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एक राम,अनेक आयाम

भगवान राम के गुणों, उनके संदेश को दुनिया समझने का प्रयास कर रही है। प्रभु श्री राम का नाम कूटनीतिक महानायक के रूप में भी सामने आ रहा है। यह कालखंड भारतीय कूटनीति को नई ऊर्जा देने वाला साबित होगा।

by नन्दिनी जावली
Feb 19, 2024, 08:12 am IST
in भारत, विश्लेषण, उत्तर प्रदेश, धर्म-संस्कृति
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अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समय दुनिया के अनेक देशों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और समस्त भारतीयों को शुभकामना संदेश भेजे। यह भारतीय कूटनीति के लिए बड़ी शुभ घड़ी है

नन्दिनी जावली

राम मंदिर के उद्घाटन के बाद पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति को एक नए रूप में जानने-समझने का दौर आरंभ हो गया है। भगवान राम के गुणों, उनके संदेश को दुनिया समझने का प्रयास कर रही है। प्रभु श्री राम का नाम कूटनीतिक महानायक के रूप में भी सामने आ रहा है। यह कालखंड भारतीय कूटनीति को नई ऊर्जा देने वाला साबित होगा।

भारतीय सांस्कृतिक गहराई की एक अनूठी छवि विश्व के सामने आ सकेगी। राम क्यों भारत के कण-कण में बसे हैं, भारतीयों के हृदय में सदियों बाद भी उनका साम्राज्य अमर है, राम शब्द की गहराई सरयू के जल से होकर कैसे दुनिया के समुद्रों को जोड़ रही है, उनका नाम संस्कृतियों के लिए एक सेतु है। विश्व के 60 से अधिक देशों में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए।

इस अवसर पर अनेक देशों के नेताओं और राजनयिकों के बधाई संदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीयों को प्राप्त हुए। किसी ने इसे भारत की सदी बताया, तो किसी ने भारतीय संस्कृति की पुरजोर सराहना की। दुनिया के लिए यह एक आश्चर्य की बात है कि हजारों वर्ष पहले अवतरित हुए राम के मंदिर का उत्सव पूरे भारत और विश्व के अनेक देशों में बसे भारतीयों के घरों में मनाया गया। भक्ति का ऐसा स्वरूप, जिसमें सच्ची श्रद्धा, प्रेम हो और लाखों लोग प्रभु राम का टेलीविजन पर अश्रुपूरित नेत्रों से दर्शन कर भाव-विह्वल हुए। यह भारतीय संस्कृति का बेहद उजला स्वरूप दुनिया को दिखला गया। कैसे भारत अपने मर्यादापुरुषोत्तम की सादगी, सहजता, स्नेह, वीरता और धैर्य के आगे नतमस्तक है। संसार के सर्वोत्तम गुणों की पराकाष्ठा है रामचरित्र और भारतीय जन-जन इसके आगे नतमस्तक है।

भारतीय अध्यात्म, दर्शन और संस्कृति में भगवान राम का अमिट, अटूट स्थान तो रहा ही है, अब राम भारतीय सांस्कृतिक कूटनीति का भी अहम अंग बन गए हैं। राम के प्रेम, भाईचारे, अपनत्व व सामाजिक सद्भाव के संदेश ने फिर से भारतीय संस्कृति को अनेक देशों की संस्कृतियों से जोड़ने का कार्य किया है। अयोध्या में राम मंदिर विभिन्न देशों के नागरिकों को जैसे निमंत्रण दे रहा है कि अयोध्या पधारिए और भारतीय जीवन-दर्शन में रचे-बसे राम के सिद्धांतों को आत्मसात करके पूरी दुनिया में फैलाइए।

