हिंसक 'किसान आंदोलन' के निहितार्थ
May 8, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम विश्लेषण

हिंसक ‘किसान आंदोलन’ के निहितार्थ

लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही 'किसान' एक बार फिर से सड़कों पर उतर आए हैं। वे दिल्ली को घेरने का इरादा रखते हैं। पंजाब से दिल्ली आ रहे किसान हरियाणा में पुलिस से जगह-जगह भिड़ रहे हैं। किसानों का 'दिल्ली चलो' मार्च हिंसक हो रहा है या किया जा रहा है और अराजकता पैदा करने की कोशिश हो रही है। यह सारा देश देख रहा है। कितनी वाजिब हैं किसानों की मांगे?

by आर.के. सिन्हा
Feb 15, 2024, 06:46 pm IST
in विश्लेषण
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

मरने–मारने के अंदाज में ‘किसान’ एक बार फिर से सड़कों पर उतर आए हैं। चुनावी माहौल गर्म होते ही वे दिल्ली को घेरने के इरादो पर डटे दिखते हैं। पंजाब से दिल्ली आ रहे ‘किसान’ हरियाणा में पुलिस से जगह-जगह पर बिना किसी बात के भिड़ रहे हैं। किसानों का ‘दिल्ली चलो’ मार्च हिंसक हो रहा है और अराजकता पैदा कर रहा है। यह सारा देश दिन भर टेलीविजन पर देख रहा है। सरकार से बातचीत करके कोई हल निकालने को ‘किसान’ नेता मानने को तैयार तक नहीं हैं। वे तो चाहते हैं कि उनकी हरेक मांग को सरकार मान जाए। याद रखें कि किसानों की कुछ मांगों को मानना लगभग असंभव सा है। ‘किसान’ नेता कह रहे हैं कि उनके 24 लाख करोड़ रुपये के लोन माफ हो जाये । सरकारें किसानों के बहुत सारे लोन समय-समय पर माफ करती भी रहती हैं। पर सारे लोन माफ करना नामुमकिन ही है। क्या पैसा पेड़ों में लगा है जिसे सरकार तोड़ कर किसानों को दे देगी? किसानों को देश अन्न दाता मानता है, पर उन्हें भी ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए कि क्या उनकी मांगें सही हैं। जब चुकाने का इरादा ही नहीं था तो लोन लिया क्यों था ? बेईमानी करने के लिये ?

इसके साथ ही ‘किसान’ संगठन बार बार न्यूनतन समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर आंदोलन प्रदर्शन करते हैं।  वे इस बार भी एमएसपी के लिए कानून बनाने समेत अन्य मांगों को लेकर दिल्ली आकर विरोध प्रदर्शन करना चाहते हैं। इनका  कहना है कि स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के अनुसार, एमएसपी लागू हो। अफसोस होता कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी किसानों की इस मांग का समर्थन करते हैं। स्वामीनाथन कमीशन ने 2006 में अपनी रिपोर्ट दी थी। तब डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केन्द्र में यूपीए सरकार सत्तासीन थी। यूपीए सरकार 2014 तक रही। सबको पता है कि उसके सर्वेसर्वा राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी ही थे। उन्होंने तब यूपीए सरकार पर दबाव डालकर स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को क्यों नहीं लागू किया। अब राहुल गांधी कह रहे हैं कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाएगा। भारत जोड़ो न्याय यात्रा के लिए छत्तीसगढ़ पहुंचे राहुल गांधी ने कहा है, “देश में किसानों को जो मिलना चाहिए, वो उन्हें नहीं मिल रहा है।” लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज किया जाता है कि केंद्र सरकार देश के ‘किसान’ परिवारों एवं खेती की दशा-दिशा सुधारने के लिए हर साल  तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करती है। इसमें उर्वरकों पर सब्सिडी के अतिरिक्त कृषि मंत्रालय की कई ऐसी योजनाएं हैं, जिनके जरिए किसानों के खाते में सीधे पैसे भेजे जाते हैं।

