिए प्रशासन द्वारा कराए गए ड्रोन सर्वेक्षण में पत्थर नहीं दिखे। हमले में एक महिला कांस्टेबल बुरी तरह घायल हो गई थी। वह रो रही थी।’’

उपद्रवियों के पथराव के दौरान बचने का प्रयास करते पुलिसकर्मी

हिंसा में घायल पत्रकारों, पुलिसकर्मियों और नगर निगम कर्मचारियों से बातचीत के दौरान चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। पाञ्चजन्य की टीम दंगाइयों के हमले में घायल लोगों से मिली। इनमें से एक था 22 वर्षीय अजय। वह मां के लिए दवा लाने के लिए निकला था। लेकिन दंगाइयों ने उसे गोली मारी, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। उसकी हालत चिंताजनक बनी हुई है। अस्पताल में अजय की मां तारा देवी और छोटा भाई अभिषेक रो-रो कर यही पूछ रहे थे कि अजय ने दंगाइयों का क्या बिगाड़ा था, जो उसे गोली मार दी।

पत्रकार मनोज

घायल पत्रकार मनोज ने बताया, ‘‘जिहादियों की भीड़ ने प्रशासन, नगर निगम और पत्रकारों को चारों तरफ से घेर कर पथराव किया। दंगाई हम पर पेट्रोल बम भी फेंक रहे थे। बचने के लिए हम जिधर भी भागते, उधर से ही पथराव और आगजनी होने लगती थी। दंगाइयों ने हमारा मोबाइल और कैमरा भी तोड़ दिया, ताकि उनकी करतूतों का कोई सबूत न रहे। वे धारदार हथियारों और तमंचे-कट्टे से अंधाधुंध फायरिंग कर रहे थे। हमारे साथ महिला पुलिसकर्मी भी थीं, जो बचने के लिए एक घर में छिप गईं थीं। लेकिन उत्पाती भीड़ ने उन्हें देख लिया और उन्हें जिंदा जलाने का प्रयास किया। जैसे-तैसे हम सबने भागकर अपनी जान बचाई।’’

मुकेश कई वर्षों से स्थानीय पत्रकारिता कर रहे हैं। हमारी टीम ने उनसे जानना चाहा कि कि बनभूलपुरा में मुसलमानों की घनी बसावट कैसे और कब से है? ये लोग कहां से आए हैं? इस पर मनोज ने कहा, ‘‘ये कहां से आए हैं, यह तो वही लोग जानते हैं। इतना जरूर है कि यदि ठीक से जांच की गई तो इसमें अधिकांश बांग्लादेशी और रोहिंग्या ही मिलेंगे। ये धीरे-धीरे यहां बसते चले गए। जिस जमीन पर ये बसे हुए हैं, वह जमीन भी पंजीकृत नहीं है। उनके पास मात्र 50 रुपये का पट्टा है, जो उन्हीं लोगों ने उपलब्ध कराया है, जिन्होंने इन लोगों को यहां बसाया है। वही लोग इन्हें आधार कार्ड, पैन कार्ड, राशन कार्ड सहित अन्य दस्तावेज उपलब्ध कराते हैं। फिलहाल यह जमीन नगर निगम की है।’’

शातिर अपराधी है मलिक

इस हिंसा का मास्टरमाइंड हाजी अब्दुल मलिक फरार है। पुलिस लगातार उसकी तलाश में दबिश दे रही है। अब्दुल पुराना हिस्ट्री शीटर है। वह हत्या जैसे अपराध में जेल भी जा चुका है। 26 वर्ष पहले सपा नेता अब्दुल मतीन सिद्दिकी के छोटे भाई रऊफ सिद्दिकी की हत्या के मामले में मलिक की गिरफ्तारी के समय भी कट्टरपंथियों ने उपद्रव किया था और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया था। उस पथराव और आगजनी में कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे।

19 मार्च, 1998 को अब्दुल रुऊफ सिद्दिकी की बरेली के भोजीपुरा थाना क्षेत्र में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। इस हमले में उसके दो साथी चंद्रमोहन सिंह और त्रिलोक भी घायल हुए थे। इस हत्याकांड में अब्दुल मलिक सहित 7 लोगों को नामजद किया गया था। लेकिन सत्ता में उसकी पहुंच थी, इसलिए मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी गई। लेकिन आगे सीबीसीआईडी जांच के आदेश को ही निरस्त कर दिया गया। इसके बाद अब्दुल मलिक सहित सभी आरोपी, जो भूमिगत थे, हल्द्वानी आ गए। तब तत्कालीन एसएसपी नासिर कमाल के आदेश पर उसे गिरफ्तार किया गया। ईद के दूसरे दिन जब पुलिस ने अब्दुल मलिक को गिरफ्तार किया तो उसके समर्थकों ने पुलिस पर हमला किया, जिसमें तत्कालीन सिटी एसपी पुष्कर सैलाल सहित कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। अब्दुल मलिक के सत्ता में रसूख का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हरियाणा के सूरजभान जब उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बनने के बाद पहली बार प्रदेश में आए थे, तो उनके साथ हेलीकॉप्टर में अब्दुल मलिक भी था।