हिंसा, युद्ध, संघर्ष के इस वैश्विक दौर में राम एक कूटनीतिक महानायक की तरह उभर कर दुनिया को जैसे सेदेश दे रहे हैं कि वार्ता से, विमर्श और समझौतों से समस्याओं का हल निकालिए। राम का जीवन दर्शन इन्हीं सिद्धांतों पर टिका था, सुग्रीव व विभीषण से मित्रता इसी आधार पर थी। रावण के साथ युद्ध से पहले राम ने शांति के कई प्रयास किए, हनुमान, अंगद शांति का संदेश लेकर ही रावण की सभा में गए थे। कूटनीति के हारने के बाद ही राम ने युद्ध आरंभ किया।

भारतीय अध्यात्म, दर्शन और संस्कृति में भगवान राम का अमिट, अटूट स्थान तो रहा ही है, अब राम भारतीय सांस्कृतिक कूटनीति का भी अहम अंग बन गए हैं। राम के प्रेम, भाईचारे, अपनत्व व सामाजिक सद्भाव के संदेश ने फिर से भारतीय संस्कृति को अनेक देशों की संस्कृतियों से जोड़ने का कार्य किया है। अयोध्या में राम मंदिर विभिन्न देशों के नागरिकों को जैसे निमंत्रण दे रहा है कि अयोध्या पधारिए और भारतीय जीवन-दर्शन में रचे-बसे राम के सिद्धांतों को आत्मसात करके पूरी दुनिया में फैलाइए।

अपने साम्राज्य से बाहर निकलकर राम जहां भी गए मित्रता के गहरे संबंध बनाए, सुग्रीव व विभीषण से उनकी मित्रता उदाहरण है इस संबंध के उच्च आदर्शों का। राम की निषादराज से दोस्ती, शबरी के लिए पुत्र समान निश्छल प्रेम, हनुमान जी से ऐसा स्नेह की दोनों के संबंधों ने शाश्वत रूप ही ले लिया, वानर सेना में शामिल सभी वानरों, भालुओं पर उनकी कृपा, जटायु, गिलहरी समेत सभी जीवों के प्रति समान भाव से स्नेह, उनके ये गुण रामलीलाओं, नृत्य नाटिकाओं, भित्ति-चित्रों में पूरे दक्षिण-पूर्वी एशिया में फैले हुए हैं। फिर चाहे थाईलैंड हो या इंडोनेशिया या वियतनाम इन सभी देशों में राम मंदिर बनने से भारत के साथ जुड़ने को लेकर उत्सुकता बढ़ी है। आने वाले दिनों में दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों से अयोध्या पहुंचने वाले धार्मिक पर्यटकों की संख्या निश्चित रूप से बढ़ेगी।

भारतीय उपमहाद्वीप के अलग-अलग देशों में भगवान राम के अयोध्या में विराजित होने पर मंदिरों में विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसमें नेपाल अपनी हिंदू जनसंख्या के कारण विशिष्ट रूप से राम उत्सव में सम्मिलित हुआ। इसके अलावा भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, मॉरीशस और अफगानिस्तान के नागरिकों ने भी भारतीयों के इस खास समारोह में किसी न किसी रूप में शामिल होकर अपनी सद्भावना व्यक्त की। अफगानिस्तान से भगवान राम के अभिषेक के लिए आया पवित्र जल दोनों देशों के अतीत में रहे घनिष्ठ संबंधों का ही प्रतीक है। इन सभी देशों में भगवान राम को लेकर जो श्रद्धा नजर आई, वह दर्शाती है कि भारतीय संस्कृति के सबसे अहम प्रतीक के रूप में राम, अनेक देशों से भारत को एक अटूट बंधन में जोड़े हुए हैं।

अयोध्या में श्री राम मंदिर की स्थापना ने सहज ही नेपाल और भारत के संबंधों को नई ऊंचाइयां दी हैं। पिछले कुछ वर्षों से दोनों देशों के रिश्तों में उतार-चढ़ाव देखा जाता रहा है। अब प्रभु राम ने भारत-नेपाल को न केवल नए सिरे से अपने गहरे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक संबंधों की याद दिलाई, है परंतु एक अटूट बंधन में बांध दिया है। नेपाल ने राम मंदिर के लिए काली गंडकी नदी तट से दो पवित्र शिालिग्राम शलाएं भिजवाई हैं, जो कि छह करोड़ साल पुरानी हैं। इसके साथ ही अपनी बेटी सीता माता का घर बसने की खुशी में बेटी को भेंट भिजवाई है। 3,000 से अधिक उपहार अर्पित किए हैं।

