प्रभु श्री राम भारतीय जनमानस की चेतना के पर्याय हैं। राम नाम का संबन्ध जीवन-मरण से जुड़ा हुआ है। यह संसार रूपी भवसागर को पार करने का एक माध्यम है। जीवात्मा को मुक्ति और मोक्ष प्रदान करने वाला है। भारतीय मनीषियों का मानना है कि सनातन धर्म में जो फल हमे 108 मंत्र (एक माला) जपने से मिलता है, सिर्फ राम-राम कहने मात्र से मिल जाता है। भारतीय जनमानस के मन में राम नाम की महिमा जितनी व्यापक है उतनी ही उत्कंठ आकांक्षा एक आदर्श रामराज्य देखने की भी है। शायद यही कारण है कि अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना तथा रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा आज समूचे भारतवर्ष के लिए हर्ष का विषय है। इसे देश भर में दिवाली की तरह उत्साह रूप में मनाया गया है। राम की जन्मभूमि अयोध्या हम भारतीयों के लिए विशेष महत्व रखती है। रामलला की जन्मभूमि होने के कारण अयोध्या आध्यात्मिक शक्ति का केन्द्र तो है ही साथ ही ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होना भारत भूमि के लिए एक ऐतिहासिक महत्व का क्षण रहा । भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी ने इसे एक नए कालचक्र का उद्गम भी कहा। वास्तव में यह बात आज के संदर्भ में सत्य भी प्रतीत हो रही है। भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम भले ही अयोध्या में संपन्न हुआ हो मगर उसकी खुशियां पूरे भारतवर्ष व तमाम देशों में मनाई गयी है। देश के सभी पूजा स्थलों में यज्ञ और हवन कराया गया, दान-पुण्य और गरीबों को भोजन कराया गया। इन सभी पुनीत कार्यों में देश की जनता ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। यह दुनिया का पहला धार्मिक आयोजन रहा जिसमें देश-विदेश सभी जगह एक तिथि पर एक समय में करोड़ों-करोड़ सनातनी व अन्य धर्मों के लोग इसके साक्षी बने।
यह परिघटना देश की सामाजिक, सांकृतिक, आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य में आने वाले एक बड़े बदलाव की ओर संकेत करती है। यह लोकतंत्र में एक आदर्श व्यवस्था यानि रामराज्य की कल्पना को साकार रूप प्रदान करने जैसा है। रामराज्य की परिकल्पना हमारी संस्कृति से जुड़ी हुई है। यह सामाजिक समरसता, मानवीयता, न्याय, परोपकार, असत्य पर सत्य की विजय आदि भारतीय मूल्यों और संस्कारों का ही प्रतीक है। रामराज्य एक स्वस्थ राजनीति का प्रतीक है, जहां समानता, बन्धुत्व, समरसता, नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्य महत्वपूर्ण हैं। इसमे आम जन के सरोकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। भगवान राम के दौर की राज्यव्यवस्था को यदि हम देखें तो हमें ज्ञात होगा कि भगवान राम ने प्रजाहित को अपने व्यक्तिगत हित से सर्वोपरि रखा।
नरेन्द्र भाई मोदी जी की सरकार भी जनहित को सर्वोपरि मानती है और यही वजह है कि सरकार ने जनहित में कई योजनाएं और नीतियां लागू की हैं, जिनमें जन-धन योजना, जीएसटी-एक देश में एक टैक्स की व्यवस्था, उज्जवला योजना जिसके तहत गरीब परिवारों को मुफ्त में गैस सिलेन्डर मुहैया कराये गये। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिए गैर कृषि और लघु उद्यमों को बढ़ावा दिया गया। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत युवाओं को विभिन्न उद्यमों से संबन्धित कार्य के लिए मुफ्त प्रशिक्षण की व्यवस्था तथा मेक इन इंडिया के जरिए निर्माण क्षेत्र को तकनीकी रूप से समृद्ध बनाने वाले महत्वपूर्ण कार्य जनहित में जारी किए। इन सभी योजनाओ का लाभ आम जनमानस को सीधे-सीधे प्राप्त हो रहे हैं या कहें कि इनतक पहुच रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने 22 जनवरी को दिए अपने भाषण में स्पष्ट तौर पर कहा कि रामलला के इस मंदिर का निर्माण भारतीय समाज की शांति, धैर्य, आपसी सद्भाव और समन्वय का प्रतीक है। यह संघर्ष नहीं समाधान है, राम सिर्फ हमारे नहीं सबके हैं। यह भारतीय जनमानस की परिपक्वता एवं उच्च मानवीय मूल्यों का प्रतीक है। प्रधानमंत्री ने भगवान राम को एकता का प्रतीक बताते हुए कहा कि समुद्र से सरयू नदी तक, राम के नाम की महिमा व्याप्त है। भगवान राम भारत की आत्मा और कण-कण से जुड़े हुए हैं। राम करोड़ों भारतीयों के दिलों में बसते हैं। यह हमारी सामूहिक शक्ति का परिचायक है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र को कायम रखने के लिए एक आदर्श शासन व्यवस्था की आवश्यकता है। यह रामराज्य के माध्यम से ही संभव है। नरेन्द्र भाई मोदी जी के नेतृत्व में काम करने वाली सरकार पहले से ही एक आदर्श शासन व्यवस्था अर्थात रामराज्य की कल्पना को साकार करने का ही प्रयास कर रही है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास, यह नारा ही अपने आप में जनतांत्रिक मूल्यों, सामूहिक भावना, आपसी सौहार्द तथा अनेकता में एकता, विविधता में समानता का परिचायक है। ‘अच्छे दिन आयेंगे’ एक आशावादी और सकारात्मक नजरिए का प्रतीक है। भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा इस बात का प्रतीक है कि भारत देश भविष्य में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से मजबूत होगा तथा दुनिया में अपना परचम लहराएगा।
अयोध्या से रामलला के साथ ही हमारी आध्यात्मिक चेतना जुड़ी हुई है। भारतभूमि के संस्कार और स्वप्न जुड़े हुए हैं। देश का ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा जिसने राम कथा न सुनी हो। भारतवर्ष में दिवाली से पूर्व रामलीला का आयोजन देश के विभिन्न हिस्सों में किया जाता है। देश के हर राज्य, जाति, वर्ग और समुदाय के लोग रामलीला मनाते हैं। उत्तर प्रदेश के अयोध्या, वाराणसी, वृन्दावन, उत्तराखंड के अल्मोडा, मध्य प्रदेश के सतना, बिहार के मधुबनी जैसे शहरों तथा यहां कि ग्रामीण क्षेत्रों में राम लीला हर वर्ष धूमधाम से मनाई जाती है । यह उत्सव केवल भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि इंडोनेशिया, म्यांमार, कंबोडिया, थाईलैंड, मॉरीशस, फिजी, गुयाना, मलेशिया, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन तथा नीदरलैंड जैसे देशों में भी हिंदू समाज द्वारा रामलीला मनाई जाती है। 2008 में यूनेस्को द्वारा रामलीला को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा मिला है। यही कारण है कि अयोध्या में राम मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा जैसे भव्य आयोजन का देश-विदेश के लोगों ने भी स्वागत किया। यह राम नाम की महिमा उनकी सर्वव्यापकता तथा सार्वभौमिकता को प्रदर्शित करता है। राम नाम करोड़ों भारतीयों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। रामलीला के माध्यम से अभी तक देश के सुदूर गांवों में आदर्श रामराज्य कि कहानियां सुनते व देखते थे पर अब उसे साकार होते हुए इस पीढ़ी के लोग देखेंगे, यही राम की महिमा है।
धर्म के मार्ग का अनुसरण करते हुए ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, करुणा और बड़ों के प्रति सम्मान। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए राजनीति कि दशा और दिशा दोनों बदली जा सकती है। देश में रामराज्य स्थापित किया जा सकता है। देश उसका भी साक्षी बनेगा, हम दुनिया में रामराज्य और प्रभु श्री राम का परचम लहराएंगे।
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