हल्द्वानी को जिहादी आग में झोंकने वालों के विरुद्ध हो रही है कड़ी कार्रवाई। अब तक 36 दंगाइयों को भेजा गया है जेल। फरार मुख्य आरोपी अब्दुल मलिक की संपत्ति कुर्ककरने की तैयारी। सरकार का कहना है कि दंगाइयों को ऐसा सबक सिखाया जाएगा कि उनकी सात पुश्तें भी प्रशासन पर हमला नहीं कर पाएंगी

तेज होता अतिक्रमण विरोधी अभियान

अब तक उत्तराखंड में हजारों एकड़ वन भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है। इस दौरान हुए कुछ छिटपुट विरोध और तनाव को छोड़ दें, तो प्रशासनिक दल को विशेष उग्र विरोध और हिंसा का सामना नहीं करना पड़ा है। लेकिन हल्द्वानी में पहले से सील हो चुकीं दो जगहों पर अवैध कब्जा हटाने पर हिंसा हुई। उत्तराखंड में वन विभाग की जमीन पर बड़े स्तर पर अतिक्रमण गया गया है। कई जगहों पर मजहबी ढांचे खड़े कर दिए गए, जहां बाहरी लोगों का आना-जाना लगा रहता था। लेकिन वन विभाग आंखें मूंदकर बैठा रहा। पिछले साल अप्रैल में सरकार ने अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। इसके बाद पूरे प्रदेश में एक साथ अभियान शुरू किया गया। इस अभियान के तहत वन विभाग 3,458 एकड़ और ऊर्जा विभाग 586 एकड़ जमीन से अवैध कब्जे हटा चुका है। साथ ही, 700 करोड़ रुपये की शत्रु संपत्ति के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है।

सुनियोजित था हमला

अधिकारियों और स्थानीय लोगों के अनुसार, कट्टरपंथियों ने हिंसा की योजना 29 जनवरी के बाद बनाई थी। इस क्रम में सबसे पहले बनभूलपुरा के लोगों के मन में प्रशासन के खिलाफ नफरत के बीज बोने का काम शुरू किया गया। जिस दिन हिंसा हुई, उस दिन अवकाश नहीं होने के बावजूद जिस तरह अचानक दंगाइयों की भीड़ जुटी, उससे भी साफ है कि हिंसा की योजना पहले बनाई गई थी। हिंसा के मास्टरमाइंड को इस बात का पूरा अनुमान था कि अभी प्रदेश का माहौल बहुत संवेदनशील है। इसलिए विरोध को ज्यादा हवा मिलेगी। पुलिस अधिकारियों को आशंका है कि योजना के तहत अधिक से अधिक संख्या में बाहर से लोगों को बुलाया गया। इसके लिए व्हाट्सएप का इस्तेमाल किया गया।

पुलिस साइबर विशेषज्ञों की मानें तो क्षेत्र में रहने वाले कई मुस्लिम युवा उस दिन दोपहर में ही अपने काम से घर आ गए थे। अचानक से व्हाट्सएप सहित कई सोशल साइट्स पर एक ही प्रकार के कई समूह सक्रिय हुए और तेजी के साथ संदेश वायरल होने लगे। ‘शाम को मिलने के लिए ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंचने’ का संदेश भी वायरल हुआ, जिसका प्रमाण साइबर टीम को मिल गया है। साइबर जांच में यह भी पता चला है कि इलाके से बाहर के नंबर भी अचानक बढ़ने लगे थे। ऐसे सक्रिय मोबाइल नंबरों की अनुमानित संख्या लगभग 7,000 थी। अब इन्हीं नंबरों को खंगालने के बाद संबंधित लोगों की पहचान की जा रही है।

पेट्रोल बम बनाने में माहिर लोग कैसे मौके पर पहुंचे, इस पहलू की भी जांच की जा रही है। उन्हें पहचानने की कोशिश की जा रही है। जानकारी मिली है कि बनभूलपुरा थाने पर प्रशिक्षित युवाओं के एक गिरोह ने पेट्रोल बम से हमला किया। इन्हीं लोगों ने वहां खड़े दोपहिया वाहनों में आग लगाई। जांच अधिकारियों को आशंका है कि इसमें शहर के कुछ कबाड़ियों की भी भूमिका हो सकती है। पुलिस की टीम शहर के दंगाग्रस्त क्षेत्र की सीसीटीवी फुटेज भी खंगाल रही है। उसे दंगाइयों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं। इस बीच, जांच आगे बढ़ाने के लिए प्रशासन ने अर्द्धसैनिक बल की चार कंपनियां बुलाई हैं, जो घर-घर तलाशी लेंगी। इसलिए आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियां संभव हैं।

अंबुज भारद्वाज
एवं
शिवम दीक्षित,
हल्द्वानी से लौटकर

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