रामचरितमानस में निहित मूल्यों की अवधारणा

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ले. कर्नल अग्निवेश पाण्डेय

रामचरितमानस में सात कड़ियाँ सातो कांडो के रूप में जो श्री राम भगवान की ओर बढ़ने के मार्ग को भी दर्शाते है, ऐसा भी माना जाता है और लोगो में आस्था है कि स्वयं श्री भोले शंकर जी ने भगवान राम की तरफ उन्मुख होने के लिये स्वयं श्री रामचरितमानस की रचना की थी

रामचरितमानस ग्रंथ की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण के हिंदी रुपांतरण को चौपाई व् दोहो में किया इसके प्रमुखतः सि‌द्धांतो में मानव समुदाय को तनाव ईर्ष्या वेष, के सांसारिक बंधनो से उबरने के लिए डूबते को तिनके के समान है। कई हजार साल पहले विश्व में छः प्रकार की प्रजातियों का अभ्युदय हुआ जिसमे से सनातन धर्म अपनी संस्कृति एवं अस्मिता को संजोय कर रख पाया इसमें वेदो, उपनिषदों, गीता, रामायण श्रीम‌द्भागवत व रामचरितमानस का स्पष्ट प्रभाव दीप्तमान है।

रामचरितमानस में लिखी हुई एक एक बात हमें मानव मात्र को नास्तिकता से आस्तिक की तरफ असत को सत की तरफ अंधकार को प्रकाश की तरफ लेकर जाती है आज के विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि इस धरा पर संजीव व निर्जीव जो भी जंतु या वस्तु आच्छादित है वह एक दूसरे से किसी न किसी माध्यम से संकर्षित है जिसको श्री रामचरितमानस में श्री राम चंद्र जी ने अपने मुख से बोला है।

सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनज मोहि भाए॥”

(उत्तरकाण्ड 85/04)

अर्थात, सम्पूर्ण प्रकृति के जीव मेरे द्वारा ही उत्पन्न है मनुष्य उन सभी जीवों में ज्येष्ठ व सर्वश्रेष्ठ होने के नाते मनुष्य मुझे अधिक प्रिय है।

रामचरितमानस में सात कड़ियाँ सातो कांडो के रूप में जो श्री राम भगवान की ओर बढ़ने के मार्ग को भी दर्शाते है, ऐसा भी माना जाता है और लोगो में आस्था है कि स्वयं श्री भोले शंकर जी ने भगवान राम की तरफ उन्मुख होने के लिये स्वयं श्री रामचरितमानस की रचना की थी श्री रामचरितमानस को आम जनमानस में भगवान श्री रामचंद्र जी की तरफ उन्मुख होने के लिये आम बोलचाल की भाषा में लिखा गया यह भी बोला गया कि वेद पुराणों उपनिषदों के चुनिंदा वाक्यों स्मृतियों को मोतीबद्ध माला में पिरोकर श्री रामचरितमानस का अभिर्भाव हुआ श्री राम चरितमानस में एक व्यक्ति की दिनचर्या का संदेश इस उपरोक्त चौपाई के माध्यम से गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने आम जनमानस को दिया –

“प्रात कल उठि के रघुनाथा मातु पिता गुरु नावहि माथा “

(बालकाण्ड 204/07)

अर्थात, प्रभु श्री राम जी प्रातः कल उठकर स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर सर्वप्रथम माता-पिता व गुरु को प्रणाम कर आशीर्वाद ग्रहण करते थे यह हमारी भारतीय संस्कृति में अपने से श्रेष्ठजनो बुजुर्गों व गुरु आदि जनो का आदर सत्कार एवं सम्मान के लिये प्रेरित करता है

रामचरितमानस परिवार में एकता एवं विश्व बंधुत्व की भावनाओं से निहित ग्रंथ है श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस के माध्यम से कहा है की सभी धर्मावलम्बी एक ही ईश्वर की संतान है सभी धर्मावलम्बियों के अलग अलग रास्ते हो सकते है किन्तु ईश्वर एक है। माध्यम गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने आम जनमानस को दिया –

“अखिल विश्व यह मोर उपाया सब पर मोरि बराबरि दाया”

(उत्तरकाण्ड 86/04)

अर्थात, भगवान श्री रामचंद जी कहते है की मुझे सभी जीव प्रिय है क्योंकि मैं सभी का पिता हूँ परन्तु उनमे मनुष्य मुझे अधिक प्रिय है इसी के साथ भगवान का यह भी कथन है की यह चर अचराचर मेरे द्वारा ही उत्पन्न किया गया हैं अतः मेरी कृपा इन सब पर बराबर रहती है मेरी दृष्टिकोण से किसी भी प्राणी मात्र में कोई भेद विभेद नहीं है और मेरे लिये कोई भी अति प्रिय या अप्रिय नहीं है इस बात को हम सभी ने अनुभव किया कि प्रकृति या ईश्वर के द्वारा प्रदत्त सुविधाये जैसे पवन वृष्टि, सूर्यताप आदि सभी सुविधाये सभी प्राणिमात्र को समान रूप से प्राप्त होती है इससे हमको यह संदेश मिलता है कि सभी प्राणी मात्र का समान रूप से हित करे किसी के भी प्रति ईर्ष्या दवेष की भावना न रखे क्योकी यह अनिष्ट को जन्म देती है और यही मानस का सिद्धांत भी है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की बाते आम जनमानस को बहुत ही प्रेरित करती है जिसमें उन्होंने कहां की हम सब गोस्वामी तुलसीदास जी के समान सुन्दर काव्य नहीं लिख सकते किन्तु जीवन में ईश्वर को उतारकर उसे काव्यमय बना सकते है।

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