नेपाल के जनकपुर को भगवान राम की पत्नी सीता जी का जन्म स्थान माना जाता है। इसलिए नेपाल से बड़ी संख्या में लोग बेशकीमती आभूषण, वस्त्र, मिठाइयां, घर का संपूर्ण सामान लेकर अयोध्या आए। राम मंदिर ने अयोध्या और नेपाल के जनकपुर को पुन अतीत के गहरे संबंधों की याद दिलाकर, दोनों देशों के लोगों को फिर से एक-दूसरे से जोड़ दिया है। भारत-नेपाल के संबंध फिर से अपनी पुरानी मित्रता की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

अफगानिस्तान की कुभा (काबुल) नदी का पानी अयोध्या में राम मंदिर के लिए उपहार के रूप में भेजा गया है। श्रीलंका के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी अयोध्या का दौरा किया और राम जन्मभूमि को पौराणिक अशोक वाटिका से जुड़ी एक शिला भेंट की। सीता जी को रावण ने अशोक वाटिका में ही कैद करके रखा था। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पहले ब्रिटेन की संसद में भी श्रीराम के जयकारे गूंज उठे। ब्रिटेन की संसद में राम मंदिर के जश्न में शंख बजाए गए और हाउस आफ कॉमन्स के अंदर युगपुरुष की प्रतिमा भी लगाई गई।

अमेरिका में राम मंदिर को लेकर गजब का उत्साह देखा गया। वहां की सड़कों पर राम की तस्वीर वाले बड़े-बड़े बोर्ड लगाए गए।
यह मात्र संयोग नहीं है कि जहां एक ओर अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बन गया है, वहीं मुस्लिम देश संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) की राजधानी अबू धाबी में भी पश्चिम एशिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर लोकार्पित हुआ है। यू.ए.ई. की सरकार ने अबू धाबी में मंदिर के लिए जमीन दान की और वहां के शासकों ने इसको बनाने में पूरा सहयोग दिया। भारत और यू.ए.ई. के बीच सद्भाव के प्रतीक के तौर पर इस मंदिर का निर्माण हुआ है।

अयोध्या में हुई प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर यू.ए.ई. से बधाई संदेशों का आना और अब अबू धाबी में हिंदू मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाना, दोनों देशों के बीच एक नए सांस्कृतिक युग का सूत्रपात कर रहा है। हिंदू-मुस्लिम सद्भाव की यह मिसाल, भारतीय कूटनीति की बड़ी सफलता है। यह मंदिर यू.ए.ई. में बसे करीब चालीस लाख भारतीय मूल के लोगों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है और दोनों देशों के संबंधों को प्रगाढ़ करने में मील का पत्थर साबित होगा। अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, यूरोप के अन्य देश, मध्य-पूर्व, समेत अनेक देशों में राम नाम की गूंज रही। राम एक बार फिर संस्कृतियों को जोड़ रहे हैं, दुनिया को सह अस्तित्व का संदेश दे रहे हैं। सब को साथ लेकर चलना और सारे भेदभाव खत्म करना, उनके नाम का प्रताप है।

एक ओर जहां राम, भारत को एकता के सूत्र में पिरो रहे हैं, वहीं दुनिया को भी साथ-साथ चलने का संदेश दे रहे हैं।
राम की पावन कथा रामायण के भारत में अनेक भाषाओं में अनुवाद मिलेंगे। बौद्ध और जैन रूपांतरणों के अलावा भारतीय भाषाओं में रामायण के कई संस्करण हैं। रामायण के कम्बोडियाई, इंडोनेशियाई, फिलिपीनो, थाई, लाओ, बर्मी, नेपाली, मालदीव, वियतनामी, तिब्बती, चीनी और मलय संस्करण भी हैं।

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