जानकारों के अनुसार, केन्द्र सरकार केवल समग्र कृषि योजनाओं के माध्यम से दी जाने वाली सहायता राशि का अगर औसत आकलन किया जाए तो प्रत्येक ‘किसान’ पर कृषि एवं उर्वरक मंत्रालय के तहत हर साल लगभग 22 हजार रुपये से ज्यादा खर्च कर रही है।

अब आंदोलनकारी ‘किसान’ यह भी कह रहे हैं कि पराली जलाने पर उन पर कोई दंड ना हो। यानि कि प्रतिदिन इनकी नई-नई मांगें सामने आ रही है I पराली जलाने के कारण कितना वायु प्रदूषण फैलता है और उससे कितने लोग प्रभावित होते हैं, इससे ‘किसान’ लगभग बेपरवाह हैं। पिछले साल नवंबर के महीने में इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत साफ कहा था कि पंजाब में धान की खेती जारी रखने से लंबे समय में विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।  अदालत ने कहा था कि खेतों में आग रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए। बेंच ने कहा था, ‘जो लोग अदालत की सभी टिप्पणियों के बावजूद कानून का उल्लंघन करना जारी रखते हैं, उन्हें आर्थिक रूप से लाभ उठाने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए? जिन लोगों की पहचान आग लगाने वाले के रूप में की गई है, उन्हें एमएसपी के तहत अपने उत्पाद बेचने की अनुमति भी नहीं दी जानी चाहिए।।’

यह सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि कौन नहीं चाहता कि हवा की क्वालिटी बेहतर हो। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने दिखा दिया है कि कैसे पराली जलाने वालों पर लगाम लगाई जा सकती है। वहां योगी सरकार ने बड़े पैमाने पर अभियान चला कर पराली जलाने पर रोक लगा दी। इसके लिए जागरूकता अभियान चलाया गया। सर्दियों में पराली जलाने के कारण होने वाले प्रदूषण को लेकर योगी सरकार सजग रही। पर पंजाब के ‘किसान’ अड़े हुए हैं कि वे तो पराली जलाएंगे ही। यानी वे सिर्फ अपने बारे में ही सोच रहे हैं। उन्हें पंजाब में आम आदमी पार्टी ( आप) सरकार और खालिस्तानी तत्वों का खुलकर नैतिक और आर्थिक समर्थन मिल रहा है। खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नू किसानों के विरोध प्रदर्शन में खालिस्तानी तत्वों से घुसपैठ करने का खुलेआम आग्रह किया है। सोशल मीडिया साइट्स पर वायरल हो रहे अपने नए वीडियो में पन्नू ने किसानों की रैली में खालिस्तानी झंडे लहराने को कहा है। पन्नू ने कहा कि पंजाब के किसानों को दिल्ली से मांगा आज तक कुछ नहीं मिला। जमीनें आपकी, फसलें आपकी और सरकार हिंदुओं की दिल्ली से चल रही है। दिल्ली पर हमें कब्जा करना पड़ेगा। अब आप जान लें कि किसानों को कहां से खाद-पानी मिल रहा है। ‘किसान’ आन्दोलन को खाद-पानी कहाँ से मिल रहा है ?

आंदोलनकारी ‘किसान’ 60 साल से अधिक उम्र के हरेक ‘किसान’ को दस हजार रुपए मासिक पेंशन देने की भी मांग कर रहे हैं। इनकी यह मांग तब हो रही है जब केन्द्र सरकार के कर्मियों की भी पेंशन बीस साल पहले 2004 में बंद हो चुकी है। हालांकि सरकार किसानों को एक सम्मानजनक राशि पेंशन के रूप में फिर भी देती है। प्रधानमंत्री ‘किसान’ मानधन योजना सितंबर 2019 में झारखंड की राजधानी रांची से शुरू की गई थी। इस योजना में किसानों को 60 साल की उम्र के बाद 3 हजार रुपए की पेंशन मिलती। प्रधानमंत्री ‘किसान’ मानधन योजना में ‘किसान’ जितनी रकम का योगदान करते हैं,केंद्र सरकार भी उतनी ही रकम देती। दो  हेक्टेयर से कम जमीन वाले ‘किसान’ इस स्कीम से जुड़ सकते हैं। पर दिल्ली की तरफ बढ़ रहे ‘किसान’  सब किसानों को 60 साल की उम्र के बाद 10 हजार हर माह पेंशन देने की मांग कर रहे हैं। इस मांग को करने वालों से पूछा जाना चाहिए कि क्या 10 हजार रुपए उन किसानों को भी मिलें जो लैंड क्रूजर और बाकी महंगी कारों में घूमते हैं।  ’किसान’ की मृत्यु होने की स्थिति में उसकी पत्नी को 1,500 रुपये की मासिक पेंशन मिलती ही है । मैं देश के कई पत्रकारों को जानता हूं, जिन्हें मासिक 1200 रुपए पेंशन मिलती है। इनमें संपादक लेवल के पत्रकार भी शामिल हैं। मुझे कुछ दिन पहले भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (वीएचईएल) के एक रिटायर जनरल मैनेजर बता रहे थे कि उन्हें 2600 रुपया पेंशन मिलती है। वे दिल्ली आईआईटी के एम.टेक हैं। कायदे से तो उन्हें भी किसानों की तरह से सड़कों पर उतर जाना चाहिए। पर सिर्फ लड़ने से बात नहीं बनती। समझदार इंसान जानता है कि सरकार की भी अपनी सीमाएं हैं। इस बात को किसानों को समझना होगा। उन्हें यह भी समझना होगा कि वे बंदूक की नोंक पर सरकार पर दबाव नहीं डाल सकते। उस हालात में सरकार को झुकना मुश्किल ही नहीं असंभव होगा I

 (लेखक   वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

 

Topics: किसान आंदोलनलोकसभा चुनाव 2024Lok Sabha Elections 2024पाञ्चजन्य विशेषFarmers Movementआर. के सिन्हाR. K Sinha
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

1822 तक सिर्फ मद्रास प्रेसिडेंसी में ही 1 लाख पाठशालाएं थीं।

मैकाले ने नष्ट की हमारी ज्ञान परंपरा

मार्क कार्नी

जीते मार्क कार्नी, पिटे खालिस्तानी प्यादे

हल्दी घाटी के युद्ध में मात्र 20,000 सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने अकबर के 85,000 सैनिकों को महज 4 घंटे में ही रण भूमि से खदेड़ दिया। उन्होंने अकबर को तीन युद्धों में पराजित किया

दिल्ली सल्तनत पाठ्यक्रम का हिस्सा क्यों?

स्व का भाव जगाता सावरकर साहित्य

पद्म सम्मान-2025 : सम्मान का बढ़ा मान

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

पाकिस्तान को भारत का मुंहतोड़ जवाब : हवा में ही मार गिराए लड़ाकू विमान, AWACS को भी किया ढेर

पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर से लेकर राजस्थान तक दागी मिसाइलें, नागरिक क्षेत्रों पर भी किया हमला, भारत ने किया नाकाम

‘ऑपरेशन सिंदूर’ से तिलमिलाए पाकिस्तानी कलाकार : शब्दों से बहा रहे आतंकियों के लिए आंसू, हानिया-माहिरा-फवाद हुए बेनकाब

राफेल पर मजाक उड़ाना पड़ा भारी : सेना का मजाक उड़ाने पर कांग्रेस नेता अजय राय FIR

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

‘आतंकी जनाजों में लहराते झंडे सब कुछ कह जाते हैं’ : पाकिस्तान फिर बेनकाब, भारत ने सबूत सहित बताया आतंकी गठजोड़ का सच

पाकिस्तान पर भारत की डिजिटल स्ट्राइक : ओटीटी पर पाकिस्तानी फिल्में और वेब सीरीज बैन, नहीं दिखेगा आतंकी देश का कंटेंट

Brahmos Airospace Indian navy

अब लखनऊ ने निकलेगी ‘ब्रह्मोस’ मिसाइल : 300 करोड़ की लागत से बनी यूनिट तैयार, सैन्य ताकत के लिए 11 मई अहम दिन

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान की आतंकी साजिशें : कश्मीर से काबुल, मॉस्को से लंदन और उससे भी आगे तक

Live Press Briefing on Operation Sindoor by Ministry of External Affairs: ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की प्रेस कॉन्फ्रेंस

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies